Saptarishi Story: सनातन धर्म की शुरुआत से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व माना गया है। पूर्व काल से ही ऋषि-मुनियों ने शिक्षा दीक्षा का कार्य किया है। लेकिन क्या आप सप्तऋषि के बारे में जानते हैं? रात के समय आकाश में दिखने वाले सात तारों के एक विशेष समूह को भी सप्तऋषियों की संज्ञा दी जाती है। लेकिन कौन थे वो सप्तऋषि जिन्हें वैदिक धर्म का संरक्षक माना जाता है, आइए जानते हैं इस लेख में…

कौन थे सप्तऋषि
प्राचीन काल में ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से जन्मे सात ऋषियों के एक समूह को सप्त ऋषि कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन राशियों से ही पृथ्वी पर मनुष्य जाति की शुरुआत हुई सप्तऋषियों को ज्ञान, विज्ञान, धर्म, ज्योतिष अथवा योग सभी योग्यताओं में सर्वोपरि माना जाता है। सप्तऋषियों का जन्म वेदों के संरक्षण और ब्रह्मांड में संतुलन बनाने के लिए हुआ था। हिंदू धर्म में गोत्र का नाम भी इन्हीं ऋषियों के नाम पर रखा गया है।
ऋषि वशिष्ठ
ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु थे, उन्हीं के आदेश पर राजा दशरथ ने श्री राम और लक्ष्मण जी को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था। राजा दशरथ के चारों पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा ऋषि वशिष्ठ ने ही कराई थी।
ऋषि विश्वामित्र
ऋषि विश्वामित्र ने ही गायत्री मंत्र की रचना की थी। विश्वामित्र एक ऋषि होने के साथ-साथ राजा भी थें। उन्होंने अपनी तपस्या के बलबूते त्रिशंकु को मानव रूप में ही स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे।
ऋषि कश्यप
ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे ऋषि कश्यप। मान्यताओं के अनुसार ऋषि कश्यप की 17 पत्नियां थी, जिनसे देवताओं और दैत्यों की उत्पत्ति हुई।
ऋषि भारद्वाज
ऋषि भारद्वाज को सप्तऋषियों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम आयुर्वेद सहित कई ग्रंथों की रचना ऋषि भारद्वाज ने की थी। गुरु द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज के ही पुत्र थे।
ऋषि अत्री
ऋषि अत्री ब्रह्मा के सतयुग के 10 पुत्रों में से एक माने जाते हैं। इनका कृषि विकास में सबसे अहम् योगदान माना जाता है।
ऋषि जमदग्नि
ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे भगवान परशुराम। एक बार जमदग्नि ऋषि ने अपनी पत्नी का किसी दूसरे पुरुष के साथ होने के संदेह में भगवान परशुराम से उनका सिर धड़ से अलग करवा दिया था।
ऋषि गौतम
ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या थी, जिन्हें श्राप के कारण पत्थर बना दिया था। बाद में भगवान श्री राम की कृपा से उन्होंने पुनः अपना रूप प्राप्त किया। गौतम ऋषि ने अपने तपोबल से ब्रह्मगिरि पर्वत पर मां गंगा को लेकर आए थे।
(यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है।)
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