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Lightning : क्यों गिरती है बिजली? कोई तरीका भी है बचाव का?

Lightning : बिजली पैदा करने वाले बादल सामान्यतः धरती से 10-12 किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं, परंतु इनका आधार 23 किलोमीटर ऊपर ही....

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Lightning : बिजली पैदा करने वाले बादल सामान्यतः धरती से 10-12 किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं, परंतु इनका आधार 23 किलोमीटर ऊपर ही रहता है। कई बार वायुगति से इस ऊंचाई में कुछ बदलाव भी हो जाता है। आकाश में बादलों के बीच टकराव (घर्षण) होने से एक प्रकार का विद्युत आवेश पैदा होता है एवं यह तेजी से आकाश से जमीन की ओर जाता है। इस दौरान तेज आवाज होती है एवं तेज प्रकाश भी दिखायी देता है। इस पूरी घटना को हम सामान्यतः बिजली का कड़कना एवं गिरना कहते हैं। आकाश में पैदा विद्युत आवेश जब धरती की ओर जाता है तो बीच में आयी सारी वस्तुएं उच्च तापमान के कारण झुलस कर लगभग नष्ट हो जाती है। हमारे देश में मानसून के मौसम में बिजली गिरने की घटनाएं होती रहती हैं। वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष बिजली गिरने की 2.5 करोड़ घटनाएं होती हैं। मवेशी एवं मकानों की हानियों के साथ-साथ हमारे देश में लगभग 3000 लोग प्रतिवर्ष इससे मारे जाते हैं।

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वैसे तो आकाशीय बिजली कहीं भी गिर सकती है, परंतु हमारे देश में पहाड़ी क्षेत्र एवं समुद्र तट के पास के इलाकों में इसकी घटनाएं ज्यादा होती हैं। इस आंकलन पर प्रारम्भिक तौर पर बताया गया कि नमी, आद्रता की अधिकता इसका एक सम्भावित कारण हो सकता है। पहाड़ों पर मैदानी क्षेत्र की तुलना में पेड़ों की अधिकता तथा तटीय इलाकों में समुद्र के कारण ज्यादा नमी पायी जाती है। शहर की तुलना में गांवों में ज्यादा बिजली गिरने का कारण भी नमी हो सकता है, क्योंकि वहां पेड़ों एवं फसलों के पौधों से ज्यादा हरियाली होती है एवं उपलब्ध साधनों से सिंचाई भी की जाती है।

आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं पर कुछ प्रारम्भिक अध्ययन पेड़-

  • पौधों, वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन को लेकर भी किये गये हैं।
  • इसके साथ ही ऐसे प्रयास भी किये जा रहे हैं कि बिजली गिरने का सटीक पूर्वानुमान संभव हो, ताकि इससे होने वाली हानियों से बचा जा सके।
  •  लुई विले विश्वविद्यालय के इकोलाजिस्ट डॉ.स्टीव यानोविएक ने कुछ वर्षों पूर्व अपने अध्ययन में यह पाया था कि उष्ण-कटीबंधीय जंगलों में पेड़ो पर काष्ठ लताएं (लियांस) तेजी से बढ़कर पेड़ों के ऊपरी हिस्से को ज्यादातर ढक लेती हैं। ये लताएं आकाश से बिजली गिरते समय तड़ित चालक का कार्य करती है।
  •  इससे पेड़ जलने से बच जाते है तथा बिजली जमीन में पहुंच जाती है।
  • काष्ठ लताओं के तने बिजली के बेहतर संचालक (कंडक्टर) होते हैं।
  •  स्टीव की इस धारणा पर अन्य पर्यावरणविदों ने थोड़ी असहमति जताते हुए कहा था कि यदि काष्ठ लताओं के तने बेहतर संचालक हैं तो पेड़ों के तने भी हो सकते हैं।
  •  पेड़ के तनों को संभवतः बेहतर संचालक मानकर कुछ वर्षो पूर्ण हमारे पड़ौसी बांग्लादेश ने आकाशीय बिजली के गिरने से होने वाली हानियों को कम करने के लिए गांव में ताड़ के वृक्ष बहुतायत से लगवाये थे।
  •  इसके परिणाम कैसे रहे, यह बाद में कहीं पढ़ने में नहीं आया।
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वायुमंडलीय वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ता वायु-

  • प्रदूषण भी बिजली गिरने की सम्भावना बढ़ाता है।
  • वायु प्रदूषकों में शामिल एरोसोल (हवा या अन्य गैस में सूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूंदों का रासायनिक मिश्रण) इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार बताया गया है। सूक्ष्म ठोस कण यदि किसी धातु के हों तो सम्भावना ज्यादा हो जाती है। धरती के बढ़ते तापमान एवं जलवायु परिवर्तन से भी बिजली गिरने की दुर्घटना बढ़ने की सम्भावना बतायी गयी है।
  • केलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2015 में 11-12 अलग-अलग जलवायु मॉडल्स पर अध्ययन कर बताया कि ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने से आये बदलाव में बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ेंगी। अमेरिकी संस्थान ’’नासा’’ के अध्ययन के अनुसार यदि धरती का तापमान एक डिग्री सेल्शियस बढ़ता है तो लगभग 10 प्रतिशत बिजली गिरने की घटनांए बढ़ेंगी एवं सूखे की स्थिति में इसके असर व्यापक होंगे।
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आकाशीय बिजली गिरने की दुर्घटनाओं को रोका तो नहीं जा सकता, परंतु पूर्व सूचना की यदि कोई प्रणाली विकसित हो जाए तो हानियों को कम किया जा सकता है। इस क्षेत्र में हमारे देश में कुछ प्रयास किये गये हैं। ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मटेरीयोलाजी’ (पुणे) ने वर्ष 2019 में लगभग 50 सेंसर लगाकर एक नेटवर्क बनाया था जो बिजली गिरने एवं आंधी तूफान की दिशा की जानकारी देता है। देश के ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ तथा मौसम विभाग ने भू-स्थिर उपग्रहों में लाइटिंग डिटेक्टर लगाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इससे बिजली गिरने का पूर्वानुमान 3 से 6 घंटे पहले संभव होगा। इस प्रकार की प्रणाली अमेरीका में कार्यरत है।  ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) ने भी हाल ही में छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर में स्थित कालेज में ‘लाइट डिटेक्टिंग सिस्टम’ लगाया है। यह आसपास के लगभग 300 किमी के क्षेत्र में निगरानी करेगा। इन सभी प्रयासों के साथ इमारतों पर ‘तडित चालक’ लगाने को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये। बिजली गिरने से बचाव के जो प्रचलित तरीके हैं उनका भी प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये, जैसे – बिजली गिरने के माहौल में पेड़ व ऊंची इमारत के पास खड़े नहीं रहें, बिजली एवं टेलीफोन के खम्बों से दूरी बनाये रखें एवं जमीन पर उकडू बैठ जाएं आदि।

ओ पी जोशी
(सप्रेस)

 

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