ISRO का ऐतिहासिक कदम, अंतरिक्ष में रोबोटिक आर्म्स से सैटेलाइट पकड़ने की तकनीक का करेगा परीक्षण

ISRO Mission: इसरो एक नई तकनीक विकसित कर रहा है, जिसमें सैटेलाइट को रोबोटिक आर्म से पकड़ने की क्षमता होगी।

ISRO Servicer Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) लगातार नित-नए कीर्तिमान बना रहा है। मून mission और सोलर मिशन की सफलताओं के बाद इसरो ने 2030 तक अंतरिक्ष में ‘जीरो डेब्रिस’ (शून्य मलबा) का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दिशा में इसरो नई तकनीकों पर काम कर रहा है, जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट सर्विसिंग और मलबा हटाने की प्रक्रियाओं को सरल बनाएगी।

इस साल लॉन्च होंगे दो प्रमुख 

इसरो इस साल दो प्रमुख मिशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है, जिनमें सैटेलाइट सर्विसिंग और डेब्रिस कैप्चर टेक्नोलॉजी पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह मिशन मलबा-मुक्त अंतरिक्ष की दिशा में बड़ा कदम साबित होंगे। इसके माध्यम से इसरो अंतरिक्ष में सफाई और सैटेलाइट की उम्र बढ़ाने के लिए तकनीकी समाधान पेश करेगा।

SPADEX मिशन के जरिए डॉकिंग तकनीक का परीक्षण

इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने जानकारी दी कि अगले महीने इसरो SPADEX मिशन लॉन्च करेगा। इस मिशन के तहत उपग्रहों के बीच डॉकिंग तकनीक का परीक्षण किया जाएगा। यह तकनीक उपग्रहों को सुरक्षित तरीके से जोड़ने और संचार को सक्षम बनाएगी, जिससे अंतरिक्ष में उपग्रहों की सेवा और मरम्मत को आसान बनाया जा सकेगा।

इसरो सर्विसर मिशन,टेथर्ड डेब्री कैप्चर तकनीक

इसके अलावा, इसरो एक और बड़ा मिशन—इसरो सर्विसर मिशन लॉन्च करने जा रहा है। इस मिशन में ‘टेथर्ड डेब्री कैप्चर’ तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जिसके माध्यम से रोबोटिक आर्म की सहायता से एक चलते हुए सैटेलाइट को पकड़ा जा सकेगा। इस मिशन के तहत ऑन-ऑर्बिट सर्विसिंग, सैटेलाइट लाइफ एक्सटेंशन, और इंस्पेक्शन जैसी क्षमताओं को प्रदर्शित किया जाएगा।

नई चुनौतियों के लिए तैयार इसरो

इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष के मलबे के प्रबंधन को लेकर अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। हालांकि, इसरो इन नई चुनौतियों को स्वीकार करने और नई तकनीकों के विकास के लिए तैयार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संगठन नई समस्याओं का समाधान खोजने के लिए एक्सपेरिमेंट्स करने से पीछे नहीं हटेगा।

‘मेक इन इंडिया’ पर फोकस

इसरो ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा दे रहा है। डॉ. सोमनाथ ने बताया कि 95% रॉकेट्स का निर्माण भारत में ही किया जा रहा है, और केवल 5% कंपोनेंट्स बाहर से मंगवाए जा रहे हैं, जिनमें मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स शामिल हैं। अंतरिक्ष यान के निर्माण में भी लगभग 60% हिस्सा भारत में ही तैयार होता है। इसरो का लक्ष्य पूरी तरह से स्वदेशी रॉकेट और अंतरिक्ष यान का निर्माण करना है, ताकि भारत का आत्मनिर्भरता का सपना पूरा हो सके।

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