Brahma Baba Smriti Diwas: ब्रह्मा बाबा ने शाश्वत प्रेम सिखाया

Brahma Baba Smriti Diwas: मधुर, शांत, दिव्य समर्पण है इस प्रेम में। एक शाश्वत प्रेम जिसकी अनुभूति करना सिखाया दादा लेखराज ने। उन्हें दुनिया प्रेम से ब्रह्रमा बाबा के नाम से जानती है।

Brahma Baba Smriti Diwas: प्रेम का उच्चतम और शुद्धतम रूप देखना हो तो आप सोचेंगे मीरा का प्रेम, गोपियों का प्रेम आदि। पर एक और महान पुरुष हुए जिन्‍होंने शाश्‍वत प्रेम को जीया और सिखा दिया। ये हैं ब्रहृमा बाबा जिनकी पुण्‍यति‍थि‍ 18 जनवरी को मना रहे हैं हम। प्रेम उदात्‍त स्‍वरूप लिए था इसलिए दुनियावी कठिनाइयों के बाद भी वे अपने पथ से डिगे नहीं। वह आध्‍यात्मिक प्रेम था जिसने भी उसे समझा व जीया उनका जीवन धन्‍य हो गया।

सर्वशक्तिमान शिव बाबा से प्रेम

 ब्रहृमा बाबा का प्रेम उस सर्वशक्तिमान के प्रति रहा जिसे वे शिव बाबा कहते थे। शिव बाबा के ध्‍यान में रमे रहने वाले उस दिव्‍य महान आत्‍मा की कहानी सचमुच जीवन पलट देने वाली कहानी है। बाबा का निराकार परमात्मा, ‘शिव’ पर केंद्रित प्रेम को परिभाषित करना सरल तो नहीं पर कह सकते हैं वे गैर-भौतिक, शाश्वत इकाई के प्रेम थे जो कि प्रेम का उच्चतम और शुद्धतम रूप बन गया।

संसार में रहकर उससे परे रहना

बाबा सांसारिक परिस्थितियों में रहकर भी शिव बाबा की ध्यान में ऐसे मग्न रहते थे जैसे बस वही एक सच्‍चाई हैं। उनके इस दिव्‍य प्रेम का ही असर था कि अपने साथ रहने वालों को भी वे इसका सहज आभास करा देते और धीरे धीरे लोग शिव बाबा के हो जाते थे। बाबा अपनी मुरली में कहा करते थे कि संसार में रहकर भी ऐसे रहो जैसे कीचड़ में कमल। यानी संसार में रहो लेकिन इसकी बुराइयों को, पांच विकारों से स्‍वयं को अछूता रखो। यह दिव्‍य ज्ञान जिसने पाया वे वास्‍तव में उस प्रेम को भी जी गया जो शाश्‍वत प्रेम है।ब्रह्मा बाबा का जीवन कितना साधारण व सेवार्थ था, बड़ी दादियों ने बताया है। मुरली व बाबा के लिखित पत्रों से और भी दिव्‍य झलकि‍यां मिलती हैं उनके जीवन की।

बाबा की जीवन कहानी

बाबा का जन्म 15 दिसंबर 1884 को सिन्धहैदराबाद (वर्तमान समय पाकिस्तान में) में हुआ। उनके पिता खूबचंद कृपलानी एक ग्रामीण पाठशाला में प्राध्‍यापक थे। उनकी मां का देहांत उनकी अल्पायु में ही हो गया। वे बीस वर्ष के थे पिता खूबचंद चल बसे इसके बाद बाबा ने अनाज के दुकान पर काम करना शुरू कर दिया। जीवन बीतता गया। बाबा नामचीन हीरा व्‍यापारी बन गए। खूब व्‍यापार किया। समाज में बड़ा मान हुआ। लखी दादा प्रसिद्ध व्‍यापारी थे। कौन जानता था कि साठ साल का होने के बाद एक ऐसी कहानी का जन्‍म होगा जिसकी कल्‍पना भी नहीं की जा सकती थी।

दिव्‍य साक्षात्‍कार के बाद

बाबा की उम्र साठ बरस की रही होगी उन्‍हें परमात्‍मा के दिव्‍य साक्षात्कार होने लगे। उनकी गहरी आध्‍यात्मिक समझ तो थी ही। पर जब वे साक्षात्कारों की ऐसी श्रृंखला से गुजरने लगे तो लोग भी उनसे सहज जुड़ते गए। अब बाबा ने अपना व्यवसाय को समेट कर सारा समय, शक्ति और धन को उस संगठन में लगा दिया जो आज का ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय बना है। कौन है जो इस संस्‍था का नाम नहीं जानता। ऐसा सेवाकेंद्र जो लोगों के जीवन को बदलने के लिए कृतसंकल्‍प है। बता दें कि भारत भर में अनेक ब्रह्माकुमारी सेवाकेन्द्रों के स्थापना में मार्गदर्शन करते करते बाबा ने 18 जनवरी 1969 को अपना भौतिक देह त्याग दिया।

शिव बाबा ने जो सिखाया

ब्रह्मा बाबा ने जिस जीवन कौशल की शिक्षा दी वे शिक्षाएं अनमोल हैं। समय की कसौटी पर खरी उतरने वाली। यही कारण है कि आज जिन युवा बहनों को उन्होंने अपने समय में सबसे आगे रखा था आज वे सभी अपने 80-90 वर्ष की उम्र में भी शान्ति, प्रेम और ज्ञान का प्रकाश स्तम्भ बनकर आगे बढ़ रही हैं।

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आज माउंट आबु राजस्‍थान में जिसे मधुबन कहा जाता है बाबा का शान्ति स्तम्भ है। यह उनके जीवन और कार्यों को दी जाने वाली एक श्रृद्धांजलि है। यह स्‍तंभ लोगों को यह प्रेरणा देता आया है कि अति妘 सामान्‍य से असाधारण की यात्रा चुनौती जरूर है लेकिन ईश्‍वर का सच्‍चा संतान बनें। उनके बताए मार्ग पर चलकर देखें तो यह संभव है। गहन सत्‍यों को छू सकने की चुनौती जरूर है पर बाबा के पथ पर चलकर जीवन को धन्‍य किया जा सकता है।

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