देश-दुनिया में मानसिक विकारों से जूझ रहे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है ।
ज्यादातर केसों में दवाइयां उम्मीद के मुताबिक काम नहीं कर पा रही हैं।
ऐसे में सोशल प्रिस्क्रिप्शन को अपनाने की मुहिम तेज हो रही है। ब्रिटेन ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।
प्लॉस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित लेख के मुताबिक, 3 लाख बुजुर्गों पर किए गए एक शोध के मुताबिक, अकेलेपन से मौत का रिस्क एक दिन में 15 सिगरेट पीने जितना बढ़ जाता है।
ब्रिटेन का नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) अकेला बड़ा हेल्थ केयर सिस्टम है, जो राष्ट्रीय स्तर पर सोशल प्रिस्क्राइबिंग को फंड दे रहा है यानी की ब्रिटेन में सोशल प्रिस्क्रिप्शन की शुरुआत हो चुकी है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोनाकाल में अकेलेपन से जूझ रहे लोगों को देखने के बाद पता चला है कि सोशल प्रिस्क्रिप्शन दवाओं से ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।
दवाओं की सूची में ऐसे बहुत कम हथियार हैं जो स्वास्थ्य के सामाजिक कारकों पर काम कर सकें। ऐसे में सोशल प्रिस्क्रिप्शन समाधान बन सकता है।
इसमें चिकित्सक अपने मरीज की मन की स्थिति के हिसाब से उसे नृत्य, संगीत, तैराती या पेंटिंग क्लास जैसी किसी सांस्कृतिक गतिविधि में शामिल होने जैसी चीजें प्रिस्क्राइब कर सकते हैं।
सोशल प्रिसक्रिप्शन को लेकर पीड़ित का इलाज कर रहे चिकित्सक की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। क्योंकि, वह मरीज की रुचियों, और प्रेरणाओं के बारे में जानता है।
जानकारों का कहना है कि अगर किसी को शुरू से मानसिक स्वास्थ्य को बिगड़ने नहीं देना है तो उसका सीधा तरीका है कम उम्र से ही सामाजिक जुड़ाव की आदत बढ़े।
यानी की बच्चों में शुरुआत से ही सामाजिक जुड़ाव की भावना पैदा करनी होगी। इसके लिए अभिभावकों को आगे आना होगा।
अगर किसी बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो भी उसे जल्दी से जल्दी सामाजिक गतिविधियों में शामिल करने से फायदा मिल सकता है।
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