Business : कच्चे तेल की क़ीमत में सुधार को देखकर रुपया 2 पैसे की गिरावट पर रुका

सोमवार, 8 मई को कच्चे तेल की सुधरती क़ीमतों को देख के भारतीय रुपया की क़ीमत 2 पैसे से गिरावट करके 81.80 निर्धारित हुई हैं।

अनुज चौधरी का बयान

“कच्चे तेल की कीमतों में तेज रिकवरी से रुपये में आज गिरावट आई। हालांकि, कमजोर अमेरिकी डॉलर और सकारात्मक घरेलू इक्विटी ने गिरावट को सहारा दिया।”

हम उम्मीद करते हैं कि वैश्विक बाजारों में जोखिम लेने की क्षमता में वृद्धि और कमजोर अमेरिकी डॉलर पर रुपये में मामूली सकारात्मक पूर्वाग्रह के साथ व्यापार होगा। पिछले सात सत्रों में एफआईआई शुद्ध खरीदार बने हुए हैं।

“हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में सुधार से तेजी पर रोक लग सकती है। इस सप्ताह के अंत में भारत और अमेरिका के मुद्रास्फीति के आंकड़ों के आगे निवेशक सतर्क रह सकते हैं। चौधरी ने कहा, हमें उम्मीद है कि निकट अवधि में यूएसडी/आईएनआर स्पॉट 81.20 से 82.20 के बीच व्यापार करेगा।

हेड ओफ़ ट्रेज़री अत फिनरेक्ष ट्रेज़री अड्वाइज़र अनिल कुमार भंसाली का कहना हैं-“आरबीआई ने खरीदारी जारी रखी…इस तरह डॉलर और निर्यातकों को मूल्य में गिरावट से बचाया।”

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आख़िर कैसे डॉलर के मुताबिक़ रुपए की क़ीमत होते हैं तय?

किसी भी देश की करेन्सी की क़ीमत तय करने में सरकार का बहुत अहम हाथ नहीं होता । जैसे भारत की अर्थव्यवस्था तो सरकार सम्भालती हैं मगर रुपय की क़ीमत घटनी या बढ़नी हैं यह सिर्फ़ या तो रिज़र्व बैंक ओफ़ इंडिया देखता हैं या फिर वर्ल्ड बैंक । किसी भी देश की करेन्सी की क़ीमत मार्केट डिमांड एर सप्लाई को देखते हुए ही रखी जाती हैं । जैसे रुपए की क़ीमत बढ़ानी हैं या घटानी हैं यह फ़ैसला उसकी डिमांड और सप्लाई को ग्राफ़ में रख के देखा जाएगा। जिस भी पोईंट पर डोनो डिमांड एंड सप्लाई मिलती हैं उसको एकुइल्लिब्रिम कहते हैं और उसी पोईंट पर करेन्सी की क़ीमत तय होती हैं। अब वर्ल्ड बैंक के हिसाब से जिस करेन्सी की ज़्यादा डिमांड होती हैं उसकी क़ीमत ज़्यादा रखी जाती हैं जैसे डॉलर , और जिस करेन्सी की डिमांड कम होती हैं उसकी क़ीमत कम रखी जाती हैं।

क्या होता हैं रुपए की क़ीमत घटने का प्रभाव?

जब रुपए की क़ीमत गिर जायी हैं तो इसका कही ना कही भारत को फ़ायद अभी होता हैं। जैसे रुपय की क़ीमत गिरने पर और देशों में भेजे जाने वाला सामना जिसको इक्स्पॉर्ट कहते हैं उसमें मुनाफ़ा होता हैं । रुपय की क़ीमत गिरने पर वो सामना और देशों व उनके करेन्सी के मुताबिक़ पहले से महँगा हो जाता हैं ।
जैसे अगर पहले कोई सामना 1 डॉलर का था और एक डॉलर की क़ीमत 80 थी। उस सामान की 49 कमोडिटी लेने पर उस विशेष देश को 3920 ₹ देने पड़ते और वही अब डॉलर की क़ीमत गिरकर 82 हो गयी तो अब उसी डील के उस विशेष देश को 4018 ₹ देने पड़ेंगे । इस प्रकार रुपय गिरने से भारत को क़ही ना कही फ़ायद भी होता हैं ।

 

(यह खबर विधान न्यूज में इंटर्न कर रहीं कशिश नागर ने तैयार की है)

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