
Chhath Puja 2025: छठ पूजा हिंदू धर्म का एक ऐसा पर्व है जो सूर्य उपासना को समर्पित है। यह त्योहार बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। छठ के दौरान महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा करती हैं। इस पूजा की सबसे खास बात यह है कि इसमें डूबते और उगते दोनों सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि डूबते सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा क्यों है? आइए जानते हैं—
डूबते सूरज को अर्घ्य देने का धार्मिक कारण (Chhath Puja 2025)
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव को जीवन और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। डूबते सूरज को अर्घ्य देना सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक माध्यम है।
यह माना जाता है कि दिनभर की ऊर्जा देने के बाद जब सूर्य अस्त होने लगता है, तब उसे धन्यवाद देने के लिए श्रद्धालु अर्घ्य चढ़ाते हैं। यह प्रकृति के प्रति आभार और संतुलन बनाए रखने का प्रतीक है।
छठी मैया का संबंध सूर्य से
छठ पूजा में सूर्य देव के साथ उनकी बहन छठी मैया की पूजा की जाती है। ऐसा विश्वास है कि छठी मैया संतान सुख और परिवार की समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
डूबते सूरज को अर्घ्य देने का अर्थ है—जीवन के हर उतार-चढ़ाव में सूर्य और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त करना।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी है खास महत्व
वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होती हैं।इन किरणों से शरीर में विटामिन D का निर्माण होता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा, जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति मिलती है।
आस्था और प्रकृति का संगम
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह प्रकृति, सूर्य और जल के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। डूबते सूरज को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि इंसान को केवल शुरुआत (उगते सूरज) ही नहीं, बल्कि हर अंत (डूबते सूरज) का भी सम्मान करना चाहिए।
छठ पूजा में डूबते सूरज को अर्घ्य देना सूर्य देव की कृपा के प्रति आभार, परिवार की खुशहाली की कामना और प्रकृति के संतुलन की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि यह परंपरा सदियों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है।
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