विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है ।
इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जहां सभी शंखों का पेट बाईं ओर खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं और खुलता है। इस शंख को देवस्वरूप माना गया है। दक्षिणावर्ती शंख के पूजन से खुशहाली आती है और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ संपत्ति भी बढ़ती है।
वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं। यह शंख आसानी से मिल जाता है, क्योंकि यह बहुतायत में पैदा होता है। यह शंख घर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालने में सक्षम है।
समुद्र मंथन के दौरान 8वें रत्न के रूप में सर्वप्रथम गणेश शंख की ही उत्पत्ति हुई थी। इसे गणेश शंख इसलिए कहते हैं कि इसकी आकृति हू-ब-हू गणेशजी जैसी है।शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्ययुक्त है। प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। यह शंख दरिद्रतानाशक और धन प्राप्ति का कारक है।
कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख : महाभारत में लगभग सभी योद्धाओं के पास शंख होते थे। उनमें से कुछ योद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे, जैसे भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।
यह शंख महाभारत में अर्जुन के पास था। वरुणदेव ने उन्हें यह गिफ्ट में दिया था। इसका उपयोग दुर्भाग्यनाशक माना गया है।माना जाता है कि इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस शंख को शक्ति का प्रतीक भी माना गया है।
इस शंख को प्राकृतिक रूप से निर्मित श्रीयंत्र भी कहा जाता है इसीलिए इसका नाम महालक्ष्मी शंख है। माना जाता है कि यह महालक्ष्मी का प्रतीक है।इसकी आवाज सुरीली होती है। माना जाता है कि इस शंख की जिस भी घर में पूजा-अर्चना होती है, वहां देवी लक्ष्मी का स्वयं वास होता है।
पोंड्रिक या पौण्ड्र शंख महाभारत में भीष्म के पास था। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो उन्हें यह पौण्ड्र शंख रखना चाहिए।इसके घर में रखे होने से मनोबल बढ़ता है। अधिकतर इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम माना गया है। इसे विद्यार्थियों के अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।
ये शंख भी प्रमुख रूप से दो प्रकार के हैं। एक गोमुखी शंख और दूसरा कामधेनु शंख। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है।
इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते हैं। यह दक्षिणावर्ती शंख की तरह खुलता है।यह पहाड़ों में पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते हैं। यह बहुत ही बहूमुल्य माना गया है।