जानिए क्यों हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में नहीं होती है शादी, बेहद खास है इसके पीछे की वजह,जानिए विस्तार से

हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में शादी करने की मनाही होती है। ऐसा करने से परेशानी बढ़ने लगती है और कई तरह के नुकसान होने लगते हैं।

Same gotra marriage: हिंदू धर्म में शादी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। विवाह के लिए सबसे पहले कुंडली मिलान किया जाता है क्योंकि यह बहुत जरूरी है। दांपत्य जीवन को सुखी बनाने में कुंडली का महत्वपूर्ण भूमिका है। कुंडली मिलान के समय गोत्र अवश्य देखा जाता है। ऐसे तो गोत्र सभी जातियों में महत्वपूर्ण होती है लेकिन ब्राह्मण परिवार में इसको लेकर बहुत ज्यादा चिंतित रहा जाता है।

पुराने  स्मृति ग्रंथ के अनुसार यदि कोई कन्या सगोत्री हो और प्रवर ना हो तो ऐसी कन्या के विवाह की अनुमति नहीं दी जाती है। गोत्र बहुत ही ज्यादा मायने रखता है।

Same gotra marriage: जानिए क्या होता है संतान गोत्र

Same gotra marriage
Same gotra marriage

महर्षि विश्वामित्र, भारद्वाज,गौतम,अत्री,वरिष्ठ,कश्यप इन सप्तर्षियों और आठवीं ऋषि अगस्ती के संतान गोत्र कहलाती है। अर्थात जिस व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज है उनके पूर्वज ऋषि भारद्वाज और वह व्यक्ति भी इस ऋषि का वंशज है। आगे चल के गोत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा।

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ऋषियों की संख्या लाखों करोड़ों होती है इसलिए गोत्र भी लाखों करोड़ों में माने जाने लगा। समानता आठ मूल गोत्र माने जाते हैं जिनके वंशज के पुरुषों के नाम पर अन्य गोत्र बनाए जाते हैं। शादियों में गोत्र का बहुत ही ज्यादा मानता होता है

जाने क्या होता है प्रवर

विवाह निश्चित करते समय गोत्र के साथ-साथ प्रवर का ख्याल रखना भी जरूरी है। प्रवर विप प्राचीन ऋषियों के नाम पर होते हैं हालांकि दोनों में बेहद अंतर होता है। गोत्र का संबंध रक्त से होता है जबकि प्रवर का संबंध आध्यात्मिकता से होता है। प्रवर की गणना गोत्र के अंतर्गत की जाने वाली जाति में सगोत्र वहीविवाह की धरण प्रवरो के लिए भी लागू होने लगी।

ब्राह्मणों में गोत्र प्रवर का बड़ा महत्व होता है। गौतम धर्म सूत्र में भी और सामान प्रबल विवाह का निर्देश दिया गया है यानी कि समान प्रवर या गोत्र में पुरुष को कन्या नहीं देनी चाहिए। ऐसा करने से धन की हानि होती है और कई तरह के विवाद होने लगते हैं।

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