
World Environment Day 2023 : दुनिया सह अस्तित्व के कारण ही चल रही है।सह अस्तित्व के सिंद्धांत का पालन किसान किसानी के माध्यम से करता है। लेकिन आज के मॉडर्न विज्ञान ने लालच के कारण सह अस्तित्व के सिंद्धांत को नकार कर करेंसी को महत्वपूर्ण बना दिया। धरती पर जीवन के लिए असली करेंसी जल, वायु, मिट्टी, आदि है। इसीलिए सरकारों द्वारा नेचुरल फार्मिंग, अमृत सरोवर, सोलर ऊर्जा, आदि कुल मिलाकर जीवन का जो मंत्र प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया है, पर्यावरण संरक्षण के लिए इसकी जरूरत है।
यही कारण है कि किसान ही इस धरती को सजा और संवार सकता हैं। क्योंकि किसान का पूरा जीवन प्रकृति पर आधारित है। आज की समस्याओं को देखते हुए अब प्राकृतिक वसीयत के लिए प्रयास होने चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर आज जीवन से प्लास्टिक कम करने से काम नही चलेगा। हमको पंचमहाभूतों के संरक्षण का संकल्प लेना होगा।
प्राकृतिक वसीयत लिखने का समय
चिंतन और मनन के साथ हम सबको पृथ्वी को फिर से सजाने का काम करना होगा अन्यथा हमारी मात्र आर्थिक वसीयत आने वाली पीढ़ी को और ज्यादा संकट में डाल देगी। अब समय आ चुका हैं जब हमको प्राकृतिक वसीयत लिखनी चाहिए। आज तक समाचार के माध्यम द्वारा जो चुनाव को लेकर या किसी प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के कार्यों का आकलन किया गया उसमें आम जन से कोई भी सवाल पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर नहीं किया जाता है। जबकि नरेन्द्र यानि स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि यह समस्त प्रकृति आत्मा के लिए है न की आत्मा प्रकृति के लिए। यहां ध्यान देने वाली यह बात है कि स्वामी जी ने शरीर को लेकर प्रकृति का कोई सम्बन्ध नहीं बताया।
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पालनहार बनिए न कि विनाशक
कभी कृषि को इसीलिए सर्वोच्च जीवन का साधन माना गया था क्योंकि उस समय की कृषि मे सहअस्तित्व के सिद्धांत का पूर्णतः पालन होता था। लेकिन आज विश्व मे सबसे अधिक जहर कही डाला जा रहा है तो वो खेती के माध्यम से।सरकार द्वारा अगर भारतीय संस्कृति के हिसाब से देखा जाए किसानों को पुनः यह मौका दिया जा रहा पालनहार बनिए न विनाशक।यही मानवता के लिए सारे धर्मों है निचोड़ है, गीता, कुरान, बाइबिल, सभी में इसी का उल्लेख है। इस तरह के कार्य को वही लोग अंजाम दे पाते है, जो सभी धर्मों का आदर करते हों।और किसानी ही ऐसा पवित्र कार्य है जिसे सभी धर्मों के लोग करते है। इसलिए अगर इस मामले पर देखा जाए तो हिंदुत्व की बात बेमानी लगती है। क्योंकि धरती सिर्फ मानव की ही नही बल्कि इस मां पर छोटे से लेकर बड़े जीव धारियों की जिम्मेदारी है।
सर्वोत्तम साधना की जरूरत
धरती पर सबके लिए प्रत्येक वस्तु का उसकी आवश्यकता के अनुसार सबका अनुपात सुनिश्चित है। इसीलिए प्रकृति को मानवता से परिपूर्ण माना गया हैं। क्योंकि वसुंधरा की पूजा को ही सर्वोत्तम साधना व् तपस्या माना गया है एवं यही साधना मोक्ष प्राप्ति का जरिया बनती है। मेरा मानना है कि जब यह प्रकृति किसी ऊर्जा यानी आत्मा को शुद्धीकरण की तरफ जब ले जाती है तब यह ऊर्जा या आत्मा किसान के रूप मे जन्म लेती है क्योंकि मानवता पूर्ण किसानी मे सभी तरह की साधना व तपस्या मिहै। शायद् यही वजह है कि सरकार का ध्यान किसानों की तरफ काफी हुआ है।
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इसीलिए किसानों को चाहिए कि मानवता के इस कार्य को जारी रखे तभी वे वसुधैव कुटंबकम का हम पालन कर सकते हैं। इसीलिए अब हमको वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मानवता के साथ जोड़कर कार्य करना होगा, क्योंकि खाली हाथ सबको जाना है।
(लेखक गुंजन मिश्रा, एक जाने माने पर्यावरणविद् हैं)
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