Vrat Udyapan: उद्यापन उसे अंतिम पूजा या व्रत को कहते हैं, जो व्रत का समय पूरा होने के बाद किया जाता है। किसी भी व्रत के अंत में उद्यापन का विशेष महत्व होता है। उद्यापन के बिना किसी भी व्रत में पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्रों में उद्यापन की विधि का भी उल्लेख है। तो आईए जानते हैं, व्रत के उद्यापन का महत्व और विधि के बारे में…

क्यों करते हैं व्रत का उद्यापन
शास्त्रों के अनुसार, कोई भी व्रत चाहे एकादशी, पूर्णिमा, सोमवार, मंगलवार आदि सभी का उद्यापन करना बहुत ही आवश्यक होता है। उद्यापन के बिना किसी भी व्रत के पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती। उद्यापन पूजा-पाठ में हुई गलती या फिर किसी कारण से कोई व्रत छूट जाने को पूर्ण करने के लिए किया जाता है।
व्रत उद्यापन विधि
जिस दिन व्रत का उद्यापन करना हो, उस दिन प्रातः काल स्नान आदि करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। फिर किसी योग्य ब्राह्मण के द्वारा उद्यापन कराया जा सकता है। जितने व्रतों का संकल्प आपने लिया है, उसके पूर्ण होने के बाद ही उद्यापन कराना चाहिए। जैसे किसी व्यक्ति ने अगर 11 व्रत करने का संकल्प लिया है, तो वो व्रत की 12वीं तिथि पर उद्यापन कर सकता है।
उद्यापन में पूरे परिवार के साथ हवन करें। पूर्णाहुति के दौरान परिवार व सगे-संबंधियों को शामिल कर, अंत में आरती भी करें। सोमवार के व्रत में भगवान शिव और बृहस्पतिवार के व्रत में भगवान विष्णु की आराधना की जाती है।
डिस्क्लेमर: इस ख़बर में निहित किसी भी जानकारी, सूचना अथवा गणना के विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह विभिन्न माध्यमों, ज्योतिष, पंचांग, मान्यताओं के आधार पर संग्रहित कर तैयार की गई है।
(यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है।)
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