SHUATS University : प्रयागराज स्थित सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रिकल्चर,टेक्नोलॉजी एंड साइंस (शुआट्स) के हालात दिन-ब-दिन बद से बदतर हुए जा रहे हैं. कुलपति आर बी लाल, उनके दोनों भाई विनोद लाल और एस बी लाल समेत बड़े पदों पर बैठे अधिकारी लगातार गायब हैं। उनके बारे में तरह तरह की अफवाहें शहर में, अकादमिक क्षेत्रों में फ़ैल रही हैं। छात्र परेशान हैं अलग से। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि यूनिवर्सिटी (SHUATS University) की तरफ से कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आ रहा। ऐसे में शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को यही महसूस हो रहा है कि यूनिवर्सिटी की अलमारियों में कई ‘कंकाल’ छिपे पड़े हैं और उनके अचानक बाहर आने की आशंका से यूनिवर्सिटी भयभीत है।
शिक्षा माफिया जैसे शब्द शायद सिर्फ इसी देश में पाए जाते हैं, जहां शिक्षा के नाम पर छात्रों और शिक्षकों को बुरी तरह लूटा जाता है, उन्हें शिक्षा के नाम पर तिकड़म करने के हज़ारों रास्ते सिखाये जाते हैं। औपचारिक रूप से नहीं, बल्कि ऐसे संस्थानों में अधिकारियों द्वारा ऐसे रास्तों पर चल कर दिखाया जाता है. vidhannews.in ने शुआट्स के हालात को लेकर कई शिक्षकों और छात्रों के साथ बातचीत की:

दो तरह की नियुक्तियां
यूनिवर्सिटी में दो किस्म के पद हैं: एक तो जिन पर सोसाइटी द्वारा नियुक्ति की जाती है, और दूसरे वे जिनपर सरकारी नियुक्तियां होती हैं। अभी हालात ये हैं कि सोसाइटी के तहत आने वाले शिक्षकों को पिछले करीब नौ महीनों से कोई तनख्वाह नहीं मिली। आप सोचिए इस देश में बेरोजगारी क्या कैसा हाल है! इनमें से कई या लगभग सभी पी एचडी धारक है और बिना एक भी पैसे लिए पूरे नौ महीनों से काम किये जा रहे हैं। आर बी लाल की अनुपस्थिति में बताया जा रहा है कि उनके सुपुत्र प्रिंस ने कार्यभार संभाला है. जैसे किराने की दुकान में पिता अपनी गैरहाजिरी में अपने बेटे को गल्ले पर बैठा जाता है, ठीक वैसा ही हाल एक विश्वविद्यालय में है! तो हाल ही में यूनिवर्सिटी (SHUATS University) के मास कम्युनिकेशन विभाग के शिक्षकों ने ठानी कि वे प्रिंस महोदय से जाकर पैसे की मांग करें।
पहले तो उनके समझाया गया कि पैसों की किल्लत है वगैरह पर बाद में शिक्षकों के साथ बदतमीजी के साथ पेश आए और धमकी भरे स्वर में बात की। एक दो दिन के बाद शिक्षक फिर डीन के पास पहुंचे तो बाकायदा उनके साथ मार-पीट की गई और एक शिक्षक बुरी तरह खून में लथपथ होकर अस्पताल पहुंचा और वहां आई सी यू में उन्हें भर्ती किया गया। यानी कि अपनी तनख्वाह मांगने गए शिक्षकों को मारा पीटा गया और बुरी तरह घायल किया गया। प्रयागराज के स्थानीय अख़बारों में यह खबर तस्वीरों के साथ प्रकाशित की गई है।

कौन पढ़ायेगा अपने बच्चों को?
अब आप सोचिये वे कौन से अभिभावक होंगे जो इस तरह की यूनिवर्सिटी (SHUATS University)में अपने बच्चों का दाखिला करवाएँगे? इसके लिए यूनिवर्सिटी ने एक और तिकड़म किया हुआ है। वह ऑनलाइन ही बच्चों का एडमिशन कर दे रही है। न ही बच्चों को दाखिले की कोई परीक्षा देनी है और न ही कैम्पस आना है। यूनिवर्सिटी को मालूम है कि जैसे ही बच्चे और उनके अभिभावक यूनिवर्सिटी कैंपस आएंगे और शहर में इधर उधर जाएंगे, स्थानीय अखबार देखेंगे, उनको इस जगह की समूची कहानी समझ आ जाएगी और फिर वे उलटे मुंह वापस लौट जाएंगे।
फीस के पैसे ऐयाशी में?
फीस के पैसे जा कहां रहे हैं? शिक्षकों और पूर्व अधिकारियों ने गुमनामी की शर्त पर बताया कि यूनिवर्सिटी को पैसे चाहिए वकीलों और अदालत के खर्च पूरे करने के लिए। और आर बी लाल एंड कंपनी के जेब भरने के लिए। इसलिए शिक्षकों को भूखे रख कर, छात्रों को किसी तरह भर्ती करके उनसे फीस झटक कर यह काम किया जा रहा है। शिक्षकों का कहना है कि शिक्षा के नाम पर इतनी ओछी हरकत किसी ने पूरे देश में नहीं की होगी।
इस शिक्षा माफिया के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं?
लोग सवाल उठा रहे हैं कि इतनी गड़बड़ियों में फंसे आर बी लाल के खिलाफ सरकार और प्रशासन कुछ कर क्यों नहीं रहे. क्या है आर बी लाल में ऐसा? जिस शहर में अतीक अहमद जैसे माफिया का अंत हुआ, यह परिभाषा में शिक्षा जगत मे माफिया शामिल नहीं? आर बी लाल एंड कंपनी के बारे में कहा जाता है कि उनके खिलाफ धर्म परिवर्तन, हत्या, गबन, वित्तीय गड़बड़ियों, अवैध रूप से मृत लोगों के नाम पर शस्त्रों के लाइसेंस लेने जैसे कई कई मामले बनते हैं. फिर भी कैसे वह अपनी तिजोरी भरता जा रहा है।यूनिवर्सिटी के काम करने वाले ईसाई शिक्षकों का कहना है कि यह शख्स शिक्षा के साथ साथ ईसाइयत के नाम पर भी कलंक है।
आर बी लाल सपा और बसपा की शासन के दौरान किस तरह से प्रशासन का उपयोग अपने कल्याण के लिए करता था, यह सभी जानते हैं. प्रशासनिक अफसरों ने भी उसका उपयोग किया. प्रयागराज के ही एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने अपने घर के कुछ लोगों की वहां नियुक्तियां करवाईं। ये बातें जगजाहिर हैं।
सबसे खस्ता हाल टीचर्स और बच्चों का
अभी तो लाल परिवार की तमाम हरकतें जारी ही हैं। टीचर्स से बात करने पर पता चलता है कि वे तो पूरी तरह असहाय हैं और असमंजस में हैं. उन बेचारों को यह भी समझ नहीं आ रहा, कि जब वे अपना काम किये जा रहे हैं, तो उन्हें अपने घर परिवारों को चलाने के लिए हर माह का वेतन क्यों नहीं मिल रहा. सबसे आश्चर्य की बात तो उन्हें यह लगती है कि सोसाइटी के टीचर्स को तो पैसे मिलने ही चाहिए, पर जो सरकारी नियमों के तहत नियुक्त हुए हुए हैं, और जिनके पैसे सरकारी खजाने से यूनिवर्सिटी के खजाने में आते हैं, उसका क्या किया जाता है? क्या उसका भी लाल परिवार अपनी ऐयाशी और कानूनी खर्चों के लिए उपयोग कर ले रहा है? टीचर्स के साथ साथ सबसे बुरा हाल उन बच्चों का है जिन्होंने इस यूनिवर्सिटी पर भरोसा किया और इसमें दाखिला लिया है। उनका भविष्य भी अधर में है।
सरकार से ही टीचर्स को उम्मीद
टीचर्स नौकरी जाने के डर से खुल कर सामने नहीं आ पा रहे। यदि अतीत में यूनिवर्सिटी के किसी भी कर्मी ने लाल परिवार के विरोध में कुछ भी कहा है तो किसी न किसी बहाने उसे नौकरी से हटा दिया गया है. यूनिवर्सिटी के एक पूर्व शिक्षक ने यह भी बताया कि हाल की परिस्थितियों में तो कई शिक्षकों के घरों में खाने तक के लाले पड़़ गये हैं। वे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिये फीस तक नहीं दे पा रहे। यह सब कुछ इतना पीड़ादायक है कि यह समझ पाना ही मुश्किल है कि शिक्षा की दुनिया से जुड़ा कोई भी व्यक्ति इतना शातिर और असंवेदनशील कैसे हो सकता है। सरकार या प्रशासन एवं न्यायपालिका स्वयं से इन घटनाओं को संज्ञान में क्यों नहीं लेते?
उत्तर प्रदेश सरकार को तुरंत इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए. शिक्षकों और छात्रों का भरोसा जीतना चाहिए और यूनिवर्सिटी को अपने कब्जे में ले लेना चाहिए। इसी बीच वहां किसी ईमानदार शिक्षाविद या प्रशासक की नियुक्ति करनी चाहिए जो संक्रमण काल में यूनिवर्सिटी की देखभाल कर सके और यह सुनिश्चित करे कि बच्चे, शिक्षक और वहां काम करने वाले बाकी हर स्तर के कर्मी सुरक्षित हों और उन्हें नियम के मुताबिक अपने वेतन, भत्ते आदि मिलते रहें।अधिकतर शिक्षकों का मानना है कि जब तक यह शिक्षा संस्थान किसी भी तरह से लाल परिवार के शातिर शिकंजे से मुक्त नहीं होगा, यहां की यातना समाप्त नहीं होगी। मूल रूप से शिक्षा के साथ इनका कोई संबंध ही नहीं। इन्हें सत्ता, धन और ऐयाशी में दिलचस्पी है। इसके लिए वे इस यूनिवर्सिटी का शोषण कर रहे हैं। अपने कुटिल कृत्यों को छिपाने के लिए ये धर्म की आड़ भी लेते हैं और दुनिया के सामने एक बिशप और चमत्कारी बाबा की तरह पेश आते हैं।
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