Melting Of Glaciers : पिघलते ग्लेशियर बढ़ाएंगे मानवता की पीर

Melting of glaciers: हिमालय-काराकोरम पर्वत श्रंखलाओं के ग्‍लेशियर पिघलने से एक बिलियन से ज्‍यादा लोगों की पानी सम्‍बन्‍धी...

Melting Of Glaciers: हिमालय-काराकोरम पर्वत श्रंखलाओं के ग्‍लेशियर पिघलने से एक बिलियन से ज्‍यादा लोगों की पानी सम्‍बन्‍धी जरूरतें पूरी होती हैं। अगर इस पूरी सदी के दौरान ग्‍लेशियर का एक बड़ा हिस्‍सा पिघल जाता है और जरूरी मात्रा में पानी की आपूर्ति में धीरे-धीरे कमी हो जाती है तो इस आबादी पर गहरा असर पड़ेगा। हर साल जलापूर्ति पर पड़ने कुल असर में क्षेत्रवार बदलाव होता है। ग्‍लेशियर पिघलने सेना पानी और ग्‍लेशियर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, मुख्‍य रूप से मानसूनी बारिश के पानी से पोषित होने वाले गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन के मुकाबले सिंधु बेसिन पर पड़ने वाले असर कहीं ज्‍यादा अहम हैं।

हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रंखलाओं में जलवायु परिवर्तन के फुटप्रिंट बिल्‍कुल खुलकर ज़ाहिर हो गये हैं। इस क्षेत्र को तीसरा पोल (हिंदु कुश क्षेत्र) भी कहा जाता है और यहां ग्‍लेशियर पिघल रहे हैं, नुकसानदेह परिघटनाएं हो रही हैं, बर्फबारी की तर्ज में बदलाव हो रहे हैं। ये उन देशों के लिये बुरी खबर है जो पानी की आपूर्ति के लिये इन पर्वत श्रंखलाओं से निकलने वाली नदियों पर निर्भर करते हैं।

Melting of glaciers
Melting of glaciers

ज्ञातव्‍य है कि तीसरा पोल हिंदु कुश क्षेत्र को माना जाता है क्योंकि उत्तरी और दक्षिणी पोल के बाद यहां सर्वाधिक बर्फ होती है। यहां करीब 24 करोड़ लोग निवास करते हैं। यहीं से 10 नदी बेसिन की उत्पत्ति होती है जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेकॉन्ग शामिल हैं। करीब 150 करोड़ लोगों का अस्तित्व इन नदी बेसिन से जुड़ा है। साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित ताजा अध्‍ययन ‘ग्‍लेशियो-हाइड्रोलॉजी ऑफ द हिमालया-काराकोरम’ में इस बात पर जोर दिया गया है कि वर्ष 2050 के दशक तक पिघलने वाले ग्‍लेशियर के कुल क्षेत्र और प्रवाह के मौसमीपन में बढ़ोतरी होने का अनुमान है।

उल्‍लेखनीय है कि हिमालय-काराकोरम नदी बेसिन 27 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसमें 577000 वर्ग किलोमीटर का सबसे बड़ा कृषि क्षेत्र है जो दिल्‍ली, ढाका, कराची, कोलकाता और लाहौर जैसे पांच महानगरों को पोषित करता है। इन नगरों की आबादी 9 करोड़ 40 लाख से ज्‍यादा है और इसी क्षेत्र में 26,432 मेगावॉट वाली दुनिया की सबसे बड़ी पनबिजली क्षमता स्‍थापित है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान में असिस्‍टेंट प्रोफेसर और इस अध्‍ययन के मुख्‍य लेखक डॉ. फारूक आजम ने कहा कि हिमालय-काराकोरम पर्वत श्रंखलाओं के ग्‍लेशियर पिघलने से एक बिलियन से ज्‍यादा लोगों की पानी सम्‍बन्‍धी जरूरतें पूरी होती हैं। अगर इस पूरी सदी के दौरान ग्‍लेशियर का एक बड़ा हिस्‍सा पिघल जाता है और जरूरी मात्रा में पानी की आपूर्ति में धीरे-धीरे कमी हो जाती है तो इस आबादी पर गहरा असर पड़ेगा। हर साल जलापूर्ति पर पड़ने कुल असर में क्षेत्रवार बदलाव होता है। ग्‍लेशियर पिघलने से बना पानी और ग्‍लेशियर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, मुख्‍य रूप से मानसूनी बारिश के पानी से पोषित होने वाले गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन के मुकाबले सिंधु बेसिन पर पड़ने वाले असर कहीं ज्‍यादा अहम हैं। बारिश की तर्ज में बदलाव की वजह से इन दो नदी बेसिनों पर जलवायु परिवर्तन का असर ज्‍यादा पड़ता है।

