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Satellite Docking Successful In India: सफल सैटेलाइट डॉकिंग से भारत ने रचा इतिहास, जानें क्या है यह टेक्नोलॉजी

Satellite Docking Successful In India: भारत निरंतर स्पेस टेक्नॉलोजी में विकास कर रहा है, अब इसरो के स्पैडेक्स मिशन ने सफलापूर्वक डॉकिंग की है और ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन गया है।

Satellite Docking Successful In India
Satellite Docking Successful In India

Satellite Docking Successful In India: NASA के बाद पूरी दुनिया में मानवता के विकास और हित के लिए जो काम कर रहा है वो ISRO है। अब इसरो नें स्पेस फील्ड में एक और कारनामा कर दिया है। स्पैडेक्स ने की इस अविश्वसनीय उपलब्धि पर पीएम मोदी ने इसरो को बधाई दी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह डॉकिंग या सैटेलाइट डॉकिंग आखिर होता क्या है।

Satellite Docking Successful In India: सैटेलाइट डॉकिंग

अंतरिक्ष में तेजी से ट्रैवल कर रहे दो स्पेसक्राफ्ट को मिलाने की इस प्रोसेस को डॉकिंग कहा जाता है। (सैटेलाइट डॉकिंग- कॉम्प्लैक्स प्रोसेस) सैटेलाइट डॉकिंग की बात करें तो यह एक कॉम्प्लैक्स प्रोसेस है जो दो या उससे अधिक अंतरिक्षयानों को एक दूसरे से कनेक्ट करने के लिए किया जाता है जब वे ऑर्बिट में होते हैं। अंतरिक्ष की खोज में निकले एस्ट्रोनॉट्स के लिए डॉकिंग काफी अहम होती है।

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डॉकिंग तकनीक

इसरो ने बताया कि स्पाडेक्स मिशन पीएसएलवी के द्वारा दो छोटे अंतरिक्ष यानों का प्रयोग करकेअंतरिक्ष में डॉकिंग के प्रदर्शन बेहद ही सफलतापूर्वक कर लिया गया है। वास्तव में यह एक कॉस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी मिशन है और अंतरिक्ष में, डॉकिंग तकनीक की जरूरत जब ज्यादा होती है, तब सामान्य मिशन के लिए कई रॉकेट्स को लॉन्च किया जाता है।

प्रोसेस होता है ऐसे

यह प्रक्रिया नोर्मली ऐसे होती है जब एक अंतरिक्ष यान सैटेलाइट या अंतरिक्ष स्टेशन और दूसरा अंतरिक्ष यान एक विशिष्ट कक्षा में मिलता है और उन्हें सुरक्षित रूप से जोड़ना होता है। इनको जोड़ने की प्रक्रिया ही इस प्रोसेस का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।

टेक्नोलॉजी की खासयित

सैटेलाइट डॉकिंग को स्पैस एक्सप्लोरेशन और ऑर्बिटल ऑपरेशन्स के लिए एक महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी माना जाता है। इसे काफी रिसर्च के बाद डेवलेप किया गया है।

स्पेस स्टेशन

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) जैसे अंतरिक्ष स्टेशनों के साथ अंतरिक्ष यान (जैसे क्रू ड्रैगन या सोयुज) डॉक करते हैं ताकि अंतरिक्ष यात्रियों और आपूर्ति भेजी जा सके। 12 जनवरी को इसरो ने इसके पहले डॉकिंग के ट्रायल के दौरान दोनों सैटेलाइट को तीन मीटर से भी कम दूरी पर लाकर सेफ प्लेस पर पहुंचा दिया था।

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