Bhagwan Vishnu: सनातन धर्म में भगवान विष्णु को एक श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। भगवान विष्णु त्रिदेव में से एक हैं। उन्हें जगत के पालनहार के रूप में जाना जाता है। भगवान विष्णु के अनेकों नाम है जैसे हरि, अनंत, पुरुषोत्तम, नारायण, अच्युत आदि और इन सभी नामों का अपना-अपना एक अर्थ भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु की उत्पत्ति कैसे हुई और उनका नारायण नाम कैसे पड़ा? आइए जानते हैं इस लेख में।
ऐसी हुई भगवान विष्णु की उत्पत्ति
शिव पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की उत्पत्ति शिव जी ने की है। एक बार जब शिवजी ने माता पार्वती से कहा कि एक ऐसा पुरुष होना चाहिए जो सृष्टि का पालन कर सके, तब शक्ति के प्रताप से भगवान विष्णु प्रकट हुए। भगवान विष्णु का रूप अद्वितीय था और उनके नयन कमल समान थें। वे चतुर्भुजी होने के साथ-साथ कौस्तुकमणि से भी सुशोभित थे। उनका नाम विष्णु उनके सर्वत्र व्यापक होने के कारण पड़ा। तब भगवान विष्णु ने विश्व के पालन करने का कार्यभार संभाला और जगत के पालनहार कहलाएं।
कैसे पड़ा भगवान विष्णु का नारायण नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के भक्त देवर्षि नारद ही भगवान विष्णु को नारायण कह कर पुकारते थें। जल का पर्यायवाची शब्द नीर है, जिसे संस्कृत में इस्तेमाल करते समय कुछ विशेष जगहों पर नर भी कहा जाता है और नारायण का शाब्दिक अर्थ है: जल जिसका प्रथम अधिष्ठान यानी रहने का स्थान हो। चूंकि भगवान विष्णु बैकुंठ धाम के क्षिर सागर के अनंत गहराई में रहते थे इसीलिए उन्हें नारायण कहकर पुकारा जाता था
ये है भगवान विष्णु के अन्य नामों का अर्थ
• जगत के पालन करता होने के साथ-साथ भगवान विष्णु दुखहर्ता भी हैं। इसीलिए उन्हें हरि कहकर भी संबोधित किया जाता है।
• भगवान विष्णु के अच्युत नाम का अर्थ है वो जिसे कभी नष्ट न किया जा सके अर्थात जो अमर हो।
• श्री हरि के पुरुषोत्तम नाम का अर्थ है पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ जो कि इनके श्री राम रूप को दिया गया था।
• श्री हरि का नाम विष्णु उनके कमल जैसे नयन, चतुर्भुज हाथ, कौस्तुकमणि से सुशोभित और सर्वत्र व्यापक होने के कारण ही रखा गया।
(यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है।)
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