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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। 92 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है।
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नमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरुशरण' में मनमोहन सिंह के कई राज से लोगों को रूबरू कराया है और कहीं न कहीं उनकी कमजोर छवि को तोड़ने की कोशिश की है।
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मनमोहन सिंह के पिता चाहते थे कि बेटा डॉक्टर बने। लिहाजा मनमोहन सिंह ने अप्रैल, 1948 में अमृतसर के खालसा कॉलेज के प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला भी लिया लेकिन कुछ ही महीनों के बाद पढ़ाई में दिलचस्पी न लगने की वजह से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी।
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1948 में हिंदू कॉलेज में आए पढ़ाई छोड़ने के बाद मनमोहन सिंह अपने पिता की दुकान पर हाथ बँटाने लगे लेकिन यहां भी उनका मन नहीं लगा। ऐसे में मनमोहन सिंह ने तय किया कि वो फिर से कॉलेज में पढ़ने जाएँगे। इसके बाद उन्होंने सिंतबर, 1948 में हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया।
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अप्रत्याशित था वित्त मंत्री बनना 1991 में जिस वक्त उन्हें देश का वित्त मंत्री बनाए जाने की जानकारी दी गई उस समय वह सो रहे थे। पीटीआई के मुताबिक मनमोहन सिंह के लिए ही यह फैसला उनके लिए अप्रत्याशित था। जब प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीसी एलेक्जेंडर का फोन आया उस वक्त मनमोहन सिंह सो रहे थे।
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मनमोहन सिंह कोई घरेलू काम नहीं कर पाते हैं। वे न तो अंडा उबाल सकते हैं और न ही टेलीविजन चालू कर सकते हैं।
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इंदिरा गांधी से इस कदम की उम्मीद नहीं थी 1975 के आपातकाल का जिक्र करते हुए दमन ने किताब में लिखा है कि इससे मनमोहन सिंह भी आश्चर्यचकित रह गए थे। उनके अनुसार, देश में अशांति का माहौल था लेकिन किसी को भी इंदिरा गांधी से इस तरह के कदम की अपेक्षा नहीं थी।
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मनमोहन सिंह ने बाद में अर्थशास्त्र को अपना विषय बनाया। उनके मुताबिक उन्हें गरीब और गरीबी दोनों विषय में दिलचस्पी थी, वे जानना चाहते थे कि कोई देश गरीब क्यों है और कोई अमीर क्यों हो जाता है? इसी जिज्ञासा ने अर्थशास्त्र में उनकी दिलचस्पी जगाई।
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