Sawan Kavad Yatra: सावन के महीने में शिव भक्त एक यात्रा पर निकलते हैं, जिसे कांवड़ यात्रा कहते हैं। मान्यता है कि शिव को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग कांवड़ लेकर शिव धाम जाते हैं। माता पार्वती और पिता शिव को कंधों पर उठाने का भाव ही कांवड़ यात्रा है। श्रावण के महीने में लाखों शिव भक्त भोले बाबा का नाम लेते हुए धूमधाम से हरिद्वार, गंगोत्री और कई अन्य शिव धामों की यात्रा पर निकलते हैं।
कांवड़ यात्रा की शुरुआत
कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। उनमें से एक यह है कि इस यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार ने की थी। माता-पिता की इच्छा के अनुसार वे उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार ले कर गए और गंगा स्नान कराया था।
पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था। विष की गर्मी को कम करने के लिए शिव के परम भक्त रावण ने गंगाजल से भरी कांवड़ से उनका जलाभिषेक किया था। जिसके बाद कांवड़ यात्रा शुरू हुई।
कांवड़ से जुड़े नियम
- यात्रा के दौरान बीड़ी, शराब, भांग, मांस का सेवन नहीं किया जाता है, सात्विक रहना होता है।
- यात्रा के दौरान किसी भी तरह के सौंदर्य प्रसाधन जैसे साबुन, तेल, इत्र आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
- कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए, उसे किसी ऊंचे स्थान पर रखकर ही लेटना या बैठना चाहिए।
- गंगा जल भरने से पहले कांवड़िये को उपवास रखना चाहिए।
- यात्रा सूर्योदय से दो घंटे पहले और सूर्यास्त के दो घंटे बाद ही करनी होती है।
- जमीन पर आराम करना चाहिए, बिस्तर का उपयोग नहीं करना चाहिए, यानी किसी भी तरह का आराम नहीं करना चाहिए।
- यात्रा के दौरान बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए।
- अपने अंदर आसुरी प्रवृत्ति नहीं लानी चाहिए क्योंकि आप शिव से जुड़ रहे हैं।
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