Lakshmi Ganesh Puja On Diwali Story : देशभर में दिवाली तैयारी अपने अंतिम चरण पर है। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और विध्नहर्ता गणेश जी की एक साथ पूजन की मान्यता है। ऐसे में सवाल रहता है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश की ही पूजा ही क्यों की जाती है, भगवान विष्णु यानी नारायण जी की क्यों नहीं? इसके साथ ही माता लक्ष्मी की मूर्ति को हमेशा गणपति की दाहिनी ओर ही क्यों रखी जाती है? आइए आचार्य आशीष राघव द्विवेदी जी से इसके बारे में विस्तार से जानते हैं…
दिवाली के दिन प्रदोष काल में माता महालक्ष्मी (Lakshmi Ganesh Puja On Diwali Story) पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दिवाली पर मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं और कार्तिक अमावस्या तिथि पर मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने आती हैं। दिवाली के दिन घरों को दीयों से सजाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि लक्ष्मी और श्री गणेश का आपस में क्या रिश्ता है और दीपावली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?
जब मां लक्ष्मी ने बनाया धन वितरक
लक्ष्मी जी जब सागर मन्थन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया, तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। उन्होंने धन को बांटने के लिए कुबेर प्रबंधक बनाया। वे धन बांटते नहीं थे, स्वयं धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी परेशान हो गई क्योंकि उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी।
उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि ‘तुम मैनेजर बदल लो।’ मां लक्ष्मी बोलीं, ‘यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं। उन्हें बुरा लगेगा।’ तब भगवान विष्णु ने उन्हें श्री गणेश जी की दीर्घ और विशाल बुद्धि का प्रयोग करने की सलाह दी। इसके बाद मां लक्ष्मी ने श्री गणेश जी को ‘धन का डिस्ट्रीब्यूटर’ यानी धन वितरक बनने को कहा।
तब कुबेर बने रहे भंडारी
श्री गणेश जी ठहरे महा बुद्धिमान। वे बोले, ‘मां, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना। कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हां कर दी। अब श्री गणेश जी लोगों के सौभाग्य के रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। कुबेर भंडारी ही बनकर रह गए। श्री गणेश जी पैसा सैंक्शन करवाने वाले बन गए।
गणेश जी की दरियादिली देख, मां लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्री गणेश को आशीर्वाद दिया, कि जहां वे अपने पति नारायण के संग ना हों, वहां उनके पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।
तो इसलिए होती है गणेश-लक्ष्मी की पूजा!
दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को। भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं। वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद, देव उठावनी एकादशी को। मां लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दिवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में, तो वे संग ले आती हैं श्री गणेश जी को। इसलिए दीपावली को लक्ष्मी-गणेश की पूजा (Lakshmi Ganesh Puja On Diwali Story) होती है।
ताकि बनी रहे शुभता व समृद्धि
माता लक्ष्मी को धन और ऐश्वर्य की देवी कहा जाता है। अगर धन और ऐश्वर्य किसी के पास ज्यादा आ जाए तो उसे अहंकार हो जाता है। मति भ्रष्ट हो जाती है। ऐसा व्यक्ति अहंकार के चलते धन को संभाल नहीं पाता। धन और वैभव को सद्बुद्धि के साथ ही साधा जा सकता है।
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गणपति बुद्धि के देवता हैं। जहां गणपति का वास होता है, वहां के संकट टल जाते हैं और सब कुछ शुभ ही शुभ होता है। इसलिए दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी पूजन किया जाता है, ताकि घर में लक्ष्मी का वास हो और शुभता व समृद्धि बनी रहे।
दिवाली के दिन नारायण की पूजा क्यों नहीं?
बता दें कि दिवाली चातुर्मास के दौरान आती है। इस अवधि के बीच हरि योग निद्रा में होते हैं। हरि की निद्रा भंग न हो, इसलिए दिवाली के दिन लक्ष्मी माता का आवाह्न तो किया जाता है पर हरि की नहीं। हां, दिवाली के बाद जब देवउठनी एकादशी आती है तो उस समय हरि की निद्रा समाप्त होती है और उनकी पूजा की जाती है। उस दिन देव दिवाली मनायी जाती है।
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लक्ष्मी की मूर्ति गणपति के दायीं तरफ क्यों?
लक्ष्मी माता की कोई संतान नहीं है। उन्होंने भगवान गणेश को अपना दत्तक पुत्र माना है। मान्यता है कि पुत्र के साथ माता को दायीं ओर बैठना चाहिए। साथ ही पति के साथ पत्नी बायीं ओर बैठ सकती है। यही कारण है कि लक्ष्मी नारायण की पूजा के दौरान लक्ष्मी जी को गणपति (Lakshmi Ganesh Puja On Diwali Story) के दायीं ओर बैठाया जाता है।
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