Banke Bihari Mandir: भारत ही नहीं दुनिया के कोने-कोने में वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की ख्याति बिखरी हुई है। हर साल तो छोड़िए, यहां हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए आते हैं। जबकि विशेष तीज-त्योहारों पर यहां इतनी भीड़ होती है कि पांव तक रखने की जगह नहीं मिलती।
वृंदावन, श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और बांके बिहारी मंदिर से तो हर कोई परिचित है, लेकिन विश्व प्रसिद्ध इस मंदिर के कुछ ऐसे अनजाने रहस्य हैं, जो आपको जानने ही चाहिए। इस रिपोर्ट में हम आपको मंदिर की कुछ अलग विशेषताएं बताएंगे।
यहां नहीं होती मंगला आरती
हिंदू देवी-देवताओं के हर मंदिर में सुबह 4 बजे मंगला आरती का आयोजन होता है। मंदिर चाहे भगवान शिव का हो, देवी मंदिर हो या फिर किसी अन्य देवी-देवता को हो, हर जगह प्रभु को जगाने के साथ-साथ मंगला आरती होती है, लेकिन बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती नहीं होती है।
इसके पीछे का कारण है भगवान श्रीकृष्ण का रास। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण रात में वृंदावन स्थित निधिवन में राधारानी और सखियों के साथ रास करने के लिए जाते हैं। इस कारण वे सुबह देर से उठते हैं, लिहाजा बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती नहीं होती है। सिर्फ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही इस आरती का आयोजन होता है।
बांके बिहारी मंदिर में नहीं कोई घंटी
आपने आम तौर पर सभी मंदिरों के मुख्य या प्रवेश द्वार पर घंटे या घंटियां लगी हुई देखी होंगी, लेकिन बांके बिहारी मंदिर में कहीं भी आपको घंटी नहीं मिलेगी। इसके पीछे भी एक विशेष कारण है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, बांके बिहारी मंदिर में स्थापित भगवान श्रीकृष्ण बाल रूप में है। धर्म पंडितों और वृंदावन के स्थानीय लोगों का कहना है कि बच्चों को शोर शराबे और घंटे-घंटियों की आवाज से दूर रखा जाता है। लिहाजा बांके बिहारी मंदिर में एक भी घंटी आपको नहीं मिलेगी।
बार-बार पर्दा डालते हैं पुजारी
यदि आप कभी बांके बिहारी मंदिर गए होंगे तो आपने गौर किया होगा कि मंदिर के पुजारी दर्शन के वक्त बार-बार बांके बिहारी का पर्दा डालते हैं। यानी दर्शन को बीच-बीच में पर्दे से रोकते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है? इसको लेकर भी वृंदावन वासियों और गोस्वामियों के बीच कई कहानियां प्रचलित हैं।
माना जाता है कि भक्ति में वशीभूत होकर बांके बिहारी भक्तों के साथ चले जाते हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार बांके बिहारी अपने भक्त के साथ चले गए थे। सुबह जब पुजारियों ने जब मंदिर के पट खोले तो वे अपने स्थान पर नहीं थे। इसके बाद से ही उनको भक्तों के सामने काफी देर तक नहीं रखा जाता। बार-बार पर्दा डाला जाता है।
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