
Birsa Munda Jyanti: 15 नवंबर 1875 को झारखंड के आदिवासी जोड़े सुगना और करमी के घर जन्मे बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से मर्दानगी के पन्नों पर वीरता की शब्दावली रची। उन्होंने हिंदू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदिवासी समाज न केवल मिशनरियों से भ्रमित है, बल्कि हिंदू धर्म को न तो ठीक से समझ पा रहा है और न ही स्वीकार कर पा रहा है।
बिरसा मुंडा को लगता था कि आचरण के स्तर पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके की तरह उड़ रहा है और आस्था के मामले में खोया हुआ है। उन्होंने यह भी महसूस किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है।
बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा।
- सबसे पहले, सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से मुक्त हो सके और पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके। उन्होंने आदिवासियों को स्वच्छता के संस्कार सिखाये। शिक्षा का महत्व समझाया। सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया।
- सामाजिक स्तर पर आदिवासियों की इस जागृति से न केवल जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन ब्रिटिश शासन भयभीत हो गया, बल्कि पाखंडी ओझाओं का धंधा भी ठप्प हो गया। ये सभी बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गये। उसने षड़यंत्र रचकर बिरसा को फंसाने के लिए अपने काले कारनामे शुरू कर दिये।
- दूसरा था आर्थिक सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों के आर्थिक शोषण से मुक्त कराया जा सके।
यह भी पढ़ें:- Jharkhand Foundation Day: 23 साल का हुआ झारखंड, बिरसा मुंडा का आंदोलन रहा सबसे खास
उनके नेतृत्व की बागडोर बिरसा मुंडा ने संभाली। आदिवासियों ने ‘बेगारी प्रथा’ के विरुद्ध सशक्त आन्दोलन चलाया। परिणामस्वरूप, जमींदारों और जागीरदारों के घरों, खेतों और वन भूमि पर काम रुक गया। इसे खतरे का संकेत मानकर ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दे दिया। जिसके कारण 9 जून 1900 को वे शहीद हो गये। बिरसा मुंडा की गिनती महान देशभक्तों में की जाती है।
तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें।