Pitambara Peeth : मध्य प्रदेश के दतिया शहर में मौज़ूद है सिद्ध पीतांबरा पीठ। इस मंदिर में मां बगलामुखी विराजती हैं। साथ ही यहां देवी धूमावती का मंदिर भी है। देवी धूमावती के दर्शन करना सुहागन स्त्रियों को मना है। इस सिद्धपीठ को काफी चमत्कारी माना गया है। आम लोगों से लेकर साधु-संत, नेताओं तक को इस सिद्धपीठ पर काफी विश्वास है। इस विश्वास की डोर ही भक्तों को दूर-दूर से यहां खींच लाती है।
भारत-चीन युद्ध के दौरान दिखाया था चमत्कार
देवी पीताम्बरा (Pitambara Peeth) युद्ध के समय दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने वाली देवी हैं। कहा जाता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान स्वामी जी महाराज ने सेना और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के अनुरोध पर मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुुंडीय महायज्ञ कराया था। चमत्कार देखिए, 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला लीं।
दिन में तीन बार रूप बदलती हैं मां पीताम्बरा
यहां भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से होते हैं। कहा जाता है कि मां पीताम्बरा (Pitambara Peeth) दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं। इसके बायीं ओर कुछ ही दूरी पर है मां धूमावती का मंदिर। इस मंदिर के अंदर सुहागिनें नहीं जा सकतीं। शादीशुदा महिलाओं का मातारानी के दर्शन करना सख्त मना है। हां, दूर से ही महिलाएं मातारानी के दर्शन कर सकती हैं। पट खुलने पर यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। ऐसी यहां दीवार पर चेतावनी लिखी हुई है।
कभी घनघोर जंगल था ये इलाका
पीठ की स्थापना स्वामीजी महाराज ने साल 1935 में की थी। उस समय दतिया का ये इलाका घनघोर जंगल हुआ करता था। स्वामीजी ने अपने तप से इस जगह को चमत्कारी बनाया। यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, राहुल गांधी, अमित शाह तक अपना शीश नवा चुके हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया तो अक्सर दतिया के इस धाम में आते रहते हैं। पीताम्बरा पीठ (Pitambara Peeth) में वनखंडेश्वर महादेव का भी मंदिर है। माना जाता है कि ये मंदिर महाभारत काल का है। सावन मास में यहां भक्तों की काफी भीड़ जुटती है।
शनिवार को ही खुलता है धूमावती का मंदिर
साल 1978 में सिद्ध स्वामीजी महाराज ने श्री धूमावती पीठम् की स्थापना की। कहा जाता है कि ये मंदिर भक्तों के लिए सिर्फ शनिवार को ही खुलता है। माना जाता है कि उस दिन देवी लक्ष्मी के रूप में होती हैं। हालांकि बाकी के दिनों में भी पट खुलते हैं लेकिन सिर्फ आरती के लिए।
नमकीन प्रसाद चढ़ाने की भी है परंपरा
धूमावती देवी को नमकीन प्रसाद चढ़ाने की परंपरा है। यहां नमकीन सेव, कचौड़ियां, समोसे, पकौड़ियां ये सारी चीजें प्रसाद में मिलती हैं। धूमावती उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है जहां नमकीन प्रसाद मिलता है। मंदिर के अंदर जाने के कुछ नियम हैं। मंदिर के बाहर एक कक्ष है, जहां मोबाइल, कैमरा आदि जमा करना होता है। यहीं पर मीठे और नमकीन प्रसाद की कुछ दुकानें हैं।
ये है धूमावती माई की कहानी
एक बार देवी पार्वती को बहुत तेज भूख लगी। उन्होंने महादेव से कुछ खाने की मांग की। महादेव ने पार्वती से इंतजार करने को कहा और खुद भोजन की तलाश में निकल गए। कुछ देर तक जब भोलेनाथ को कुछ नहीं मिला तो वो खाली हाथ लौट आए। ऐसे में भूख से व्याकुल पार्वती ने महादेव को ही निगल लिया। महादेव तो अमर हैं, वो चमत्कार दिखाकर लौट आए। तब भोलेनाथ ने देवी से कहा- मुझे निकलने के कारण और नियमपूर्वक आप विधवा हो गई हैं। इसलिए हे देवी! अब आप इसी स्वरूप में पूजी जाएंगी। इस वजह से माता को धूमावती के नाम से जाना गया। देवी का ये विधवा रूप है जिनके दर्शन और पूजा करना शादीशुदा स्त्रियां के लिए वर्जित है।
कैसे पहुंचे यहां
यहां रेल, सड़क और वायु मार्ग तीनों ही साधनों से पहुंचा जा सकता है। दतिया (Pitambara Peeth) से निकट का हवाई अड्डा ग्वालियर में करीब 75 किलोमीटर दूर है। दिल्ली से मुंबई जाने वाली अधिकांश ट्रेनें यहां रुकती हैं। दतिया रेलवे स्टेशन से मंदिर महज 3 किलोमीटर दूर है। यहां ठहरने के लिए कई होटल्स और धर्मशालाएं हैं। यात्री अपने बजट के हिसाब से यहां रुक सकते हैं।