गुंजन मिश्रा, पर्यावरणविद (Vishwa Guru Mantra for India, Vasudhaiva Kutumbakam): प्रत्येक व्यक्ति या देश शांति चाहता है, इसकी बात करता है, लेकिन कोई ये नहीं बताता, कि विश्व में शांति किस तरह कायम किया जा सकता है। इस मामले में भारत अपनी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। क्योंकि हमारे बुजुर्गों या ग्रंथों ने ब्रह्माण्ड को सर्वोपरि मानकर एक स्वस्थ जीवन जीने के नियम प्रकृति के अनुरूप निर्धारित किये हैं।
अल्फ्रेड नोबल से लेकर अलबर्ट आइंस्टीन ने भी इस बात का समर्थन किया था कि अगर पृथ्वी पर शांति स्थापित करना है तो लोगों को हथियारों का उपयोग बंद करना होगा। कारण प्रकृति में में लय है, गति है लेकिन कोई समय नहीं है। यही कारण है कि 2022 में भौतिकी का नोबल पुरूस्कार जीतने वाले वैज्ञानिकों ने यह कहा है कि ब्रह्माण्ड वास्तव में वास्तविक नहीं है। ये धारणा गलत प्रतीत होती है। क्योंकि पंचमहाभूत जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है, ये सभी पांचों तत्व जीवंत हैं।

‘वसुधेव कुटुंबकम्’ (Vishwa Guru Mantra for India, Vasudhaiva Kutumbakam), आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र नामक ग्रन्थ से लिया गया है। स्पष्ट है कि इसका सीधा संबंध भारत से है, जैसा कि यह कहा भी गया है, कि वसुधेव कुटुंबकम का मंत्र दुनिया को भारत द्वारा दिया गया है। लेकिन पिछले कुछ बर्षो में इसको एक बेहतर तरीके से वैश्विक पहचान मिली। हालांकि जवाहरलाल नेहरू से राजीव गांधी, अटल जी एवं नरेंद्र मोदी ने इन शब्दों को कई मौकों पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में कई बार उपयोग किया गया।
हाल ही में जी- 20 सम्मेलन के माध्यम से इसका अर्थ विस्तार से समझाया भी गया है। इस तरह इस वाक्य की वैश्विक स्तर पर नींव भी रखी गयी। लेकिन अभी विश्व जिन हालातों से गुजर रहा है (रूस – उक्रैन, इजराइल – फिलस्तीन व आतंकवाद) उसने भारत के द्वारा जो नींव रखी गयी उसको कमजोर किया है।
वर्तमान भारत सरकार के कार्यकाल के दौरान यह महसूस किया गया है कि शायद हम भारतीय अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को हटाकर ‘एक धरती’ के मंत्र को 7 बिलियन लोगों की समृद्धि के लिए वैश्विक स्तर पर स्थापित करना चाहते हैं। तभी हम भारतवासी सच्चे मायने में अपने बापू को एक सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे। लेकिन आज के परिदृश्य को देखते हुए यह लगता है जब तक कुछ देशों की रोजी रोटी या विकास शस्त्र, हथियार, मिसाइल एवं बारूद पर निर्भर है तब तक इन शब्दों का कोई महत्व नहीं है। क्योंकि मानवता को नियमों के अंतर्गत समेटना एक व्यापारिक दृष्टिकोण को जन्म देता है।
‘वसुधेव कुटुंबकम्’ (Vishwa Guru Mantra for India, Vasudhaiva Kutumbakam) को अगर अगले महीने होने वाले कॉप 28 का सम्मेलन जिसमें 198 देश हिस्सा लेंगे एक अच्छा मौका है। जिसमें इस मंत्र को ईको साइड के माध्यम से लोगों के हृदय तक पहुंचाया जा सकता है। क्योंकि धरती के सौंदर्य को उजाड़कर हम अपने एवं आने वाली पीढ़ी के जीवन को मूलभूत आवश्यकताओं से भी बंचित कर सकते हैं। प्रकृति के माध्यम से ही हम सर्वे भवन्तु सुखिनः का सन्देश बेहतर तरीके से दे सकते हैं।
