Indo Pak Shimla Agreement: भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते ने आज 51 साल पूरे कर लिए। आज ही के दिन 1972 में दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ था। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संघर्षों को दूर कर सशक्त एवं शांतिपूर्ण रिश्तों की स्थापना करना था। इसे पाकिस्तान और भारत के बीच दशकों से चली आ रही विवादों और जंगों के बीच एक नई किरण के रुप में भी देखा गया। लेकिन अपने चरित्र के मुताबिक इसे लेकर भी पाकिस्तान कभी पाक नहीं रहा और लगातार नापाक हरकतें करता रहा। जबकि भारत हमेशा शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते को आगे बढ़ाने का हिमायती रहा है।
वह ऐतिहासिक पराजय
1971 में घटित युद्ध भारतीय इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। इस महायुद्ध में भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों को पूरी तरह से हराया और उन्हें अपने आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर कर दिया। यह ऐसी ऐतिहासिक पराजय थी जिसे पाकिस्तान कभी नहीं भुला सकेगा। भारतीय सेना ने इस युद्ध में पाकिस्तान को न केवल मारकर धूल चटाई, बल्कि उसे दो टुकड़ों में बांट दिया। इस परिणामस्वरूप, पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से से एक अलग देश का उद्भव हुआ, जिसे बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है।
यह था शिमला समझौता
1971 की जंग में शर्मनाक हार के बाद पाकिस्तान लगातार संकट के दौर से गुजर रहा था। ऐसे समय में भारत ने एकबार पाकिस्तानी आवाम की परेशानियों को समझते हुए फिर से दरियादिली दिखाया। भारत भी अपने विकास के लिए पाकिस्तान की ओर से पूर्व में किए गए हरकतों को भूलाकर शांति के साथ आगे बढ़ना चाहता था। ऐसे में 2 जुलाई 1972 को शिमला में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। जिसमें दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) की मौजूदगी में एक समझौता पर हस्ताक्षर किए। (इस दौरान ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के साथ उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो (Benazir Ali Bhutto) भी शिमला आई थी, जो बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी बनीं थी।) जिसे शिमला समझौते के नाम से जाना गया।
संवेदशीलता से आगे बढ़ने की पहल
शिमला समझौते (Shimla Agreement) में सहमति बनी थी कि कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी विवाद हैं, उनका हल बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण तरिके से निकाला जाएगा। इस समझौते के तहत पाकिस्तान ने भारत से वादा किया था कि वह आतंकवाद का समर्थन नहीं करेगा और दोनों देशों के बीच सीमा विवादों का शांतिपूर्ण समाधान ढूंढ़ने के लिए संवेदनशील तरीके से आगे बढ़ेगा।
शिमला समझौते के तहत भारत ने भी पाकिस्तान से वादा किया था कि वह अपनी विदेशी नीतियों के तहत पाकिस्तान की आवाज को समझेगा और शांतिपूर्ण द्विपक्षीय संपर्क को बढ़ावा देगा। यह समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करके रखने के लिए महत्वपूर्ण है और सकारात्मक कदम था। इसे दुनियाभर में सराहा गया और भारत-पाकिस्तान के बीच एक नए युग की शुरुआत मान गया।
शिमला समझौते की बड़ी बातें
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी विवाद हैं, उनका हल शांतिपूर्ण ढंग से बातचीत कर निकाला जाएगा। इस समझौते में यह भी स्पष्ट किया गया था कि कोई भी देश दोनों के बीच के इन विवादों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाएगा। समझौते में युद्ध बंदियों की अदला-बदली की भी बात कही गई थी। यानी कि युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए सैनिकों को उनके देश को सौंप दिया जाएगा।
इस समझौते में राजनयिक संबंधों को सुधारने और सामान्य किए जाने की भी बात कही गई थी। साथ ही दोनों देशों में फिर से व्यापार शुरू करने की बात कही गई थी। कश्मीर में दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) स्थापित किए जाने निर्धारित किया गया था। और इसके तहत यह भी समझौता था कि दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ बल का प्रयोग नहीं करेंगे। इस समझौते में इस बात पर भी सहमति बनी थी कि दोनों ही देशों की सरकारें एक दूसरे देश के खिलाफ प्रचार को रोकेंगी।
जनसाधारण के मन की बात
शिमला समझौता दोनों देशों के बीच जनसाधारण की शांति की इच्छा को दर्शाता है। दोनों देशों के नेताओं ने एक-दूसरे की सद्भावना को दर्शाया और एक संघर्षमुक्त एवं विकासशील क्षेत्र का वादा किया। यह समझौता न केवल दोनों देशों के बीच सशक्त संबंधों की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा करेगा बल्कि यह भी उम्मीद की जा रही थी कि यह समझौता दोनों देशों के बीच सशक्त और स्थिर संबंधों की नींव रखने से साथ-साथ पूरे दक्षिण एशिया में भी स्थिरता एवं शांति के अवसर को आगे बढ़ाने का काम करेगा।
स्थायी शांति व भरोसे की बुनियाद
वह एक ऐतिहासिक पल था जब संघर्षरत दिनों के बाद दोनों देशों ने एक नयी दिशा में बढ़ने के लिए एक साथ हाथ मिलाया। शिमला समझौते की घोषणा के बाद दोनों देशों के नागरिकों में उम्मीद का माहौल है। अब हमें इस समझौते को सुनिश्चित करना होगा कि यह बस एक कदम नहीं बल्कि स्थायी शांति और विश्वास की बुनियाद बने। आगे की प्रगति के लिए हमें संघर्षों की जगह सहयोग और मित्रता को प्रधानता देनी होगी।
इससे संघर्षों के दौरान पीड़ित जनता को सुरक्षा और आत्मविश्वास का संदेश मिलेगा। इस समझौते के अंतर्गत दोनों देशों के बीच बातचीत और सहयोग के जरिए से द्विपक्षीय समस्याओं का हल ढूंढ़ा जाएगा। लेकिन चरित्र से ही नापाक पाकिस्तान कभी भी इस समझौते को लेकर भी पाक नहीं रहा। उसके नेता सामने से कुछ बोलते रहे और पीछे सेना के साथ कुछ और ही खिचड़ी पकाते रहे।
पर पाक को समझाए कौन
1971 युद्ध में मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान की सेना ने 1999 में कारगिल में घुसपैठ कर भारतीय सेना को युद्ध के लिए मजबूत किया। नतीजा वहीं निकला, जो तय था। इस बार भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब मिला। भारतीय सेना ने उसे एक बार फिर धूल चटाई। अभी भी पाकिस्तान की आदत नहीं गई है। अक्सर वह सीजफायर का उल्लंघन करता रहा है। आतंकी घुसपैठ की भी कोशिशें होती रही हैं। हालांकि सेना अक्सर उन्हें कामयाब नहीं होने देती।
तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें