FDI in Insurance: केंद्र सरकार बीमा क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देने की तैयारी कर रही है। इसके साथ ही, अब व्यक्तिगत इंश्योरेंस एजेंट एक से अधिक कंपनियों की पॉलिसी बेच सकेंगे। पहले यह एजेंट केवल एक ही लाइफ या जनरल इंश्योरेंस कंपनी से जुड़ सकते थे, लेकिन यह सीमा अब खत्म की जा रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये बदलाव बीमा संशोधन विधेयक का हिस्सा हैं, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
अभी कितनी है एफडीआई की सीमा?
वर्तमान में बीमा कंपनियों में एफडीआई की सीमा 74% है। भारत में 12 लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां, 26 जनरल इंश्योरेंस कंपनियां और 6 स्टैंडअलोन हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां कार्यरत हैं। इसके अलावा, जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (GIC) एकमात्र पुनर्बीमा (reinsurer) कंपनी है।
बदलाव से किसे होगा फायदा?
सरकार के इन प्रस्तावों का मकसद देश में इंश्योरेंस की पहुंच बढ़ाना है, जो फिलहाल केवल 4% तक सीमित है। नए नियमों के तहत
1. अधिक कंपनियां पॉलिसी बेच सकेंगी: इससे बीमा की पहुंच और अधिक ग्राहकों तक बढ़ेगी।
2. एजेंट्स को स्वतंत्रता: एक ही एजेंट अब लाइफ और जनरल दोनों पॉलिसी बेच सकेगा।
3. अधिक विदेशी निवेश: इससे बीमा कंपनियों को अधिक पूंजी उपलब्ध होगी, जिससे सेक्टर का विस्तार होगा।
सरकार का उद्देश्य क्या है?
बीमा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाने का मुख्य उद्देश्य सेक्टर में लंबे समय तक निवेश को बढ़ावा देना है। भारतीय बाजार में SBI, ICICI, HDFC जैसी कंपनियां मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन लाइफ इंश्योरेंस जैसे दीर्घकालिक व्यवसाय में घरेलू कंपनियों के पास पर्याप्त पूंजी नहीं है।
इसके अलावा, बजाज फिनसर्व जैसे भारतीय पार्टनर से अलग होकर एलियांज जैसी विदेशी कंपनियां अकेले बाजार में उतरने की योजना बना रही हैं।
बीमा संशोधन विधेयक में कई अन्य प्रस्ताव भी शामिल हैं
1. कम्पोजिट लाइसेंस: बीमा नियामक IRDAI ने लाइफ और नॉन-लाइफ दोनों पॉलिसी जारी करने के लिए कम्पोजिट लाइसेंस का प्रस्ताव रखा है।
2. सॉल्वेंसी मानकों में ढील: इससे बीमा कंपनियों को अधिक पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी।
3. एलआईसी को फायदा: नई नीति से सरकारी कंपनियों को भी लाभ मिलने की उम्मीद है।
विदेशी कंपनियों की तैयारी
कई विदेशी निवेशक और कंपनियां भारतीय बीमा बाजार में निवेश के लिए तैयार हैं। 100% एफडीआई सीमा लंबी अवधि के लाइफ इंश्योरेंस व्यवसाय के लिए फायदेमंद होगी, जहां कंपनियों को नियामक मानकों के अनुसार सॉल्वेंसी बनाए रखने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।
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