UK Parliamentary Elections: कंजर्वेटिव पार्टी को नहीं बचा पाए ऋषि सुनक, ऐतिहासिक हार की रही ये बड़ी वजहें

UK Parliamentary Elections: तकरीबन 14 साल बाद ब्रिटेन की सत्ता से कंजर्वेटिव पार्टी बेदखल हुई है। कंजर्वेटिव पार्टी की 200 साल के इतिहास में सबसे बड़ी है। अपनी उदारवादी छवि से भी ऋषि सुनक ब्रिटेन की जनता का भरोसा नहीं जीत पाए। इससे उनकी छवि को भी बड़ा धक्का लगा है।

UK Parliamentary Elections: ब्रिटेन के चुनाव ने दुनियाभर की सुर्खियां बंटोरी। ऋषि सुनक की पार्टी को इन चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और कंजर्वेटिव पार्टी के नेता ऋषि सुनक ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। साथ ही उन्होंने इस हार की जिम्मेदारी भी ली है। सुनक ने लेबर पार्टी के नेता किएर स्टार्मर को जीत के लिए बधाई दी है। हालांकि, ऋषि सुनक ने यॉर्कशायर में रिचमंड सीट पर जीत बरकरार रखी है।

ब्रिटेन में इस बार हुए सत्ता परिवर्तन ने राजनीतिक इतिहास के कई अध्याय को बदला है। ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी की ये हार ना सिर्फ 2024 की हार बताई जा रही है, बल्कि इसे साल 1832 से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। दरअसल 1832 के बाद कंजर्वेटिव पार्टी को 2024 में सबसे कम सीटें हासिल हुई है। यानी कंजर्वेटिव पार्टी को करीब 200 साल बाद इतनी बड़ी हार का सामना करना है।

वहीं सीटों के मामले में कंजर्वेटिव का सबसे अच्छा प्रदर्शन की बात करें तो 1983 के आम चुनाव कंजर्वेटिव पार्टी 650 में से 397 सीट जीतने में कामयाब रही थी। इसके बाद 2019 के आम चुनाव में भी कंजर्वेटिव पार्टी का प्रदर्शन काफी दमदार रहा था। 2019 के चुनाव में पार्टी के खाते में 365 सीटें आई थी। आपको बता दें कि ब्रिटेन में कुल 650 सीट हैं और बहुमत के लिए कुल 326 सीटें की जरूरत होती है।

सुनक के नेतृत्व में पार्टी को सिर्फ 121 सीटों के साथ ही सिमटना पड़ा है। पार्टी ने साल 2019 में हुए चुनावों में इससे काफी बेहतर प्रदर्शन किया था। पिछले चुनाव के मुकाबले इसबार कंजर्वेटिव पार्टी ने 250 सीटों का नुकसान झेलन पड़ा है। ऐसे में ये कंजर्वेटिव ही नहीं ऋषि सुनक के लिए भी चिंता का विषय है क्यों कि उनकी अगुवाई में ही पार्टी ने ये चुनाव लड़ा था।

हालांकि खुद ऋषि सुनक जिनपर अपनी पार्टी की बड़ी जिम्मेदारी थी वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने रिचमंड और नार्थलेरटन सीट पर 23 हजार 59 वोटों से जीत दर्ज की है। ऋषि सुनक जहां पार्टी की घटती लोकप्रियता को कम नहीं वहीं पार्टी हार से भी नहीं बचा पाए। दरअसल इस बार कंजर्वेटिव पार्टी को जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही पार्टी महंगाई, अवैध प्रवासी, कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर बैकफुट पर रही। इन मुद्दों पार्टी पार्टी की छवि बहुत ही नुसकसान पहुंचाया।

घोटालों के आरोप के बाद कंजर्वेटिव पार्टी की छवि काफी खराब हुई। इन आरोपों ने लोगों का भरोसा पार्टी से छीन लिया। फिर इस नुकसान की भरपाई के लिए ऋषि को पार्टी का चेहरा बनाया गया। जिसमें पार्टी का भरोसा वापस जीतने के लिए सुनक को मेहनत करनी पड़ी। हालांकि सुनक ने ब्रिटेन की डगमगाती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की भरसक कोशिस की और इसका असर भी दिखा, लेकिन वो नकाफी साबित हुआ।

माना जा रहा है कि ब्रिटेन में भारतीयों की ऋषि सुनक और कंजर्वेटिव पार्टी से भारी नाराजगी थी। ऋषि सुनक भारतीय समुदाय से होने के बाद भी भारतीयों को ही नहीं साध पाए। उसकी वजह ये भी है कि भारतीय वोटर्स को जो सुनक से उम्मीदें थी, वो उनपर खरा नहीं उतर पाए। ब्रिटेन में भारतीय वोटर्स की आबादी 18 लाख के करीब है और इन 18 लाख वोटर्स को भी ऋषि सुनक लुभाने में नाकामयाब रहे।

यह भी पढ़ें- ब्रिटेन में बदल गई सरकार, जानें कौन हैं कीर स्टार्मर जिन्होंने ऋषि सुनक को दी पटखनी?

बीते सालों में सुनक सरकार की नीतियों से भी लोग नाराज थे। ऋषि सुनक अपनी ही पार्टी के लिए बेहतर नेतृत्व नहीं कर पाए। जिससे लोगों में वो कंजर्वेटिव पार्टी की मजबूती को बरकरार रख पाते। हालांकि, सुनक अब प्रधानमंत्री नहीं रहे हैं। पार्टी की करारी हार के बाद सुनक का कहना है कि वो पार्टी का पुनर्निर्माण करेंगे। साथ ही विपक्ष में मजबूती के साथ अपनी भूमिका निभाएंगे।

 

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