Illegitimate child’right: बिना शादी के पैदा किया बच्चा तो माता-पिता दोनों को देनी होगी संपत्ति

Illegitimate child'right: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू समाज के इस दोगले व्यवहार को कड़ी फटकार लगाते हुए अनोखा फैसला सुनाया।

Illegitimate child’right: साल 2023 अब खत्म होने में 3 दिन ही शेष बचे हैं। इस साल कोर्ट ने भी कई यादगार फैसले सुनाए हैं। कोर्ट के इन फैसलों ने हर किसी को हैरान कर दिया। इनमें एक फैसला अमान्य विवाह से पैदा बच्चों के हक में सुनाया। हिंदू समाज में विवाहित जोड़ों को बच्चा पैदा करने की अनुमति दी जाती है। शादी से पहले बच्चा पैदा होने पर समाज उस बच्चे का बहिष्कार कर देता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू समाज के इस दोगले व्यवहार को कड़ी फटकार लगाते हुए अनोखा फैसला सुनाया। अब अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे को माता और पिता दोनों की संपत्ति मिलेगी। आईए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में क्या कहा गया…

कोर्ट ने सुनाया अजीब फैसला

सितंबर माह में सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने मृत माता और पिता दोनों की संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार है। वह चाहे स्व अर्जित संपत्ति हो या पैतृक।

बिना शादी के पैदा बच्चा संपत्ति का हकदार

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 16(3) की व्याख्या के मुताबिक, अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान की जाती है। लेकिन धारा 16(3) कहती है कि ऐसे बच्चों को केवल अपने माता-पिता की संपत्ति विरासत में मिलेगी और इसके अवाला पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा।

माता और पिता दोनों की मिलेगी संपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा मिताक्षरा कानून द्वारा शासित हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) में माता-पिता के हिस्से का हकदार है। साथ ही ये भी स्पष्ट किया कि ऐसे बच्चे को जन्म से एचयूएफ सहदायिक नहीं माना जा सकता है।

क्या है अमान्य विवाह

अमान्य विवाह का मतलब है कि विवाह को कानून से मान्यता नहीं दी गई है और विवाह के पक्षकारों को पति-पत्नी नहीं माना जाता है। दूसरी ओर, अमान्य विवाह ऐसा है जो तब तक वैध है जब तक कि इसे अदालत द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता है।

क्या है शून्य विवाह

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 11 शून्य विवाह से संबंधित है। धारा 11 उन विवाहों का उल्लेख कर रही है जो विवाह इस अधिनियम के अंतर्गत शून्य होते हैं, अर्थात वह विवाह प्रारंभ से ही कोई वजूद नहीं रखते हैं तथा उस विवाह के अधीन विवाह के पक्षकार पति पत्नी नहीं होते। शून्य विवाह वह विवाह है जिसे मौजूद ही नहीं माना जाता है।

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