पुराणों के मुताबिक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ब्रह्मा जी से ज्यादा परमज्ञानी कोई नहीं है। इसलिए उनके नाम ब्रह्मा पर ही इस संसार का नाम ब्रह्माण्ड पड़ा।
मान्यताओं मुताबिक देवताओं ने ब्रह्मा जी से जब सृष्टि के निर्माण के लिए बहुत आग्रह किया। सृष्टि के निर्माण का कार्य पूरा करने के लिए आदि शक्ति ने अपने स्वरुप से सरस्वती को उत्पन्न करके ब्रह्मा जी को पत्नी स्वरुप भेंट किया।
इसके बाद उन्होंने ब्रह्मलोक से एक कमल पुष्प पाताल लोक की ओर फेंका। जिस जगह पर वो पुष्प गिरा वहीं से सृष्टि का निर्माण शुरू हो गया।
मान्यता है कि पुष्कर का ब्रह्मसरोवर ही वो पवित्र स्थान है जहां पर ब्रह्मा जी द्वारा फेंका गया कमल का पुष्प गिरा था। जिस जगह कमल पुष्प गिरा वहां तालाब बन गया और ब्रह्मा जी ने इसी जगह को यज्ञ के लिए चुना।
ब्रह्मा जी ने पृथ्वी लोक पर सृष्टि के निर्माण के बाद 10 हजार साल तक तपस्या किया। तपस्या पूरी होने के बाद उन्होंने अपनी शरीर से जीवों को उत्पन्न किया। इसके बाद उन्होंने यज्ञ का अनुष्ठान करने का प्रण लिया।
लेकिन पत्नी के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। इस बीच यज्ञ का शुभ मुहूर्त बीत रहा था ऐसे संसार के कल्याण हेतु ब्रह्मा जी ने गायत्री नाम की कन्या से विवाह कर लिया जो बुद्धिमान होने के साथ साथ शास्त्रों का भी ज्ञान रखती थीं।
उधर देवी सरस्वती ब्रह्मा जी को तलाशते हुए पृथ्वी लोक में पुष्कर पहुंची। यहां ब्रह्मा जी के वाम भाग में गायत्री माता को बैठकर यज्ञ करता देख क्रोधित हो गईं।
माता सरस्वती ने ब्रह्मा जी से कहा कि सृष्टि का निर्माण के समय बनाए गए नियम से उलट आपने एक पत्नी के न होने पर भी यज्ञ शुरू करके इसका उल्लंघन किया है।
माता सरस्वती ने ब्रह्मा जी श्राप देते हुए कहा कि पृथ्वी के लोग ब्रह्मा जी को भुला देंगे और कभी इनकी पूजा नहीं होगी।
अन्य देवताओं के समझाने पर माता सरस्वती का क्रोध कम हुआ। इसके बाद माता सरस्वती ने कहा कि ब्रह्मा जी केवल पुष्कर में पूजे जाएंगे।
कहा जाता है कि माता सरस्वती के इस श्राप के कारण ही इस संसार की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पृथ्वी लोक में पूजा नहीं होती है।
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