Melting of glaciers
Melting of glaciers

हाल के वर्षों में किये गये विभिन्‍न अध्‍ययनों का विश्‍लेषण कर तैयार किये गये इस शोध पत्र में हिमालय-काराकोरम पर्वत श्रंखलाओं में जमे ग्‍लेशियर पर जलवायु सम्‍बन्‍धी विविध स्थितियों के पड़ने वाले प्रभावों को जाहिर किया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि इसका नीचे बहने वाली नदियों पर क्‍या प्रभाव पड़ता है। इस शोध पत्र के सह-लेखक और अमेरिका के प्‍लैनेटरी साइंस इंस्‍टीट्यूट से जुड़े जेफ कारगेल ने कहा ‘‘अधिक सटीक समझ तक पहुंचने के लिये अनुसंधान टीम ने 250 से अधिक अध्‍ययन पत्रों के निष्‍कर्षों को एकत्र किया। जो कुछ हद तक पर्यावरण के गर्म होने, उसके कारण बारिश की तर्ज में होने वाले बदलावों तथा ग्‍लेशियर के सिकुड़ने के बीच आपसी सम्‍बन्‍धों को लेकर एक आमराय पर पहुंचते दिखते हैं।’’

यह अध्‍ययन हमें एक बड़े फलक पर उभरी तस्‍वीर की बेहतर समझ मुहैया कराता है। साथ ही हमें यह भी बताती है कि कौन से ऐसे क्षेत्र हैं जहां क्षेत्रीय, दूर संवेदी तथा मॉडेलिंग शोध की जरूरत है। शोधकर्ताओं ने जानकारी के जिन अंतरों को पहचाना, उनमें ग्‍लेशियर की कुल मात्रा के सटीक निरूपण की कमी, क्षेत्र में वर्षा प्रवणता की विस्‍तृत समझ और पर्माफ्रॉस्‍ट, सबलाइमेशन, ग्लेशियर की गतिकी, ब्लैक कार्बन और मलबे के आवरण की भूमिका पर महत्वपूर्ण अध्ययन की विस्‍तृत समझ शामिल है।

डॉक्‍टर आजम ने कहा, ‘‘जहां जलवायु परिवर्तन के कारण ग्‍लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिनसे हिमालय-काराकोरम पर्वत श्रंखलाओं में नदियों के प्रवाह पर फर्क पड़ा, वहीं इसकी वजह से पर्वतों से सम्‍बन्धित हानिकारक घटनाएं पहले से ज्‍यादा हो रही हैं। चमोली जिले में हाल में आयी प्राकृतिक आपदा चीख-चीखकर कह रही है कि हिमालय के कमजोर हो चुके पहाड़ों पर अब और विकास परियोजनाएं न बनायी जाएं।’’

Melting of glaciers
Melting of glaciers

डॉ. आजम ने एक अन्‍य शोध पत्र ‘अ मैसिव रॉक एण्‍ड आइस एवेलांच कॉज्‍ड द 2021 डिजास्‍टर ऐट चमोली, इंडियन हिमालय’ का भी सह लेखन किया है। साइंस जर्नल में आज इसे भी प्रकाशित किया गया है। इस शोध पत्र में बताया गया है कि गढ़वाल हिमालय क्षेत्र स्थित चमोली में फरवरी 2021 में आयी उस आपदा का क्‍या कारण था, जिसमें 200 से ज्‍यादा लोग लापता हुए या मारे गये और दो हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को गम्‍भीर क्षति पहुंची। शोधकर्ताओं ने सेटेलाइट चित्रों, भूकम्‍प सम्‍बन्‍धी अभिलेखों, मॉडेलिंग के नतीजों तथा चश्‍मदीद लोगों के वीडियो के आधार पर खुलासा किया है कि चट्टान और ग्‍लेशियर की बर्फ का 27X106 घन मीटर का एक टुकड़ा टूटने से बहुत भारी मात्रा में मलबा बह निकला, जो घाटी की दीवारों को 220 मीटर तक रगड़ता हुआ अपने साथ बहुत भारी पत्‍थरों को बहा लाया। खतरे के प्रतिच्‍छेदन (इंटरसेक्‍शन) और नीचे घाटी पर बने ढांचे की अवस्थिति ने आपदा की तीव्रता को और बढ़ा दिया। इससे इन क्षेत्रों में पर्याप्‍त मॉनीटरिंग (जिसमें इन बढ़ते हुए खतरों को विचार के दायरे में शामिल किया जाता है) और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन को ध्‍यान में रखते हुए सतत विकास की जरूरत का एहसास होता है।

 

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube  पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें

- Advertisement -

Related articles

Share article

- Advertisement -

Latest articles