Jai Prakash Narayan Death Anniversary: तल्खियों के बाद भी लोकनायक नहीं भूले इंदिरा से वो पुराने रिश्ते!

Jai Prakash Narayan Death Anniversary: भारतीय राजनीति का चमकता सितारा थे जयप्रकाश नारायण। इंदिरा गांधी से विवादों के बीच उन्होंने इंदिरा का मन ही मन हमेशा ख्‍याल किया।

Jai Prakash Narayan Death Anniversary : बिहार के सिताबदियारा में 11 अक्‍टूबर, 1902 को जन्‍म हुआ था जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का। यह गांव दो राज्‍य यानी बिहार के सारण व भोजपुर और उत्‍तरप्रदेश के बलिया तक फैला है। उनके व्‍यक्तित्‍व के कई रंग थे और जनसेवा के लिए स‍मर्पित होने के कारण उन्‍हें लेाकनायक (JP Narayan) कहा जाता था। उनकी विचार धारा मार्क्‍सवादी व गांधीवादी थी। वे वर्ष 1929 में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए थे।

ai Prakash Narayan Death Anniversary
ai Prakash Narayan

ऐसे थे लोकनायक

क्‍या संयोग रहा कि अक्‍टूबर माह में ही उनका जन्‍म हुआ और इसी महीने में दुनिया को अलविदा भी कहा। 11 अक्‍टूबर को जन्‍म और 8 अक्‍टूबर को उनका देहावसान (Jai Prakash Narayan Death Anniversary)। बता दें कि 1970 के दशक के बीच में उन्‍होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्‍व किया था। इतना ही नहीं इंदिरा की सत्‍ता को उखाड़ फेंकने के लिए संपूर्ण क्रांति‍ का आहृवान किया था।

वे बेहद मजबूत इच्‍छाशक्ति के धनी थे। लोकसेवा के लिए उन्हें 1999 में मैग्‍ससे सम्‍मान भी मिला और भारत रत्‍न भी। जेपी के साथ जो रहे, वे भारतीय राजनीति में प्रमुखता से यागदान दे रहे हैं पर जेपी सा कोई न हुआ।

जेपी की वह प्रति‍क्रिया

जानेमाने पत्रकार और जेपी आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले राम बहादुर राय ने एक साक्षात्‍कार में कहा था कि जयप्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी का संबंध चाचा और भतीजी का था। पर जब भ्रष्टाचार के मुद्दे को जेपी ने उठाना शुरू किया तो इंदिरा की एक प्रतिक्रिया उनके बीच दरार पैदा कर दी।

दरअसल, इंदिरा ने कहा था कि जो बड़े पूंजीपतियों के पैसे पर पलते हैं, उन्हें भ्रष्टाचार पर बात करने का कोई हक़ नहीं है। इस बयान के बाद जेपी ने कई दिनों कोई काम नहीं किया। रामबहादुर राय के अनुसार, जेपी ने तब अपनी खेती और अन्य स्रोतों से होने वाली अपनी आमदनी का विवरण जमा किया और प्रेस को दिया व साथ में उन्‍हें इंदिरा गांधी को भी भेजा।

विरोध के बावजूद

जेपी की लहर ऐसी थी कि 1977 के चुनाव में उनकी जनता पार्टी और कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी गठबंधन को 298 सीटें मिलीं तो कांग्रेस 153 सीटें ही जीत पाईं। खुद इंदिरा गांधी 55000 हज़ार वोटों से हार गयीं। पर इन सबके बाद भी तमाम तल्खियों के बाद भी जेपी इंदिरा के साथ पुराने रिश्‍ते को नहीं भूल पाए। वे मन ही मन उनके शुभचिंतक बने रहे।

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रामबहादुर राय के अनुसार, जेपी ने इंदिरा से यह भी पूछा कि अब जब तुम प्रधानमंत्री नहीं हो, तो तुम्हारा ख़र्चा कैसे चलेगा। इस पर इंदिरा ने जवाब भी दिया। यही कि नेहरू की पुस्तकों की रॉयलटी से उनका जीवन यापन हो जाएगा। इसके बाद जेपी ने उन्हें आश्‍वस्त किया कि उनके साथ कोई ज़्यादती नहीं होगी और इस बारे में उन्होंने मोरारजी देसाई और चरण सिंह से अपील भी की थी।

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