Pitru Paksh 2025: दुनिया का इकलौता मंदिर जहां जिंदा लोग करते हैं अपना श्रद्धा, पितृ पक्ष में यहां पहुंचते हैं लाखों लोग

Pitru Paksh 2025: पितृपक्ष 2025 में, हिंदू धर्म के अनुयायी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। यह अवधि हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलती है। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म को अत्यंत पवित्र माना जाता है।

Pitru Paksh 2025: चंद दिनों बाद पितृ पक्ष की शुरुआत होने वाली है। पितृ पक्ष में लोग पिंडदान करने के लिए गया जी पहुंचते हैं। हर साल लाखों की संख्या में लोकप्रिय पक्ष में गया जी आते हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जहां जिंदा लोग अपना पिंडदान करने पहुंचते हैं।

यहां जिंदा पिंडदान कराते हैं लोग

पितृपक्ष 2025 में, हिंदू धर्म के अनुयायी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। यह अवधि हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलती है। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म को अत्यंत पवित्र माना जाता है। हालांकि, सामान्यतः श्राद्ध मृतकों के लिए किया जाता है, लेकिन बिहार के गया जी में एक ऐसा अद्वितीय स्थान है जहां जीवित व्यक्ति भी स्वयं का श्राद्ध कर सकता है। इसे “आत्मश्राद्ध” कहा जाता है।

गया जी का महत्व

गया जी को पितृश्राद्ध का सबसे बड़ा तीर्थस्थल माना जाता है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने यहां की फल्गु नदी के तट पर राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान किया था। इसी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण गया जी आज भी पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है।

आत्मश्राद्ध का स्थान

गया जी में स्थित *जनार्दन मंदिर वेदी* दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है, जहां जीवित व्यक्ति अपना ही श्राद्ध कर सकता है। यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर, मां मंगला गौरी मंदिर के उत्तर में स्थित है। मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड ग्रहण करते हैं। आमतौर पर आत्मश्राद्ध करने वे लोग आते हैं जिनके परिवार में उनके बाद पिंडदान करने वाला कोई नहीं है, जिनकी संतान नहीं है, या जो संत और वैराग्य भाव से जीवन जी रहे हैं।

आत्मश्राद्ध की प्रक्रिया

आत्मश्राद्ध तीन दिनों में संपन्न होता है।
1. पहले दिन, श्रद्धालु गया जी आकर वैष्णव सिद्धि का संकल्प लेते हैं और अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं।
2. दूसरे दिन, भगवान जनार्दन स्वामी के मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
3. तीसरे दिन, दही और चावल से बने तीन पिंड भगवान को अर्पित किए जाते हैं। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में तिल का उपयोग नहीं होता, जबकि मृतकों के श्राद्ध में तिल का अनिवार्य महत्व होता है।

पिंड अर्पण करते समय श्रद्धालु भगवान से प्रार्थना करते हैं: “हे भगवान! मैं जीवित रहते हुए यह पिंड अर्पित कर रहा हूं। जब मेरी आत्मा इस शरीर का त्याग करेगी, तब आपके आशीर्वाद से मुझे मोक्ष प्राप्त होगा।

Also Read:Bihar News: चुनाव से पहले नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक, बिहार के इन युवाओं को फ्री में मिलेगी जमीन, जाने पूरी खबर

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Google NewsTwitter और YouTube पर फॉलो करें।Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजातरीन खबर।

- Advertisement -

Related articles

Share article

- Advertisement -

Latest articles