Mothers Day 2023: महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास ने कहा था-नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:। नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रिया॥ इसका अर्थ है माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समतुल्य इस दुनिया में कोई जीवनदाता नहीं !
इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ करतीं इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसी माताएं दर्ज़ हैं, जिनके व्यक्तित्व, कृतित्व व अस्तित्व ने उनकी संतानों पर गहरा प्रभाव डाला। क्यूं न आज की ‘न्यू एज मदर्स’ भी इन उदाहरणों से कुछ सीखकर अपने बच्चों की परवरिश में उन विशेषताओं का समावेश करें, जो दुनिया की नामी हस्तियों का “यू.एस.पी.” रही हैं। पेशे से चिकित्सक और साहित्यकार डॉक्टर शिराली अरविंद रुनवाल बता रही हैं ऐसी ही कुछ महान मांओं के बारे में जिनके पथ पर चलकर मांएंं गढ़ सकती हैं महान चरित्र।
मां गढ़ती हैं सच्चरित्र
यह मां के त्याग व तपस्या की परिणति ही है जो एक सच्चरित्र इंसान का निर्माण करती है। उसका स्नेह संतान को मानवीय मूल्यों व अलौकिक अनुभूतियों से भर देता है। मां केवल एक व्यक्ति या व्यक्तित्व नहीं, बल्कि उसका सम्पूर्ण मातृत्व गुणों की खान है। अब उसमें से हीरा उत्पन्न होता है या कोयला, यह उस गुण की प्रवृत्ति पर निर्भर है। सद्गुण या अवगुण हम सब में होते हैं, धर्म-तुला का पलड़ा जिस ओर झुक जाएगा, नैतिकता का बाहुल्य उसी ओर होगा !
शिवाजी की माता जीजाबाई
शिवाजी को बचपन में जीजाबाई द्वारा सुनाई गई प्रेरक कथाओं ने कुछ इस हद तक प्रभावित किया कि शौर्य, वीरता और साहस उनकी रग-रग में दौड़ने लगे। शिवाजी से छत्रपति बनने तक के कंटक भरे पथ में जीजाबाई ने हर मोड़ पर उनको संभाला व संबल दिया। छत्रपति शिवाजी के कण-कण में मां जीजाबाई का ज्योतिर्मय व्यक्तित्व विद्यमान था। विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग व अविचल कैसे रहें, माताएं इस बात की शिक्षा अवश्य दें अपने नवांकुरों को!
पन्नाधाय का बलिदान
पन्नाधाय की निर्भीकता, स्वामिभक्ति, अदम्य साहस, असीम त्याग-भावना एवं सर्वस्व न्यौछावर कर देने की गुण-गाथा अमर व अक्षुण्ण है। पन्ना (पन्नाधाय) को अपने सर्वोत्कृष्ट बलिदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1536 ईस्वी में अपने इकलौते पुत्र चंदन की बाल्यावस्था में ही बलिदान देकर मेवाड़ राज्य के कुलदीपक उदयसिंह की रक्षा की थी।अपने ही पुत्र चंदन का बलिदान कर उदय सिंह के प्राणों की रक्षा करने वाली इस मां से सीखें “स्व” का त्याग कर किस प्रकार वचनबद्ध रहा जाए। इन्हीं गुणों को नई पीढ़ी में संचारित करने का माध्यम बन सकती हैं आप !
गंगा ने ही तो गढ़ा था भीष्म को
कठोर प्रतिज्ञा, परिश्रम व कर्त्तव्य-परायणता जैसी योग्यताओं से निपुण गंगा-पुत्र भीष्म को बचपन से ही माता द्वारा अपने वादे से न मुकरने और आजीवन सिद्धांतों का पालन करने की जो शिक्षा दी गई, अगर आज की माएं ये सीख अपने शिशुओं को घुट्टी में पिला दें, तो देश के ये भावी कर्णधार चरित्र से सुदृढ़ व सुसंस्कृत हो सकेंगे ।
राम बनाना है तो बनना होगा कौशल्या
कौशल्या द्वारा श्रीराम को कई गुणों से सिंचित व सुसज्जित किया गया । ये माता कौशल्या के ही सद्चरित्र का प्रताप था कि श्रीराम दया, प्रेम, दान, करुणा व मर्यादा की मिसाल बन गए। पुरुषोत्तम की उपाधि उन्होंने यूं ही नहीं प्राप्त कर ली थी। याद रखें — बच्चों को यदि राम बनाना है, तो माताओं को भी कौशल्या बनना होगा !
