गुंजन मिश्रा, पर्यावरणविद: आतंकवाद, युद्ध, आर्थिक असमानता, इको साइड, जलवायु परिवर्तन आदि वैश्विक समस्याओं से आज पूरी दुनिया के नीति निर्माता और वैज्ञानिक चिंतित है। इतना ही नहीं, जो लोग ज्योतिष या भविष्यवाणी में विश्वास रखते है | उनके लिए, नास्त्रेदमस के अनुसार,साल 2024 में पूरी दुनिया को गंभीर जलवायु परिवर्तन के परिणाम भुगतने पड़ सकते है। उन्होंने सूखा, बाढ़ जंगल में आग और रिकॉर्ड तापमान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका पहले ही जता दी थी।
स्पष्ट है कि, जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। इसके लिए मानवीय और प्राकृतिक घटनाये दोनों जिम्मेदार है। बढ़ते हुए ताप का सीधा प्रभाव अब तो भूमिगत जल के ताप मान के बढ़ने से लेकर, रातो का गर्म होना, दिन के तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज़ होना आदि शामिल हो चुके है। अतः आज हमको इतनी जरूरत बिजली, सड़क व् अन्य विकास की योजनाओं आदि की नहीं है, जितनी की धरती पर जीवन बचाने की आवश्यकता है।
प्रकृति को संतुलित कैसे रखा जाय इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा मानव जीवन को भी संरक्षित करना मुश्किल होगा। आज 28 साल बाद नीति निर्माताओं और वैज्ञानिको के अब समझ में आया है, कि धरती पर ताप बढ़ने का एक मुख्य कारण कोयला और पेट्रोलियम पदार्थो का खनन है। आज विश्व की एक तिहाई से ज्यादा आबादी प्राकृतिक समस्याओं के चलते पलायन के लिए मजबूर है। ऐसी स्थिति में महिलाओ, बच्चो और बुजुर्गो की स्थिति बहुत नाजुक है।
इसलिए बजट में आम आदमी को क्या क्या योजनाए मिलेगी। जिससे वह अपना जीवन खुशहाली के साथ गुजर सके। यानी अच्छा और ख़राब बजट इस बात पर निर्भर करता है, कि किस तरह से स्थानीय समस्याओं को दूर करने के साथ साथ वैश्विक समस्याओं के लिए क्या प्रावधान बजट में रखे गए है। क्योंकि धरती को संतुलित करने के लिए आज के समय एकल उपाय नहीं बल्कि अब समय आ चुका है जब सामूहिक प्रयास किये जाय। इन सामूहिक प्रयासों में विश्व के शीर्ष नेताओं या नीति निर्माताओं को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन में उद्योगपति व्यापार की सम्भावनाये बाद में तलाशे, पहले इन समस्याओं को मानवीय और प्राकृतिक तरीके से कैसे हल किया जाय | इस पर ठोस कदम उठाने के साथ साथ बजट में निम्न उपाय अपनाने की जरूरत है।
- मानवता कि रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा जो नियम व् कानून बनाये गए है उनके अंतर्गत वैश्विक स्तर पर एक सामान पर्यावरणीय नियम बनाये जाए।
- बैंको द्वारा किसी भी योजना व् परियोजना को आर्थिक मदद देने से पहले उस स्थान के पर्यावरणीय नुक्सान का आर्थिक मूल्यांकन करके उसके लिए ऋण उपलब्द्ध कराया जाय। जिससे वास्तविक लाभ हानि का अनुमान लगाया जा सके।
- वास्तु विनिमय को बढ़ावा दिया जाय ऐसा कुछ बजट में प्रावधान हो।
- बजट में आर्थिक असमानता दूर करने लिए एक आर्थिक असमानता आयोग की स्थापना की जाय।
- बजट में जलवायु न्याय के लिए उपाय शामिल किया जाय। इसमें महिलाओं, बच्चो और बुजुर्गो का विशेष ख्याल रखा जाय।
- बड़े बांधो और हाइड्रोपावर जैसी योजनाओ को आर्थिक तौर पर हतोत्साहित किया जाय।
- ट्यूब वेल व् बोर वेल को कम धन आवंटित किया जाय। इसके स्थान पर तालाब, कुँआ, बाबड़ी व् बर्षा जल संग्रहण को प्रोत्साहित किया जाय।
- वृक्षारोपण, अमृत सरोवर, मेड बंदी, जैविक खेती, बाग़ आदि को विशेष आर्थिक मदद दी जाय।
- कृषि में युवाओ की भागीदारी बढ़ाने के लिए, एक आर्थिक मदद सुनिश्चित की जाय ताकि आज का युवा खेत की ओर वापस आये, सड़क की तरफ न जाय।
इसके अलावा देश का विकास किस कीमत पर हो रहा है, यानी क्या कीमत चुकानी पड़ रही है। इसका मूल्यांकन भी बहुत आवश्यक है। क्योंकि अर्थशास्त्र के पारम्परिक पैमानों में इस कुदरती पूँजी की आर्थिक महत्ता को अनदेखा किया जाता है। क्योंकि पारिस्थितिकी या इको सिस्टम की सेवाओं का कोई हिसाब किताब नहीं रखा जाता है। यही कारन है कि आर्थिक विश्लेषण में प्राकृतिक सेवाओं को गरीबो की सकल घरेलु उत्पाद कहा जाता है। ये सब आर्थिक असमानता के आधार है इनमे सुधार की आवश्यकता है। ग्रीन एकाउंटिंग सिस्टम की शुरुआत की जाय। जिससे सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा किया सके। खासतौर पर सतत विकास लक्ष्य 13 ( जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए), 14 और 15 (पानी के नीचे व धरती पर जीवन) इन लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि अध्धयन बताते है कि प्राकृतिक सेवाओं का कुल मूल्य इस क्षेत्र कि कुल आमदनी से अधिक था।
प्राकृतिक संसाधनों का मूल्यांकन निश्चित रूप से भारत जैसे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि विकास और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जो विवाद हो रहे है उनका उचित समाधान निकल सकेगा। इसके अलावा सकल सम्पत्ति के रूप में ज्यादा लाभ किये बिना तेज़ी से जिन प्राकृतिक संसाधनों को हम खो रहे है उनका उचित मूल्यांकन हो सकेगा। इसलिए जरूरत है बजट में मानवीय दृष्टिकोण को अपनाने की अन्यथा अपनी अपनी ढपली ओर राग हम सब बजाते ओर गाते रहेंगे।
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