Opposition Unity War of Words : ‘हिन्दू विरोध ही है विपक्षी एकता का आधार’: आरएसएस

Opposition Unity War of Words : बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता के किए जा रहे प्रयासों पर संंघ ने अपने मुख पत्र के जरिए पांचजन्य कड़ा प्रहार किया है। आरएसएस ने इसे 'हिन्दू विरोध ही है विपक्षी एकता' करार दिया है।

Opposition Unity War of Words : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) विपक्षी एकता के लिए किये जा रहे प्रयासों को किस तरह देखता है, यह जानने में दिलचस्पी होना स्वाभाविक है। आम तौर पर कांग्रेस और अन्य विरोधी दल कहते सुने जाते हैं कि भाजपा उनसे डरी हुई है, प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस से भयभीत हैं और इसलिए वे कई सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग करके राहुल और विपक्ष के अन्य नेताओं को फंसाना चाहते हैं।

हिन्‍दू यानी धर्मनिरपेक्षता 

आर एस एस (RSS) के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य (Panchjanya) ने इस सप्ताह एक संपादकीय में कहा है कि “तथाकथित” विपक्षी एकता की जड़ में हिंदू विरोध है। यही हिन्दू उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता है। यह संपादकीय 2024 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ संभावित गठबंधन पर चर्चा के लिए 17 विपक्षी दलों की बैठक पर टिप्पणी कर रहा है।

अनुच्छेद 370 हटाने की बात

संपादकीय में आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा दिल्ली अध्यादेश पर सभी दलों से आम सहमति की मांग का उदाहरण देते हुए कहा गया, “आप ने दिल्ली के लिए लाए गए अध्यादेश के खिलाफ सभी दलों की सहमति की शर्त रखी। उमर अब्दुल्ला ने तुरंत पूछा कि जब अनुच्छेद 370 हटाने की बात थी, तब ये पार्टियां शांत थीं। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जो पार्टियां धारा 370 हटाने पर चुप रहीं, वे धर्मनिरपेक्ष कैसे हो सकती हैं? पांचजन्य का दावा है कि इसका मतलब है कि अनुच्छेद 370 के पक्ष में होना ही धर्मनिरपेक्ष होने की कसौटी है।

धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब

संपादकीय में कहा (Opposition Unity War of Words) गया है- “भारत में इस्लाम के विस्तारवाद की यह अवधारणा धर्मनिरपेक्षता की उसी परिभाषा की पुष्टि करती है, जो एक बार अरुण शौरी ने दी थी”। गौरतलब है कि शौरी ने कहा था भारत में धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब है कि यदि मुसलमान 200 प्रतिशत अपने धर्म पर कायम रहते हैं, तो वे धर्मनिरपेक्ष हैं; और यदि हिंदू अपने धर्म को पूरी तरह अस्वीकार करते हैं तभी वे धर्मनिरपेक्ष हैं।

विपक्षी एकता की जड़

लेख में आरोप लगाया गया है कि “तथाकथित विपक्षी एकता तात्कालिक (और वास्तव में आपराधिक) उद्देश्यों के लिए हो सकती है। इसका मकसद है उनके संबंधित स्थानीय और अलग-थलग नेताओं के कद और महत्व को बनाए रखना, उनके परिवारों के राजनीतिक-आर्थिक हितों की रक्षा करना वगैरह।” लेकिन इस बात पर जोर दिया गया है कि इस विपक्षी एकता की जड़ उसी हिंदू विरोध में है, जिसे वे धर्मनिरपेक्षता का नाम देते हैं।

हिंदू विरोधी होने की प्रतिस्पर्धा

संपादकीय का विचार है: “जैसे ही कांग्रेस कर्नाटक में सरकार में आती है, वह धर्मांतरण विरोधी कानून को खत्म करने और गोहत्या को मंजूरी देने की बात करती है। इससे धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर कांग्रेस का कद बढ़ जाता है| जाहिर है, ऐसी स्थिति में, अन्य दलों को कुछ भी करना होगा, और फिर उनमें हिंदू विरोधी होने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी।

हिंदू दक्षिणपंथी लेखकों और स्तंभकारों द्वारा कवर किए गए कुछ अन्य विषयों में पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का देश पर प्रभाव और विवादास्पद राजद्रोह कानून शामिल हैं।

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