Govardhan Puja Vrat Katha : दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की मान्यता है। इसे अन्नकूट (Annakut Puja) त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इस साल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की उदया तिथि दिवाली के दूसरे दिन होने के कारण गोवर्धन पूजा 14 नवंबर मंगलवार को मनाई जाएगी। गोवर्धन पूजा के मौके पर गाय के गोबर गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है और फिर उनकी पूजा कर उनसे अपने घर की समृद्धि और आशीष की कामना करते हैं। मान्यता के मुताबिक गोबर से बना पर्वत घर की सभी समस्याओं का निवारण करता है और सुख समृद्धि में वृद्धि करता है।
गोर्वधन पूजा (Govardhan Puja Vrat Katha, Annakut Puja) का इतिहास द्वापर युग और भागवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा है। गोवर्धन पूजा इसकी कथा के बिना पूर्ण और फलयादी नहीं माना जाता है। तो आइये भागवताचार्य आशीष राघव द्विवेदी जी से जानते हैं गोवर्धन पूजा कथा के बारे में…
गोवर्धन पूजा की कथा (Govardhan Puja Vrat Katha, Annakut Puja)
पौराणिक कथा के मुताबिक द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को काफी अभिमान हो गया था। इंद्र के इसी अभिमान तोड़ने करने के लिए भगवान कृष्ण ने एक अद्भुत लीला की। कथा के मुताबिक एक दिन कान्हा ने देखा कि सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना और किसी पूजा की तैयारी में काफी व्यस्त थे। इसे देखते हुए कान्हा ने माता यशोदा से पूछा कि सभी लोग किस चीज की तैयारी कर रहे हैं?
इस यशोदा माता ने कहा कि सभी बृजवासी इंद्रदेव की पूजा करते हैं जिससे गांव में अच्छी बारिश होती है और फसल खराब नहीं होता है। इससे लोगों का घर अन्न और धन से भरा रहता है। साथ ही माता यशोदा ने कान्हा से कहा इंद्र देव की कृपा से ही बारिश और अन्न की पैदावार होती है, साथ ही गायों को चारा भी मिलता है।
इस पर कान्हा ने यशोदा माता से कहा कि फिर इंद्र देव की नहीं गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए, क्योंकि गायों को चारा तो वहीं से मिलता है। साथ ही कान्हा ने कहा कि इंद्रदेव तो कभी प्रसन्न होते ही नहीं और न ही दर्शन देते हैं। कान्हा कि इस बात को सुनकर बृजवासी इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा अर्चना करने लगे। इससे इंद्र देव काफी क्रोधित हो गए और बृज में मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की कि बृज वासियों के फसल, गांव, घर सब पानी में डूबने लगा।
ब्रजवासियों को परेशान होता देख भगवान कृष्ण ने पूरे गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया और सभी को अपने गाय और बछड़े समेत पर्वत के नीचे आने के लिए कहा। इसे देखते इंद्र का गुस्सा और भी भड़क गया और उन्होंने वर्षा की गति को और तीव्र कर दिया। इसके बाद कृष्ण जी ने अपने सुदर्शन चक्र से कहा कि वो पर्वत के ऊपर विराजमान होकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें। साथ ही उन्होंने शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोक दें।
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लगातार सात दिनों तक इंद्र देव वर्षा करते रहे लेकिन ब्रजवासियों का कुछ नहीं बिगड़ा। तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि भगवान विष्णु के अवतार हैं कृष्ण। साथ ही उन्हें इंद्र को कृष्ण जी की पूजा की भी सलाह दी। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र ने कृष्ण जी से क्षमा मांगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट (Annakut Puja) का 56 तरह का भोग लगाया। इसके बाद से गोवर्धन पर्वत पूजा की जाने लगी और भागवान कृष्ण को प्रसाद में 56 तरह का भोग चढ़ाया जाने लगा।
(डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धर्म शास्त्र और सामान्य जानकारी पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है। Vidhan News इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।)
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