आज के हालातों को देखते हुए भारत सरकार को चाहिए इस समय एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन वसुधेव कुटुंबकम् पर किया जाना चाहिए। जैसा प्रयास अटल जी के द्वारा एशिया प्रशांत मंच में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएं को लेकर किया गया था। तभी हम विश्व गुरु कि ओर अग्रसर हो सकते है। क्योंकि इस तरह सम्मेलन के माध्यम से ही एक नई दुनिया का नक्शा सामने आएगा। तभी हम सुनिश्चित हो सकेंगे कि हमको विश्व में शांति और भाईचारा स्थापित करने के लिए किस तरह की कार्यशैली अपनानी होगी। इसके लिए हमको लगातार विश्व के शीर्ष लोगो एवं आम जन को वसुधेव कुटुंबकम की याद दिलाते रहनी होगी।
इसके लिए भारत सरकार, खासतौर पर विदेश मंत्रालय को चाहिए की अन्य देशों से पत्राचार करते वक़्त भारत सरकार को अपने लेटर हेड पर इन शब्दों को स्थान देना होगा। तभी हम एक विश्व या एक धरती का अहसास करा पाएंगे यानी बापू के सत्य और अहिंसा को दोहराते रहेंगे। तभी हम धरती पर शांति स्थापित कर पाएंगे। इसके लिए भारत सरकार को चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय मानवधिकार जैसे संगठनों को मजबूत करने कि कोशिश वैश्विक स्तर की जाए।
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पिछले कुछ वर्षो में जिस तरह इन शब्दों का उपयोग किया गया, उससे यही सिद्ध होता है, कि भारतीय अपने दिलों में यही सपना पाले हैं कि देशो की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर फौज का पहरा न होकर, भाईचारा पहरा देता हो। स्पष्ट है यह एक ऐसा कार्य है जो की असंभव को संभव में परिवर्तित करता हो। लेकिन जिस तरह से भारतीय संस्कृति के विचारों का फैलाव हुआ है, एवं भारतीय मूल के लोग विश्व की महत्वपूर्ण संस्थाओं में उच्च पदों पर है, यह तक की कई देशों की सरकारों में प्रधानमंत्री, मंत्री आदि के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है।
उससे स्पष्ट है कि भारतीय विश्व कल्याण के लिए वसुधेव कुटुंबकम् (Vishwa Guru Mantra for India, Vasudhaiva Kutumbakam) को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में सहयोगी हो सकते है। क्योंकि हर भारतीय ‘सत्यमेव जयते, अहिंसा परमोधर्मः, सर्व धर्म समभाव’ के अलावा ‘जननी जन्म भूमिश्चा, स्वर्गादपि गरियासी’ जैसे मानवीय दृष्टिकोण वाले शब्दों या श्लोकों को कहीं न कहीं अपने हृदय में रखते हैं।
यहां वसुधेव कुटुंबकम् का मतलब शांति, अहिंसा, सौहार्द एवं भाईचारा ही नहीं है, बल्कि यदि इस मंत्र को प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति या मूलभूत सविधान में उतारने या लागू करने की कोशिश करे तो दुनिया की तमाम वैश्विक समस्याओं का निवारण स्वतः हो जाएगा। तभी जिससे धरती के संसाधनों का उपयोग भी प्रत्येक व्यक्ति की जरूरत के हिसाब से आवश्यकतानुसार तय होगा।
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जिससे हम पर्यावरणीय (ईको साइड या जलवायु परिवर्तन), सामाजिक (आर्थिक एवं सामाजिक असमानता), धार्मिक (मतभेद) एवं आर्थिक (क़र्ज़) समस्याओं को भी हल कर सकेंगे। इसलिए एक समृद्ध विश्व के लिए, विश्व के नीति निर्माताओं को चाहिए की इस मंत्र को अपनी- अपनी विदेश नीतियों में स्थान दें। तभी भारतीयों का सपना ‘एक धरती, एक विश्व’ का साकार हो सकेगा।
(लेखक गुंजन मिश्रा जानें मानें चिंतक और पर्यावरणविद हैं।)
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