Kuleth Temple: ओडिशा के भगवान जगन्नाथ के किस्से अपने खूब सुने होंगे। मध्य प्रदेश के कुलेथ मंदिर में विराजमान जगन्नाथ के चमत्कारी किस्से हर किसी को मोहित कर देते हैं। 9 साल के भक्त साथ भगवान जगन्नाथ उसके घर तक खिंचे चले आए थे। तभी उस स्थान पर ही कुलेठ मंदिर बन गया। आज भी इस मंदिर में चमत्कार देखने को मिलते हैं। आईए जानते हैं कि पुरी से भगवान जगन्नाथ कुलैथ कैसे पहुंचे…
मध्य प्रदेश के ग्वालियर से 17 किलोमीटर दूर कुलेथ गांव स्थित है। कुलैथ गांव में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। यहां पुरी की तरह ही हर साल 20 जून को रथयात्रा निकाली जाती है। कहा जाता है कि हर साल भगवान रथ में बैठकर जगन्नाथ पुरी से कुलेथ मंदिर में आते हैं। इसलिए भगवान के स्वागत में रथ यात्रा निकाली जाती है।
9 वर्षीय भक्त के साथ चले आए भगवान
बताया जाता है की कुलेथ गांव के एक श्रीवास्तव परिवार के संपन्न व्यक्ति थे, उन्हीं के साथ भगवान जगन्नाथ ओडिशा से ग्वालियर आए थे, तभी से यहां हर साल मेले और रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। श्रीवास्तव परिवार और मंदिर के पुजारी किशोरीलाल श्रीवास्तव के अनुसार उनके बाबा सांवलेदास बाल्यावस्था में जगन्नाथ मंदिर दंडवत करते गए थे और उन्होंने 1846 तक सात बार पुरी की दंडवत यात्रा की। इस दौरान भगवान जगन्नाथ 9 वर्षीय बालक के साथ ही उसके घर तक चले आए। फिर उसी घर में जगन्नाथ को विराजित कर कुलैथ मंदिर की।स्थापना कर दी गई। अब यह मंदिर 177 साल का हो गया है।
किशोरीलाल श्रीवास्तव के ने बताया कि 1807 में उनके बाबा के माता-पिता का देहांत हो गया। इस पर बालक सांवलेदास को बताया गया कि उनके माता-पिता जगन्नाथजी गए हैं और यदि वे दंडवत करते हुए वहां जाएं तो उन्हें वे मिल जाएंगे। 1816 में नौ साल की उम्र में वे दंडवत करते हुए जगन्नाथ पुरी ओडिशा के लिए रवाना हो गए। रास्ते में उन्हें एक साधु रामदास महाराज मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई है और वे इसी प्रकार दंडवत करते हुए सात बार जाएंगे, तो उनको चमत्कार दिखेगा। सांवलेदास लगातार पुरी की यात्रा करते रहे।
सपने में मिला था मंदिर बनाने का आदेश
1844 की यात्रा के दौरान उन्हें स्वप्न आया कि वे कुलैथ में मंदिर बनवाएं लेकिन वे मूर्ति पूजा के उपासक नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने मंदिर का निर्माण नहीं कराया और वे दो वर्ष तक भटकते रहे। इसके बाद उन्हें 1846 में फिर सपने में आदेश मिला कि वे चमत्कार देखें। यदि वे चावल के घट भरकर घर में एक स्थान पर रखेंगे तो वह चार भागों में विभक्त हो जाएगा। उन्होंने वैसा ही किया और परिणाम भी वैसा ही हुआ। मिट्टी के मटके में पके चावल रखने के बाद यह चार भागों में बंट गया। बाद में उन्हें फिर सपना आया कि गांव के पास बहने वाली सांक नदी में चंदन की लकड़ी की दो मूर्तियां रखी हैं, उन्हें लाकर उनके हाथ पैर बनवाए। इसके बाद उन्होंने उन मूर्तियों को लाकर कुलैथ गांव में स्थापित कर दिया, तभी से यहां पर मंदिर में भगवान विराजमान हैं। 1846 में घर में ही मंदिर की स्थापना की गई। तब से आज तक वहां पूजा-अर्चना जारी है।
मूर्तियों का बदल जाता है आकार
कुलैथ में जगन्नाथजी मंदिर के पुजारी किशोरी लाल का कहना है हर साल जगन्नाथ पुरी में होने वाली रथ यात्रा साढ़े तीन घंटे के लिए रूकती है और उस वक्त वहां घोषणा की जाती है कि जगन्नाथजी, पुरी से ग्वालियर के कुलैथ चले गए हैं। किशोरी लाल का कहना है इस वक्त यहां चमत्कार होता है, कुलैथ की तीनों मूर्तियों की आकृति बदल जाती हैं। उनका बजन भी बढ़ जाता है। मुख्य पुजारी किशोरीलाल को भी इसका आभास होता है।
मंदिर में चढ़ाया मटके के हो जाते हैं 4 भाग
जब मूर्तियों का आकार बदल जाता है तो कुलैथ मंदिर की मूर्ति को रथ में बिठाकर रथ खींचने की शुरूआत जाती है। कुलैथ और पुरी में दोनों ही मंदिरों में चावल से भरे घट के अटका ( मटका) चढ़ाए जाते हैं। हालांकि यहां मटका चढ़ाए जाने पर यह चार भाग में बंट जाता है। मान्यता है कि आज भी कुलैथ के जगन्नाथ मंदिर में ऐसा ही चमत्कार होता है।
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