Dharmendra Biography: बॉलीवुड के महान अभिनेता धर्मेंद्र का सोमवार को 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। दुनियाभर में “ही-मैन” के नाम से पहचाने जाने वाले धर्मेंद्र कभी लुधियाना के साहनेवाल में रहने वाला एक साधारण, गरीब परिवार का लड़का थे। वही लड़का जिसने मिनर्वा सिनेमा में बैठकर एक सपना देखा और उस सपने ने उसे हिंदी सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया।
छोटे से कस्बे का लड़का… पिता स्कूल में टीचर, घर में साधारण हालात (Dharmendra Biography)
8 दिसंबर 1935 को साहनेवाल में जन्मे धर्मेंद्र का असली नाम धरम सिंह दियोल था।उनके पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और आर्थिक हालात बहुत मजबूत नहीं थे।बचपन साधारण था, घर की जरूरतें सीमित थीं और जिंदगी संघर्षों से भरी थी।
स्कूल में पढ़ाई और घर के हालात दोनों ने उन्हें जल्दी बड़ा होना सिखा दिया।इसी बीच उनमें एक खामोश ख्वाहिश जन्म लेने लगी कुछ बड़ा करने की।
मिनर्वा सिनेमा ने बदली जिंदगी- एक टिकट ने पैदा किया सुपरस्टार
कहते हैं एक पल, एक मौका इंसान की पूरी जिंदगी बदल देता है।धर्मेंद्र की जिंदगी में यह पल तब आया जब वह लुधियाना के मिनर्वा सिनेमा में दिलीप कुमार की फिल्म ‘शहीद’ देखने पहुंचे।कहते हैं जैसे ही फिल्म खत्म हुई, उन्होंने खुद से पूछा—“क्या मैं भी एक्टर बन सकता हूं?”उसी शाम उन्होंने फैसला कर लिया था कि उन्हें मुंबई जाना है।वह सपना इतना बड़ा था कि गरीबी, मुश्किलें और डर सब छोटे पड़ गए।
साहनेवाल स्टेशन से शुरू हुआ मुंबई का सफर
धर्मेंद्र रोज़ रेलवे स्टेशन जाते और मुंबई जाने वाली ट्रेन को जाते देखते रहते।हर गुजरती ट्रेन के साथ सपना और मजबूत होता गया।आखिरकार एक दिन उन्होंने घर की सीमाओं को पार किया और अकेले मुंबई का टिकट कटवा लिया।बिना पहचान, बिना पैसे और बिना किसी गॉडफादर के वो मुंबई पहुंच गए।यहीं से एक गरीब लड़का सितारा बनने चला था।
मुंबई में संघर्ष लेकिन हिम्मत नहीं टूटी
मुंबई में रहने का ठिकाना नहीं था, खाने तक के पैसे नहीं थे।लेकिन वह कहते थे-“जब तक दिल में आग है, कोई भूख रोक नहीं सकती।”ऑडिशन देते, स्टूडियो के चक्कर लगाते, छोटे रोल के लिए इंतजार करते।धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और धर्मेंद्र एक-एक कदम ऊपर चढ़ते गए।फिर वही लड़का, जो कभी मिनर्वा सिनेमा की भीड़ में बैठा फिल्में देखा करता था,खुद बड़े पर्दे का सबसे चमकदार सितारा बन गया।
धर्मेंद्र जब मशहूर हो चुके थे, तब भी उन्होंने अपनी जड़ें नहीं छोड़ीं।पंजाब से आने वाले संघर्षरत युवाओं को वे अपने घर रहने देते थे।लोगों ने प्यार से उनके घर को “धर्मशाला” कहना शुरू कर दिया था।यह वही मानवता थी जिसे उन्होंने पंजाब की मिट्टी से सीखा था।एक गरीब लड़के का सपना सिर्फ उसका नहीं रहा वह देश का सपना बन गया।
धर्मेंद्र की जिंदगी इस बात का प्रमाण है कि
अगर सपनों की ताकत हो, तो एक साधारण लड़का भी हिंदी सिनेमा का चेहरा बन सकता है।उनका सफर आज भी लाखों युवाओं को यही संदेश देता है-“मंज़िल किसी की विरासत नहीं होती, उसे पाने का साहस होना चाहिए।”
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