अब मराठों को सरकारी नौकरी में मिलेगी 10 फीसदी आरक्षण, विधेयक विधानसभा में पारित

राज्य में वर्तमान में मौजूद 52 प्रतिशत आरक्षण में से, अनुसूचित जाति 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 7 प्रतिशत, ओबीसी 19 प्रतिशत, विशेष पिछड़ा वर्ग 2 प्रतिशत, विमुक्त जाति 3 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति ( बी) 2.5 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति (सी) धनगर 3.5 प्रतिशत और घुमंतू जनजाति (डी) वंजारी 2 प्रतिशत के लिए पात्र हैं

महाराष्ट्र विधानमंडल ने शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक मंगलवार को सर्वसम्मति से पारित कर दिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आरक्षण पर विधानमंडल के एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान सदन में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा विधेयक 2024 पेश किया। विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इसमें कहा गया कि महाराष्ट्र की कुल आबादी में मराठों की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है।

इसमें कहा गया है कि बड़ी संख्या में जातियां और समूह पहले से ही आरक्षित कैटेगरी में हैं, जिन्हें कुल मिलाकर लगभग 52 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। इसमें कहा गया है कि मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कैटेगरी में रखना पूरी तरह से अनुचित होगा।

विधेयक में कहा गया है कि मराठा वर्ग का पिछड़ापन पिछड़े वर्गों और विशेष रूप से ओबीसी से इस अर्थ में भिन्न और अलग है कि यह अपने प्रसार के मामले में अधिक व्यापक है, यह अपनी पैठ में भिन्न है और चरित्र में और अधिक प्रतिगामी है। विधेयक में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि एक बार आरक्षण लागू हो जाने पर 10 साल बाद इसकी समीक्षा की जा सकती है।

अभी क्या है आरक्षण व्यवस्था?

राज्य में वर्तमान में मौजूद 52 प्रतिशत आरक्षण में से, अनुसूचित जाति 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 7 प्रतिशत, ओबीसी 19 प्रतिशत, विशेष पिछड़ा वर्ग 2 प्रतिशत, विमुक्त जाति 3 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति ( बी) 2.5 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति (सी) धनगर 3.5 प्रतिशत और घुमंतू जनजाति (डी) वंजारी 2 प्रतिशत के लिए पात्र हैं। सदन में विधेयक पेश करने के बाद मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि देश के 22 राज्य 50 प्रतिशत आरक्षण का आंकड़ा पार कर चुके हैं।

मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा पेश किए गए विधेयक के प्रमुख निष्कर्षों में से एक यह रेखांकित करता है कि राज्य में मराठा समुदाय की आबादी 28 प्रतिशत है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले कुल मराठा परिवारों में से 21.22 प्रतिशत के पास पीले राशन कार्ड हैं। यह राज्य के औसत 17.4 प्रतिशत से अधिक है।

विधेयक के अनुसार, इस साल जनवरी और फरवरी के बीच किए गए राज्य सरकार के सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि मराठा समुदाय के 84 प्रतिशत परिवार प्रगतिशील कैटेगरी में नहीं आते हैं, इसलिए वे इंद्रा साहनी मामले के अनुसार आरक्षण के लिए पात्र हैं।

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विधेयक में कहा गया है कि महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले किसानों में से 94 प्रतिशत मराठा परिवारों से थे। विधेयक में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि 1902 में, राजर्षि शाहू महाराज ने तत्कालीन कोल्हापुर रियासत में मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ दिया था, जबकि तत्कालीन मुंबई स्टेट ने भी अपनी रिपोर्ट में मराठा समुदाय को पिछड़े वर्गों में से एक के तौर पर मान्यता दी थी।

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