Mangal Kavach Paath: मंगल पाठ से होगा मांगलिक व्यक्ति की शादी और अन्य समस्याओं का निवारण, मंगलवार के दिन अवश्य करें ये पाठ

Mangal Kavach Paath: हिंदू धर्म में ज्योतिष शास्त्र का विशेष महत्व होता है। ज्योतिष कुंडली में ग्रहों की दशा देखकर किसी भी व्यक्ति के जीवन में आने वाली समस्याओं और उनके निवारण के बारे में बता देते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की दशा ठीक ना हो तो उसे जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ज्योतिष के अनुसार विवाह भाव में शुभ ग्रह विराजमान हो तो शादी से गिरी हो जाती है वही अगर अशुभ ग्रह हो तो शादी में कई परेशानी आती है।

इन वजहों से आ सकती है शादी में बाधा:

आमतौर पर कालसर्प दोष, पितृ दोष, मंगल दोष, अंगारक दोष और गुरु चांडाल दोष के कारण शादी में बाधा आती है। वहीं इनमें अन्य ग्रहों और दूसरे दोषों का भी विचार किया जाता है। कोई भी व्यक्ति अगर मांगलिक हो तो उसकी शादी में समस्या अवश्य आती है। किसी भी मनुष्य की कुंडली में 12 भाव होते हैं जिनमें अगर पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में मंगल हो तो जातक मांगलिक कहलाता है।

मंगल पाठ से होगा समस्याओं का निवारण:

किसी भी जातक की कुंडली में अगर मंगल देव नकारात्मक स्थिति में बैठे हो तो उस व्यक्ति को विवाह से लेकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार मंगल ग्रह को शांत करने के लिए हर रोज तीन बार मंगल कवच का पाठ करना चाहिए। हालांकि ऐसे व्यक्ति जो यह प्रतिदिन नहीं कर सकते वे मंगलवार के दिन एक बार मंगल कवच का पाठ कर सकते हैं। मंगलवार के दिन इस पाठ का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में मंगल को भूमि का पुत्र कहा गया है। नाम से ही स्पष्ट है कि ये जीवन में हर प्रकार का मंगल संपादित करने में सक्षम हैं। इसलिए अगर आप की भी शादी में बाधा आ रही है तो मंगलवार के दिन मंगल कवच का पाठ अवश्य करें।

मंगल कवच पाठ:

अस्य श्री मंगलकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः । अङ्गारको देवता ।
भौम पीडापरिहारार्थं जपे विनियोगः।
रक्तांबरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत् ।
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा ममस्याद्वरदः प्रशांतः ॥ 1 ॥
अंगारकः शिरो रक्षेन्मुखं वै धरणीसुतः ।
श्रवौ रक्तांबरः पातु नेत्रे मे रक्तलोचनः ॥ 2 ॥
नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः ।
भुजौ मे रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा ॥ 3 ॥
वक्षः पातु वरांगश्च हृदयं पातु लोहितः।
कटिं मे ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः ॥ 4 ॥
जानुजंघे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा ।
सर्वण्यन्यानि चांगानि रक्षेन्मे मेषवाहनः ॥ 5 ॥
या इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रु निवारणम् ।
भूतप्रेतपिशाचानां नाशनं सर्व सिद्धिदम् ॥ 6 ॥
सर्वरोगहरं चैव सर्वसंपत्प्रदं शुभम् ।
भुक्तिमुक्तिप्रदं नृणां सर्वसौभाग्यवर्धनम् ॥
रोगबंधविमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः ॥ 7 ॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मंगलकवचं संपूर्णं ॥

डिस्क्लेमर: इस लेख में लिखित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता अथवा विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर जानकारियां आप तक पहुंचाई गई है। हमारा उद्देश्य केवल आप तक सूचना पहुंचाना है। इसके उपयोगकर्ता इसे महज एक सूचना समझ कर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की होगी।

(यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है)

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें, Twitter और Kooapp पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें।

 

- Advertisement -

Related articles

Share article

- Advertisement -

Latest articles