Delhi Election Result 2025: कांग्रेस के शून्य में सबक और संभावना है!

Delhi Election Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जहां बीजेपी 27 साल के अपने सूखे को खत्म कर सत्ता में वापसी की है तो कांग्रेस ने हार और खाता भी नहीं खोलने का हैट्रिक बनाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजधानी दिल्ली में कांग्रेस के लिए कितनी संभावना बची है।

Delhi Election Result 2025: दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार के बाद टीवी चैनलों, अखबारों और आम लोगों के बीच यह चर्चा खूब हो रही है कि राजनीति के इस पहले सफल स्टार्टअप को कांग्रेस के कारण हार का सामना करना पड़ा है। 14 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच जीत और हार का मार्जिन जितना है या तो उसके आसपास वोट कांग्रेस उम्मीदवार को मिले हैं या फिर कांग्रेस उम्मीदवार ने इतने वोट जुटाए हैं कि आम आदमी पार्टी के हाथ से जीत छीन ली है।

कांग्रेस को भले ही आम आदमी पार्टी की हार का विलेन बनाने की कोशिश की जा रही हो लेकिन हमारा यह मानना है कि आम आदमी पार्टी की हार और अपने खाते में क्रेडिट हुए शून्य में कांग्रेस को संभावना का सूरज जरूर देखना चाहिए। मैं शुरुआत से ही दिल्ली में पला-बढ़ा हूं। दिल्ली के उस इलाके में अपनी जिंदगी के 30 साल गुजारे हैं जो वर्ष 2020 में सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसा है। इस इलाके में पूर्वांचली, दलित, पहाड़ी और मुस्लिम समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। इस इलाके से कांग्रेस के विधायक भी जीतते रहे हैं। मायावती की बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को भी इस क्षेत्र की जनता ने विधानसभा पहुंचाया है। बीजेपी के साथ आम आदमी पार्टी को भी सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने में इस क्षेत्र के लोगों ने अहम भूमिका निभाई है।

दिल्ली का मिजाज कांग्रेसी!

इस इलाके में रहते हुए मैंने शीला दीक्षित के 15 साल वाली दिल्ली भी देखी है। बीजेपी के साहिब सिंह वर्मा की सरकार का साक्षी रहा हूं और आम आदमी पार्टी को तो सत्ता में आते और जाते भी देख रहा हूं। अपने निजी और पेशेवर अनुभव से कह सकता हूं कि दिल्ली का मिजाज कांग्रेसी है। ठीक है भले ही 26 या 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हुई है लेकिन केंद्र के मोदी राज की तरह ऐसा नहीं है कि अब बीजेपी से दिल्ली दरबार छीनना विपक्षी दलों के लिए असंभव सा कार्य हो जाएगा। जैसा बीजेपी दावा करती है कि अगले सालों-साल तक वो देश की सत्ता में रहने वाली है।

किसी खास-वर्ग या समुदाय को समर्थन नहीं!

दिल्ली का मिजाज कांग्रेसी कहने के पीछे कुछ वजह हैं। दिल्ली ने कभी हार्ड हिंदुत्व या खास विचारधारा की राजनीति को लगातार समर्थन नहीं दिया है, ना ही किसी खास-वर्ग या समुदाय का विरोध किया है। दिल्ली के दिल में सबके लिए जगह है इसलिए कांग्रेस राज में चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव के तौर पर दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री ओबीसी के यादव समुदाय से आता है तो फिर सिख समुदाय से आने वाले गुरुमुख निहाल सिंह भी दिल्ली के सीएम बनते हैं। बीजेपी के राज में साहिब सिंह वर्मा के तौर पर जाट सीएम दिल्ली पर राज करता है तो सुषमा स्वराज और फिर शीला दीक्षित के तौर पर महिला भी दिल्ली की सत्ता की कमान संभालती है।

करिश्मा नहीं बीजेपी का सत्ता में आना!

इससे और पूर्व के इतिहास में जाकर देखें जब दिल्ली में असेंबली ही अस्तित्व में नहीं थी। 1993 से पहले मेट्रोपॉलिटन काउंसिल में जनसंघ का बहुमत होता है। अब जनसंघ की कोख से निकली बीजेपी अगर मोदीराज के दौरान पहली बार दिल्ली की सत्ता संभालती है तो इसमें किसी हैरानी या करिश्मा जैसी बात करना सही नहीं है।

अभी से 2030 की तैयारी 

ये भी संभव है कि अगली बार 2030 के चुनाव में कांग्रेस दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हो जाए। क्योंकि दिल्ली दावों और वादों की डिलीवरी चाहती है। वो चाहती है जो पार्टी उनसे तरह तरह के वादे और दावे करके सत्ता में आई है वो उन वादों को पूरा करे। दिल्ली के मुद्दे बाकी राज्यों से बिल्कुल अलग हैं। यहां जाति-धर्म की राजनीति से बढ़कर हवा, पानी और सड़क जैसे मुद्दे हावी हैं। अगर बीजेपी इन मुद्दों पर दिल्ली की जनता का दिल जीतने में कामयाब नहीं होगी तो अगले चुनाव में बाजी पलट भी सकती है।

पुराने रिकॉर्ड से सबक लेने की जरूरत!

बस कांग्रेस को दिल्ली में अपने पुराने रिकॉर्ड से सबक लेने की जरूरत है। पार्टी के नेताओं के लिए जरूरी है कि वो दिल्ली में अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल ना गिरने दें। इन 5 सालों को एक अवसर के तौर पर देखें और जमीन पर अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए लगातार कोशिश करते रहें। क्योंकि अगर दिल्ली ने अपनी तासीर नहीं बदली तो कांग्रेस के लिए अगले चुनावों में सबसे बड़ी संभावना का द्वार खुल सकता है इसलिए कांग्रेस अगर अपने शून्य पर भी संतोष कर रही है या उसके कुछ नेता जश्न मना रहे हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं है। बस जरूरत है कि इस शून्य से सबक लेकर अगली बार इसे सत्ता की संभावना में तब्दील किया जाए।।

अमित यदुवंशी (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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