Shardiya Navratri 2024 Day 7: नवरात्रि के सातवें दिन इस चमत्कारी स्त्रोत का करें पाठ, दुश्मनों का नाश करेगी मां कालरात्रि

Shardiya Navratri 2024 Day 7: शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का पावन पर्व है। कल नवरात्रि का सातवां दिन है और माता कालरात्रि की पूजा की जाएगी। मां कालरात्रि के समक्ष आप इस चमत्कारी स्त्रोत का पाठ करेंगे तो माता आपके दुश्मनों का नाश करेगी।

Shardiya Navratri 2024 Day 7 :  शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। इस दिन मां काली की पूजा की जाती है और मां काली की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। अगर आपके दुश्मन परेशान कर रहे हैं तो नवरात्रि के सातवें दिन आप इस पाठ का जाप कर सकते हैं इससे आपको काफी फायदा मिलेगा। माता कालरात्रि आपके ऊपर कृपा बरसाएगी।

नवरात्रि के सातवें दिन इस पाठ का करें जप (Shardiya Navratri 2024 Day 7)

स्तोत्र

करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।

कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥

दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।

अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥

महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।

घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥

सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।

एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।

कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥

कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।

कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥

क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।

कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

 

महाकाली स्तोत्र

 

अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं,

सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं |

वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

महाकाली स्तोत्र

इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,

मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात ।

तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं,

वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता,

लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते |

जपध्यान पुजासुधाधौतपंका,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द,

शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं |

मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,

कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया |

न बाला न वृद्धा न कामातुरापि,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

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क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं,

मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् |

तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य,

स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च |

गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति,

स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

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