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मध्य, पश्चिमी और दक्षिणी भारत के मध्य में स्थित यह जगह चंदेल राजाओं का गढ़ हुआ करता था। 17वीं शताब्दी में दोबारा इसने अपनी खोयी गरिमा को वापस पा लिया रानी लक्ष्मी बाई के शासनकाल में।
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यह शहर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह अटूट हिस्सा है जिसके बिना आजादी की महागाथा अधूरी है। रानी की हुंकार कि'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी, को लोग नहीं भुला पाए हैं।
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बुंदेलखंड की हृदयस्थली वीरांगना भूमि को आजादी के रणबांकुरों को प्रशिक्षित करने का गौरव भी प्राप्त है। यहां मास्टर रुद्र नारायण के यहां अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले चन्द्रशेखर आजाद रहे। यहां आप सातार पुल के पास उनकी मूर्ति देख सकते हैं।
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बंगरा की पहाड़ी पर बना है झांसी किला। यह किला रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच भीषण युद्ध का साक्षी है। यह भारत के सबसे रणनीतिक रूप से निर्मित किलों में से एक माना जाता है।
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महाराजा गंगाधर राव की छतरी का निर्माण रानी लक्ष्मीबाई द्वारा 21 नवंबर 1853 को रानी लक्ष्मीबाई ने कराया था। 150 वर्ष पुरानी होने के बावजूद महाराजा गंगाधर राव की छतरी समय का सामना करते हुए खड़ी है।
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झांसी का रानी महल एक शाही महल है। कोतवाली क्षेत्र में स्थित रानी महल दो मंजिला इमारत है। यह महल रोजाना ही सुबह 7 बजे खुलकर शाम 5 बजे बंद होता है। महल सोमवार को बंद रहता है।
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इस मंदिर का इतिहास किले के निर्माण के साथ जुड़ा है। इसी मंदिर में महारानी लक्ष्मीबाई का विवाह महाराज के साथ हुआ था और उसी समय से बुंदेलखंड में पहली पूजा की प्रथा भी चल पड़ी थी।
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झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई की कुल देवी का मंदिर है, जिसे महालक्ष्मी मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में झांसी की रानी सप्ताह में दो बार अपनी सहेलियों के साथ आती थीं।
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झांसी से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मप्र के दतिया में राजसत्ता की देवी मां पीताम्बरा व तंत्र साधना की देवी मां धूमावती का मंदिर है।
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आप झांसी आएं तो प्रदेश पर्यटन की एंपोरियम के अलावा इन लोकल मार्केट भी जरूर जाएं। यहां ज्यादातर दुकानें हस्तशिल्प, पारंपरिक परिधानों, पिक्टोरियल बुक्स तथा पिक्चर पोस्टकार्ड आदि की हैं।
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यहां रेलमार्ग और हवाई मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर है। झांसी की सैर के लिए उपयुक्त समय नवंबर से मार्च के बीच है।
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