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Rudrabhishek: रुद्राभिषेक करने के पीछे की क्या है मान्यता? जानें पूजा की विधि

Rudrabhishek: भगवान शंकर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। भोलेनाथ के रूद्र रूप का अभिषेक करने की परंपरा सदियों पुरानी है...

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Rudrabhishek: भगवान शंकर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। भोलेनाथ के रूद्र रूप का अभिषेक करने की परंपरा सदियों पुरानी है। अभिषेक का शाब्दिक अर्थ है स्नान कराना या लेना। इस प्रकार रुद्राभिषेक का अर्थ है रुद्र स्वरूप शिवलिंग का मंत्रों से अभिषेक करना।

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रुद्र हैं और रुद्र ही शिव हैं। रूद्र रूप में पूजे जाने वाले शिव मनुष्य के कष्टों का शीघ्र निवारण करते हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक कभी भी किया जा सकता है, लेकिन प्रदोष, सोमवार, श्रावण मास और शिवरात्रि की तिथि पर इसका विशेष महत्व है।

Rudrabhishek: रुद्राभिषेक की कथा

प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अपने परिवार के साथ नंदी पर बैठकर कहीं भ्रमण कर रहे थे। उसी समय, जब माता पार्वती ने लोगों को पृथ्वी पर शिवलिंग का अभिषेक करते देखा, तो उन्होंने भगवान शंकर से पूछा कि उनकी इस तरह से पूजा क्यों की जाती है। भोलेनाथ ने माता पार्वती से कहा, जो व्यक्ति अपनी मनोकामना शीघ्र पूरी करना चाहता है, वह अलग-अलग फल पाने के लिए आशुतोष रूप में विभिन्न द्रव्यों से मेरा अभिषेक करे।

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उन्होंने आगे कहा कि जो व्यक्ति शुक्ल यजुर्वेदी रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है, मैं उससे प्रसन्न होता हूं और उसे शीघ्र ही मनोवांछित फल प्रदान करता हूं। जो व्यक्ति अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है, वह इसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है।

Rudrabhishek: रुद्राभिषेक की विधि

रुद्राभिषेक में रुद्राष्टाध्यायी एकादशिनी रुद्री का ग्यारह बार पाठ किया जाता है, जिसे लघु रुद्र कहा जाता है, यह पंचामृत से की जाने वाली पूजा है जिसका बहुत महत्व है। पूजा एक विद्वान ब्राह्मण द्वारा शक्तिशाली मंत्रों और शास्त्रों के साथ की जाती है। यह पूजा न केवल जीवन में आने वाली परेशानियों से राहत दिलाती है बल्कि जिस स्थान पर यह पूजा की जाती है उस स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा से भी राहत मिलती है।

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