यूपी में 2027 के विधान सभा चुनाव की बिसात बिछनी शुरू हो गई है. जहां इस चुनाव सीरीज में हमने कल कांग्रेस पार्टी की रणनीति पर बात की थी, तो वहीं आज हम हाथी पर सवार बसपा की बात करेंगे. पिछले 13 साल में अर्श से फर्श पर पहुंचने वाली बसपा की नेता मायावती ने ये कभी नहीं सोचा होगा कि यूपी में सत्ता की प्रबल दावेदार रहने वाली उनकी पार्टी राजनीति के मुख्यधारा से बिल्कुल अलग हो जाएगी. इसके पीछे राजनीति के जानकार की अपनी-अपनी राय है. कोई उनके उम्र और स्वास्थ्य को जिम्मेदार मानता है, तो कोई उनके कार्यकाल में कैबिनेट में गुटबाजी तो कुछ नेताओं का नाम लेता है.
लगातार गिरता बसपा का ग्राफ चिंता का विषय
2012 में यूपी की सत्ता से सपा ने बसपा को बेदखल किया था. उस वक्त पार्टी के 80 विधायक जीतकर विधान भवन पहुंचे थे. उस चुनाव में पार्टी को 25 फीसदी के ज्यादा वोट मिले थे. उस दौर में दलितों का एकमुश्त वोट बसपा को जाता था. लेकिन फिर धीरे-धीरे समीकरण बदलने लगा. यूपी के बाद केंद्र में भी सत्ता का परिवर्तन हुआ. उस दौर से ही मायावती और उनकी पार्टी का राजनीतिक वर्चस्व धीरे-धीरे कम होता गया. कम भी ऐसा हुआ कि आज 403 विधानसभा सीट वाले राज्य में पार्टी के पास मात्र 1 विधायक हैं. बलिया जिले के रसड़ा से उमाशंकर सिंह, जो अपने बलबूते पर चुनाव जितने में कामयाब रहे.
कार्यकर्ताओं को अपनी नेता से उम्मीद
हर विधान सभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के कुछ दिन पहले आइसोलेशन से निकलकर मायावती पार्टी के पदाधिकारियों के साथ मीटिंग करती है. फिर उन्हें कुछ टास्क दिया जाता है. कभी सोशल इंजिनियरिंग के समीकरण को दोबारा साधने के लिए रणनीति बनाई जाती है, तो कभी सर्व समाज की बात की जाती है. लेकिन जनता न बसपा के विचारधारा पर विश्वास कर रही है न ही उनके वादे पर. ऐसे में पार्टी पर दबाव है, जो कार्यकर्ता वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. उन्हें विश्वास है कि उनकी नेता इस चुनाव में कुछ ऐसा चमत्कार करने वाली है. जिससे पार्टी को आने को चुनाव में नुकसान के बदले फायदा होगा.
जमीन पर उतरे कार्यकर्ता
हाल ही में अभी कुछ दिन पहले मायावती लखनऊ दौरे पर थी. उस दौरान वह पार्टी के पदाधिकारियों के साथ मीटिंग की और आगे की रणनीति को लेकर मीटिंग में चर्चा हुई. इसी मीटिंग के दौरान आकाश आनंद को दोबारा पार्टी में नंबर 2 का ओहदा मिला. इस मीटिंग में मायावती ने पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों को कार्यकर्ताओं को घर से निकालने की जिम्मेदारी दी और कहा कि अब धरना, घेराव और विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दें. अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान जो- जो कल्याणकारी योजनाएं चलाई गई थी. उन सबका प्रचार करने पर विशेष जोर देते हुए व्यापक चर्चा की.
पार्टी के सूत्रों की मानें, तो मायावती ने पार्टी के पदाधिकारियों को गांव- देहात में चौपाल लगाकर हर गांव से 100-150 से कार्यकर्ता बनाने का टारगेट भी दिया है. ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता अब चौपाल के माध्यम से सीधे वोटरों से मिलेंगे और उनकी समस्या को सीधे पार्टी प्रमुख तक पहुंचाएंगे. वहीं पार्टी के कुछ नेताओं का ये भी मानना है कि जब से आकाश आनंद आए हैं, तो पार्टी के कैडर में एनर्जी का संचार तो हुआ है, लेकिन देखना ये है कि राजनीतिक शय्या पर पड़ी बसपा में आकाश कितना जान डाल पाते हैं ?