Vat Savitri Vrat 2025: पहली बार रख रही है वट सावित्री का व्रत तो इन नियमों का जरूर रखें ध्यान, वरना नहीं मिलेगा व्रत का पूरा लाभ

Vat Savitri Vrat 2025: सनातन धर्म में वट सावित्री त्यौहार का विशेष महत्व है। सत्यवान और सावित्री से जुड़ी कहानी इस व्रत में सुना जाता है। आप अगर पहली बार व्रत रख रही है तो आपको कुछ नियमों का विशेष ध्यान रखना होगा वरना व्रत अधूरा माना जाएगा।

Vat Savitri Vrat 2025: सुहागन महिलाओं के लिए वट सावित्री के त्यौहार का विशेष महत्व होता है। हर साल महिलाएं अपनी सुहाग की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का त्योहार करती हैं। सुहागिन महिलाएं बहुत ही श्रद्धा और रास्ता के साथ इस व्रत को करती हैं। हर साल ज्येष्ठ महीने के अमावस्या तिथि को वट सावित्री का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल 26 मई 2025 को वट सावित्री का त्यौहार मनाया जाएगा।

अखंड सौभाग्यवती रहने के लिए रखा जाता है यह व्रत (Vat Savitri Vrat 2025)

इस व्रत को करने वालों को अखंड सुहागिन रहने का वरदान मिलता है। सनातन धर्म में इस त्यौहार का विशेष महत्व है। सत्यवान और सावित्री से जुड़ी कहानी इस व्रत में सुना जाता है। आप अगर पहली बार व्रत रख रही है तो आपको कुछ नियमों का विशेष ध्यान रखना होगा वरना व्रत अधूरा माना जाएगा।

वट सावित्री व्रत के लिए ज़रूरी सामग्री

बरगद का फल,

बांस से बना पंखा,

वट वृक्ष की टहनी,

रक्षा सूत्र कच्चा सूत,

सिंदूर, कुमकुम, रोली, चंदन

फल-फूल,

सुहाग का सामान,

बताशा, पान, सुपारी,

सवा मीटर नया कपड़ा,

गंध, इत्र, धूप, अक्षत्,

दीपक, पानी का कलश,

मिठाई, मखाना, नारियल,

भीगा हुआ चना, मूंगफली, पूड़ी, गुड़,

सावित्री और सत्यवान की एक मूर्ति या तस्वीर,

वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक

बैठने के लिए साफ आसन

वट सावित्री पूजन विधि

वट सावित्री व्रत वाले दिन आपको सुबह जल्द  उठकर स्नान कर लेना चाहिए।इसके बाद लाल साड़ी पहन कर घर के पूजा घर में दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद सभी पूजा सामग्रियों को एकत्रित करके एक टोकरी में सजा लीजिए और अपने आसपास किसी वट के पास जाकर पूजा करें।

पूजा के समय सबसे पहले बरगद की वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं। बरगद वृक्ष के पास सावित्री और सत्यवान की तस्वीर भी रख ले और पूजा में कुमकुम सिंदूर फल फूल भोग जैसी सामग्रियां चढ़ा ले। इसके साथ ही सुहाग का सामान भी चढ़ा दे। इसके बाद बरगद के पेड़ के टहनी में कच्चा सुत या कलावा बांधकर सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद बट सावित्री व्रत की कथा सुने और आरती करके पूजा संपन्न करें।

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