Jyon Navak Ke Teer: एक्हार्ट टोले जर्मनी में जन्मे एक नामचीन आधुनिक दार्शनिक और वक्ता हैं| टोले का कहना है कि उनके कई शिक्षक रहे, और उनमें से अधिकांश बिल्लियां हैं। पुराणों में महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया का उल्लेख है। उनके पुत्र ऋषि दत्तात्रेय के 24 गुरु थे, जिनमें सर्प, अजगर, मकड़ी, मछली, हिरण, हाथी और मधुमक्खी भी शामिल थे!
दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति ने मद्रास में अपनी एक सार्वजनिक वार्ता के दौरान बड़ी ही दिलचस्प ज़ेन कहानी में श्रोताओं को बताया कि एक बड़ेउपदेशक हर सुबह अपने शिष्यों के साथ संवाद किया करते थे। एक सुबह जैसे ही वे अपने कमरे से निकल कर चबूतरे क तरफ जाने लगे, एक नन्ही चिड़िया ने बड़ी सुरीली आवाज़ में गीत गाना शुरू कर दिया। उपदेशक महोदय रुके, पंछी के गीत को ध्यान से सुना और जब वह अपना गीत पूरा करके उड़ गया, उन्होंने वहां बैठे श्रोताओं से कहा, ‘आज की देशना यहीं समाप्त होती है’।
उनका शिक्षक स्वयं जीवन
भले ही ये उदाहरण ख़ास किस्म के शिक्षकों के जीवन से जुड़े हों, पर हर तरह की शिक्षा में इनकी अहमियत है। इनका सार यही है कि यदि किसी के पास सीखने वाला मन हो तो उसकी निर्भरता किसी विशेष शिक्षक या संस्थान पर नहीं रह जाता। जीवन स्वयं उसका शिक्षक हो जाता है; उसकी हर स्थूल और बारीक अभिव्यक्ति से वह कुछ न कुछ सीख ही लेता है। ऐसे मन के लिए कोई शिशु, राह चलता अजनबी, वृक्ष और नदी, पशुपक्षी, जीवन का हर अनुभव उतना ही सम्माननीय होता है, जितना कि एक परंपरागत, औपचारिक टीचर।
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सीखने की ललक हो तो
सीखने वाला मन सुन कर, देख कर, स्नेह और सम्मान पर आधारित सम्बन्धों से सीखता रहता है। जिन रिश्तों में कड़वाहट है, उनसे भी सीख लेता है। सीखने की ललक संबंधों के आईने में उसे खुद को देखना सिखाती है। बदलते समय और परिस्थितियों से सीखना जरूरी भी है और मुमकिन भी।
हर तल की अपनी प्यास
इन दिनों होलिस्टिक एजुकेशन या सर्वांगीण शिक्षा के नाम पर इसके महत्व को कई स्कूल रेखांकित तो करते हैं पर व्यवहारिक स्तर पर इसकी पूरी समझ अभी निखर कर सामने नहीं आ पाई है। जीवन एक विराट कैनवस है: इसमें बहुत कुछ ऐसा है जिसे जीविका से जुड़ी शिक्षा संबोधित ही नहीं कर पाती। जीवन में सुख-दुःख है, सौन्दर्य और भद्दगी है, अन्याय और आम इंसान की अंतहीन पीड़ा है। कविता है, कुदरत है और अपने-अपने कलह हैं। देह, बुद्धि, भावनाएं हैं, और इनसे भी गहरा एक तल है हमारे व्यक्तित्व का, जिसे हम आध्यात्मिक कहते हैं। हर तल की अपनी प्यास है, अपनी मांगें हैं। क्या आज की शिक्षा इन सभी पहलुओं के बारे में हमें शिक्षित कर पा रही है?
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धैर्यपूर्वक ठहरना जानें वही समझदार
दो तरह के मन को निर्मित करना शिक्षा का गम्भीर दायित्व है प्रश्न करने वाला मन और सीखने वाला मन। इसी में शिक्षा का सौन्दर्य है। ऐसी शिक्षा छात्र और शिक्षक को एक ही स्तर पर लाकर खड़ा कर देती है। शिक्षक विषय के बारे में बहुत जानकार है, पर जीवन के बारे में उतना ही ज्ञानी और अज्ञानी है जितना कि उसके छात्र। प्रश्न पूछने वाला मन ही सही अर्थ में शिक्षित हो सकता है। आइन्स्टाइन कहते थे कि वह स्मार्ट नहीं, बस वह सवाल करने के लिए उत्सुक रहते हैं, वह किसी समस्या को देखते हुए उसके साथ धैर्यपूर्वक ठहरना जानते हैं।
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सीखने वाला मन होता है संयमित
सृजनशीलता और प्रश्न पूछने वाले मन का गहरा सम्बन्ध है। ग़ालिब भी खूब सवाल करते थे और अपनी इस आदत के बारे में उनका मशहूर शेर भी है:‘हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है, वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता’। जवाब की बजाय हमें सही सवाल की खोज में रहना चाहिए। सही सवाल मन की गहराई तक ले जाता है, जबकि छिछले उत्तर मन को उसकी सतह पर ही कायम रखते हैं। सीखने वाला मन संयमित और मजबूत संकल्प वाला होता है। उसमे विनम्रता होती है और तभी वह पुरानी बातों और पूर्वग्रहों को छोड़ कर नई बातें सीख पाता है| उसमे खुलापन होता है। खुले मन में ही नई समझ की नई कोपलें फूटती हैं; खुलापन मन को उर्वर बनाता है, उसे खिलने की स्पेस देता है।
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