यशोदा ने बताया पालरहार का महत्व
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति माता यशोदा ने यह सिद्ध कर दिया कि जन्म देने से अधिक महत्व पालनहार का होता है। जन्म देने वाली मां जननी भले ही हो, लेकिन चुनौतियों से जूझने की शक्ति वही मातृशक्ति दे सकती है, जो बच्चे में संस्कार भरे। अपने कान्हा की ग़लतियों और गुस्ताख़ियों को देख, समय-समय पर टोकने वाली, सवाल-जवाब करने वाली मां यशोदा से प्रेरणा लेकर आप भी अपने बच्चों की त्रुटियों को पहचान, उन्हें सही मार्ग दिखाएं और ज़रूरत पड़ने पर दंडित भी करें। इस प्रकार उनमें सही-गलत को परखने की समझ विकसित होगी।
सीता ने नहीं हारी हिम्मत
देवी सीता को जगत्-जननी आदिशक्ति का स्वरूप कहा गया है। अपने दोनों पुत्रों लव-कुश के लालन-पालन में कोई कसर न छोड़ने वाली, अकेली पड़ गईं माता सीता ने हरसंभव प्रयास कर उनकी शिक्षा-दीक्षा को सम्पन्न कराया। जिस प्रकार लव-कुश ने श्रीराम के समक्ष निडर होकर अपनी बात कहने का साहस दिखाया, उसी प्रकार माएं युवा बालक-बालिकाओं को बेझिझक अपने पक्ष को प्रस्तुत करने की सीख दें।
शकुंतला का पराक्रमी पुत्र भरत
कण्व ऋषि के आश्रम में वास करने वाली शकुंतला ने अदम्य पराक्रम के धनी भरत को जन्म दिया, जिसके बाल्यावस्था में ही शेर के दांत गिनने की कथा बहुप्रचलित है। पिता दुष्यंत का सान्निध्य न मिल पाने के बावज़ूद, माता शकुंतला ने पुत्र भरत को अच्छी परवरिश देने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर दिए। देखा जाए तो ये प्रेरक-प्रसंग आज की ‘सिंगल मदर्स ‘ के लिए इंस्पिरेशनल है।
सुभद्रा न होती, अभिमन्यु न होता
गर्भ-संस्कार का जीता-जागता उदाहरण अभिमन्यु, अपनी मां सुभद्रा के गर्भ में ही पिता अर्जुन से किए जा रहे वार्तालाप के चलते, चक्रव्यूह को भेदना जान गया था। मां का आचार-विचार, व्यवहार अजन्मी संतान पर एक अनूठा व दूरगामी प्रभाव डालता है। यदि मां गर्भावस्था के दौरान अच्छा खाए, पीए, देखे, सुने व महसूस करे ; तो गर्भस्थ शिशु भी इन्हीं सुप्रवृत्तियों को बड़ी सहजता से ग्रहण कर लेता है। यानि कि शिक्षण की यह प्रक्रिया भ्रूण-अवस्था से ही शुरू हो जाती है !
ओलंपिया थीं तो बना सिकंदन महान
सिकंदर महान की मां ओलंपिया न सिर्फ़ अतिमहत्त्वाकांक्षी थीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व पर अपने पुत्र का एकछत्र शासन देखने के लिए भी बेहद उत्सुक थीं। उन्होंने सिकंदर को कम उम्र में ही युद्ध-कौशल में दक्ष बनाकर उसे राजनीति, रणनीति व रिपुदमन तकनीक के ग़ुर सिखलाए। वांछित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सच्ची लगन, कड़ी मेहनत व पक्के इरादे से जुट जाने की शिक्षा देकर, इस युग की माताएं एक कर्मठ पीढ़ी के निर्माण में अपनी सफल भूमिका निभा सकती हैं।
पुतलीबाई के पुत्र महात्मा गांधी
महात्मा गांधी ने अपने नैतिक मूल्यों और आदर्शों का प्रेरणा-स्रोत, माता पुतलीबाई को माना है। उनकी धार्मिक प्रवृत्ति और सुलझी विचारधारा से गांधीजी इतना प्रभावित थे, कि वे अपनी मां को “स्पिरिचुअल गुरु” का दर्ज़ा दिया करते थे। माता पुतलीबाई की ही भांति अपनी संतान को सत्य, अहिंसा, समता व सहिष्णुता जैसे गुणों से पोषित व पल्लवित करने का कार्य यदि आप भी करें, तो समाज में व्याप्त विषमताओं से मुक्ति दूर नहीं !
स्वरूप रानी ने बनाया जवाहर
ख़ुद स्वातंत्र्य सेनानी रहीं मां स्वरूप रानी ने पुत्र जवाहरलाल में भी देशभक्ति के भाव को बाल्यकाल से ही उदित किया। इतना ही नहीं, देशहित को सर्वोपरि कैसे रखा जाए, इस बात की सीख भी माता ने ही नन्हे जवाहर को दी, जो आगे चलकर आज़ाद हिन्दुस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री हुए ! लीडरशिप स्किल्स तथा पॉलिटिकल कॉन्ट्रीब्यूशन के प्रति न्यू जेनरेशन को सेंसिटाइज़ करना एक सुशिक्षित नारी का कर्तव्य है।
वर्जिन मेरी का जीजस
यीशु मसीह ने कुंआरी माता मरियम की कोख से जब जन्म लिया, तो ये सम्पूर्ण संसार के लिए एक अचंभे से कम न था। जीसस को बचपन से ही परोपकार व परमार्थ के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा माता मेरी से ही मिली। आप भी अपने बच्चों को माता मरियम व जीसस क्राइस्ट का उदाहरण देकर इंसानियत और विश्वबन्धुत्व का पाठ अवश्य पढाएं। यह उनके भावी जीवन के लिए न केवल मार्गदर्शक सिद्ध होगा, अपितु आने वाली पीढ़ियों के लिए भी राह दिखाने वाली मशाल का कार्य करेगा।
विद्यावती के पुत्र भगत सिंह
इतिहास साक्षी है कि देश, धर्म और समाज की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वालों को ऐसे संस्कार उनकी माताओं ने ही दिए। भारत के स्वाधीनता संग्राम में हंसते हुए फांसी चढ़ने वाले वीरों में भगतसिंह का नाम प्रमुख है। इसी वीर की माता थीं विद्यावती कौर ! विद्यावती जी का पूरा जीवन अनेक झंझावातों के बीच बीता। इसके बाद भी उन्होंने अपने पुत्र को देश पर मर-मिट जाने की जो सीख दी, उसे जुनूनी भगतसिंह ने चरितार्थ कर दिखाया। यदि आज की युवा पीढ़ी को अपनी मातृभूमि से कुछ इस प्रकार का लगाव हो जाए, तो निश्चित ही वह राष्ट्र उन्नति व उन्नयन के नवीन आयाम हासिल कर सकता है।
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