Bhagwat Geeta Gyan: भगवत गीता हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय ग्रंथों में से एक है। भगवत गीता में श्री कृष्ण ने संसार के कल्याण के लिए बहुत सारे उपदेश दिए हैं, जिनका पालन अगर कोई मनुष्य कर ले तो वह संसार के समस्त दुखों और मोह माया से दूर हो जाता है। बहुत से लोग वर्ण व्यवस्था को गलत मानते हैं और आए दिन उसपर टिप्पणियां करते रहते हैं। लेकिन आज वर्ण व्यवस्था का अर्थ जन्म से लगाया जाता है। भगवत गीता से इस बात का ज्ञात होता है की वर्ण व्यवस्था की शुरुआत कर्म और गुणों के आधार पर हुई थी। पुराणों में ऐसी कई कथाएं मिलती हैं जिसमें व्यक्ति छोटे वर्ण में जन्म लेकर भी अपने कर्मों से उच्च स्थान प्राप्त किया था। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने चारों वर्णों के कुछ गुण बताएं हैं, जिसका अभाव होने पर कोई भी व्यक्ति उस वर्ण का पात्र नहीं रह जाता। तो आइए जानते हैं भगवत गीता के अनुसार विभिन्न वर्णों के गुण।

ब्राह्मण
भगवत गीता के अनुसार ब्राह्मण में यह 9 गुण होने चाहिए और अगर किसी व्यक्ति के अंदर ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी यह गुण नहीं है, तो उसे ब्राह्मण कहलाने कोई अधिकार नहीं है।
यह है ब्राह्मण के 9 गुण:
• सर्वदा मन वश में होना
• जो इंद्रियों का दमन करें
• वाणी और मन शुद्ध रखने के साथ धर्म के पालन के लिए कष्ट सहे
• भीतर और बाहर से शुद्ध रहना
• दूसरों को क्षमा करने की क्षमता रखना
• हमेशा निष्कपट रहना
• वेद, शास्त्र आदि का ज्ञान होना तथा दूसरों को ज्ञान अर्जित करना
• उपनिषद प्रतिपादित आत्मज्ञान का अनुभव
• वेद, शास्त्र और ईश्वर में श्रद्धा भाव होना

क्षत्रिय
गीता में श्री कृष्ण ने क्षत्रिय के लिए 7 गुण बताएं। यह गुड अगर किसी क्षत्रिय के अंदर ना हो तो वह क्षत्रिय कुल का कहलाने लायक नहीं है।
• शूर वीर होना
• तेजस्वी होना
• मन में धैर्य होना
• प्रजा का संचालन करना आना चाहिए
• युद्ध में कभी पीठ न दिखाएं
• हमेशा दान करने में आगे रहे
• शासन करने का भाव हो

वैश्य
गीता के अनुसार जो व्यक्ति व्यापार का कार्य करता है उसे अवश्य कहते हैं। गीता में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि एक ही परिवार में अलग-अलग वार्ण के लोग हो सकते हैं। जैसे किसी परिवार में एक व्यक्ति कारीगर है, दूसरा डॉक्टर है, तीसरा फौज में है और चौथा साफ-सफाई का कार्य करता है, तो ऐसे परिवार में सभी वर्णों के लोग मिलते हैं।

शूद्र
गीता के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो अपने कर्म से दूसरों की सेवा करने का कार्य करता करता है, वो शूद्र कहलाता है। भगवत गीता के श्लोक में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि यदि कोई व्यक्ति शूद्र होकर भी एक ब्राह्मण से उच्च कर्म करता है, तो उसका स्थान भी एक ब्राम्हण से ऊपर है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी, गणना अथवा सूचना की विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह विभिन्न प्रकार के माध्यमों, ज्योतिष, ग्रंथों और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर संग्रहित कर आप तक पहुंचाई गई है।
(यह ख़बर विधान न्यूज़ के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है।)
तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें।