गुटखा-पान मसाला निर्माताओं पर शिकंजा कसने की तैयारी, शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है नया Health Security Bill

Health Security Bill: सरकार शीतकालीन सत्र के दौरान एक नया प्रस्तावित कानून – Health Security Bill – संसद में ला सकती है, जिसके तहत इन उत्पादों के निर्माण और बिक्री से जुड़े उद्योगों पर विशेष सेस लगाने की योजना है।

Health Security Bill: केंद्र सरकार देश में गुटखा और पान मसाला जैसे उत्पादों पर लगाम कसने की दिशा में बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रही है। सूत्रों की मानें तो सरकार शीतकालीन सत्र के दौरान एक नया प्रस्तावित कानून – Health Security Bill – संसद में ला सकती है, जिसके तहत इन उत्पादों के निर्माण और बिक्री से जुड़े उद्योगों पर विशेष सेस लगाने की योजना है।

इस प्रस्तावित सेस का नाम “National Security and Public Health Cess” बताया जा रहा है। इसके जरिए सरकार दोहरे उद्देश्य साधने की कोशिश में है—एक ओर तंबाकू और पान मसाला के बढ़ते सेवन से होने वाली गंभीर बीमारियों को रोकना और दूसरी ओर इससे जुड़े अवैध कारोबार पर नकेल कसना।

क्यों जरूरी माना जा रहा है यह बिल? (Health Security Bill)

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, गुटखा और पान मसाला जैसे उत्पाद कैंसर, हृदय रोग और ओरल डिसऑर्डर जैसी जानलेवा बीमारियों की बड़ी वजह बन चुके हैं। कई राज्यों में पहले से इन पर प्रतिबंध लागू है, लेकिन इसके बावजूद अवैध सप्लाई चेन के जरिए ये बाजार में पहुंच रहे हैं। इसी को देखते हुए सरकार अब केंद्रीय स्तर पर एक सख्त नीति लाने पर विचार कर रही है।

क्या होंगे नए नियम?

बताया जा रहा है कि नए सेस के तहत:

निर्माताओं को भारी टैक्स देना पड़ सकता है

कच्चे माल की खरीद पर विशेष निगरानी रखी जा सकती है

पैकेजिंग और ब्रांडिंग के नियम और सख्त किए जा सकते हैं

अवैध उत्पादन पर भारी जुर्माना और लाइसेंस रद्द होने की व्यवस्था हो सकती है

उद्योग पर क्या पड़ेगा असर?

यदि यह बिल संसद से पारित होता है तो गुटखा और पान मसाला उद्योग को बड़े स्तर पर झटका लग सकता है। छोटे निर्माताओं के लिए बढ़ा टैक्स बोझ बन सकता है, वहीं बड़ी कंपनियों को अपनी उत्पादन नीति पर दोबारा विचार करना पड़ सकता है।

सरकार का उद्देश्य क्या है?

सरकार की मंशा सिर्फ कर वसूली नहीं, बल्कि लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना भी है। सरकार चाहती है कि इन उत्पादों के सेवन को हतोत्साहित किया जाए और युवाओं को इससे दूर रखा जाए।

आगे क्या?

अब सबकी नजरें शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं, जहां यह स्पष्ट हो सकेगा कि सरकार इस बिल को किस रूप में पेश करती है और इसका स्वरूप कितना कठोर होगा।

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