Bhandara Niyam: आप भी लंगर या भंडारे में करते हैं भोजन? तो हो जाएं सावधान, बन सकते हैं पाप के भागी

Bhandara Niyam: अक्सर लोग मन्नत पूरी होने के बाद भंडारा कराते हैं। आप अगर भंडारा में भोजन करते हैं तो इससे जुड़े नियमों को जान ले वरना आप पाप के भागीदार बन जाएंगे।

Bhandara Niyam: हिंदू शास्‍त्रों में या पुराणों में कई जगह अन्‍नदान को महादान माना गया है। लोग इसलिए भंडारा करते हैं या लंगर बिठाते हैं। लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती हैं ऐसे आयोजनोंं में। विभिन्‍न अवसरों पर लोग भंडारा करााने का मन्‍नत मांगते हैं। यह काफी प्रसन्‍नता और उल्‍लास से आयोजित होता हैै।

लोग अपने सामर्थ्य के मुताबिक दान के साथ-साथ भंडारा (Bhandara Niyam) का भी आयोजन करते हैं। इसमें लोगों को बड़े ही श्रद्धा भाव से खाना खिलाया जाता है। पर इसमें आपको खाना चाहिए या नहीं, असली सवाल यही है। तो आईए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से…

बता दें कि भंडारे के आयोजन का मकसद गरीबों और असहाय को भोजन कराना है। आप यदि सक्षम हैं तो इस मकसद की पूर्ति नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि यदि आप सामर्थ्‍यवान हैं तो ऐसे आयोजनों में भोजन न करें। ऐसा कर आप दरअसल, किसी जरूरतमंद के हिस्‍से का भोजन कर लेते हैं। यह आपको पाप का भागीदार बना देता है।

सहयोग करें तो ही मिलेगा फल (Bhandara Niyam)

ऐसा नहीं है कि आप भंडारे या फिर लंगर में प्रसाद ग्रहण न करें। इसकी पाबंदी नहीं है आप पर। बस इतना जरूर है कि यदि आप सक्षम हैं कि जरूरतमंदों की मदद कर सकें तो आपको भंडारे में भोजन ग्रहण करने से पूर्व कुछ दान अवश्‍य करना चाहिए। अपनी क्षमता मुताबिक सहयोग कर आप यहां भोजन ग्रहण कर सकते हैं। इससे आप पाप का भागी नही पूण्‍य के पात्र बन सकते हैं।

शास्‍त्रों में मान्‍यता है कि जिसने ढिंढोरा पीटकर लोगों को खाने के लिए बुलाया हो, ऐसी जगह का भोजन नहीं करना चाहिए। इसलिए आपको इस बात का ध्‍यान रखना है। अक्सर भंडारे का भोजन उस व्यक्ति के लिए मना है, जो कि धर्म, साधना या उन्नति के मार्ग पर हैं। इसलिए ऐसे आयोजन में दान करें तो बेहतर। पर यदि आपके इसमें दान नहीं कर पाते हैं तो कोई बात नहीं। आप भंडारे में सेवा भी दे सकते हैं। यह आपको पूण्‍य दिलाएगा।

प्रसाद है यह

भंडारे के भोजन को भगवान का प्रसाद माना जाता है। यहां लोग इसे उसी रुप में ग्रहण करते हैं। धर्म शास्त्रों के मुताबिक भंडारों का आयोजन गरीबों के लिए किया जाता है। कम से कम एक वक्त का भोजन उपलब्ध कराया जा सके, यह प्रयास होता है। इसलिए मान्‍यता है कि भंडारों का आयोजन तो करना चाहिए लेकिन सभी लोगों को इसमें भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।

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