Raksha Bandhan 2024:  कैसे शुरू हुई रक्षाबंधन की परंपरा? जानें इसकी प्रचलित कथाएं     

Author: Jyoti Mishra Published Date: 12/08/2024

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सिंदूर आपकी जिंदगी में आने वाली कई तरह की परेशानियों को दूर करेगा। अगर आपकी जिंदगी में किसी भी तरह की परेशानी आ रही है तो आप सिंदूर से जुड़े कुछ उपाय करें।   

रक्षा सू‍त्र को कहते हैं राखी

रक्षा सूत्र को बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है जो वेद के संस्कृत शब्द 'रक्षिका' का अपभ्रंश है। मध्यकाल में इसे राखी कहा जाने लगा।  

कहते हैं कि राखी को पहले 'रक्षा सूत्र' कहते थे

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रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा वैदिक काल से रही है जबकि व्यक्ति को यज्ञ, युद्ध, आखेट, नए संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलाई पर नाड़ा या सू‍त का धागा जिसे 'कलावा' या 'मौली' कहते हैं

रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा

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यही रक्षा सूत्र आगे चलकर पति-पत्नी, मां-बेटे और फिर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया। रक्षा बंधन के दिन बहनों का खास महत्व होता है। विवाहित बहनों को भाई अपने घर बुलाकर उससे राखी बंधवाता है और उसे उपहार देता है रक्षा बंधन पर बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। 

रक्षा सूत्र बांधना बना रक्षा बंधन का त्योहार 

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पहले सूत का धागा होता था, फिर नाड़ा बांधने लगे, फिर नाड़े जैसा एक फुंदा बांधने का प्रचलन हुआ और बाद में पक्के धाके पर फोम से सुंदर फुलों को बनाकर चिपकाया जाने लगा जो राखी कहलाने लगी। वर्तमान में तो राखी के कई रूप हो चले हैं। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। 

बदलता गया रक्षा सूत्र का स्वरूप 

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यह भी कहा जाता है कि राखी को श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिए राक्ष कहने के पूर्व पहले इसे श्रावणी या सलूनो कहते थे। इसी तरह प्रत्येक प्रांत में इसे अलग अलग नामों से जाना जाने लगा है। जैसे दक्षिण में नारियय पूर्णिमा, बलेव और अवनि अवित्तम, राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। रामराखी इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है।  

हर प्रांत में है अलग नाम

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भविष्य पुराण में कहीं पर लिखा है कि देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब असुर या दैत्य देवों पर भारी पड़ने लगे। ऐसे में देवताओं को हारता देख देवेंद्र इन्द्र घबराकर ऋषि बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति के सुझाव पर इन्द्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुए। कहते हैं कि तब से ही पत्नियां अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए राखी बांधने लगी।   

इंद्र की पत्नी के कारण मनाया जाता है त्योहार 

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स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बली से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताललोक का राजा बना दिया तब राजा बली ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।   

राजा बली के कारण मनाया जाता है त्योहार

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