Electoral Bonds: क्या है चुनावी बॉन्ड, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द? सरकार के स्कीम को बताया ‘असंवैधानिक’

Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए ऐतिहासिक फैसले में राजनीतिक दलों का वित्तपोषण करने के लिए शुरू चुनावी बॉन्ड योजना रद्द कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करता है

Electoral Bonds Berdict: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को 6 वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए।

चुनावी बॉन्ड है क्या?

चुनावी बॉन्ड वित्तीय तरीका है जिसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार वित्तमंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी। चुनावी बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार चुनावी बॉन्ड के तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार इसमें बॉन्ड के खरीदार या भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है, स्वामित्व की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाती और इसमें धारक (यानी राजनीतिक दल) को इसका मालिक माना जाता है।

योजना भारतीय नागरिकों और घरेलू कंपनियों को इन बॉन्ड के जरिए दान करने की अनुमति देती है जो 1000, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में अपनी पसंद की पार्टी को दे सकते हैं। इन बॉन्ड को राजनीतिक पार्टियों द्वारा 15 दिनों के भीतर भुनाया जा सकता है। व्यक्ति या तो स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन बॉन्ड को खरीद सकता है।

मौजूदा समय में व्यक्ति (कंपनियों के लिए) के लिए बॉन्ड खरीदने की कोई सीमा नहीं है। राजनीतिक दल द्वारा 15 दिनों में बॉन्ड को नहीं भुनाने की स्थिति में राशि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राहत कोष में जमा हो जाती है। ADR ने रेखांकित किया कि योजना के तहत राजनीतिक पार्टियों को चुनाव आयोग में सलाना चंदे का विवरण जमा करने के दौरान बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाले का नाम व पता देने की जरूरत नहीं होती है।

कार्यकर्ताओं ने राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाया था। उनका मानना है कि बॉन्ड नागरिकों के जानने के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है। ADR ने रेखांकित किया कि चुनावी बॉन्ड नागरिकों को कोई विवरण नहीं देते लेकिन सरकार हमेशा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से डेटा की मांग करके दानकर्ता की जानकारी प्राप्त कर सकती है।

ये भी पढ़ें- Bank Account: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपके इन कैश ट्रांजैक्शन पर रखता है नजर, रखें ध्यान

ADR ने कहा, “निर्वाचन आयोग ने रिकॉर्ड पर कहा था कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त किसी भी दान को रिपोर्टिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है और इसलिए यह एक प्रतिगामी कदम है और इसे वापस लेने की जरूरत है।”

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube  पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरे।

- Advertisement -

Related articles

Share article

- Advertisement -

Latest articles