Author: JYOTI MISHRA Published Date: 11/09/2024
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वास्तु शास्त्र अनुसार आज के समय में हर कोई अपना घर,मकान,भवन व कार्यालय बनाना चाहता है ताकि किसी भी प्रकार की समस्या न हो। सुखमय जीवन के लिए वास्तु की आवश्यकता होती है।
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'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं।
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घर,भवन,मकान, कॉलोनी या बड़े-बड़े जगहों पर बनने वाले फ्लैट क्या वास्तु अनुरूप होते हैं हो या ना हो किंतु वास्तु का ध्यान रखते हुए सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए हमें कुछ सामान्य नियम आने चाहिए।
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भूखंड के दक्षिण पश्चिम भाग में अधिकाधिक निर्माण करना चाहिए। पूर्वोत्तर यथा संभव खाली छोड़ना चाहिए।
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उत्तर या ईशान्य में भूमिगत टेंक बनाना या कुआ- नलकूप खुदवाना चाहिए। ओवरहेड टैंक छत पर पश्चिम में या वायव्य में बनाना चाहिए।
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शयन कक्ष में भगवान के चित्र न लगाएं। वीम के नीचे न सोएं। शयनकक्ष में पलंग इस प्रकार विछाएं कि सोते समय सिर दक्षिण या पूर्व में रहे। काले एवं लाल रंग का प्रयोग मकान में नहीं करना चाहिए।
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नैऋत्य में सैप्टिक टेंक या किसी भी प्रकार का गड्डा नहीं होना चाहिए। टायलेट, स्नानग्रह भृंगराज या असुर के पद में बनाएं।
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ईशान्य, अग्नि या नैऋत्य कोण में टायलेट - ऐसी स्थिति में बुद्धि ठीक से काम नहीं करती व ज्यादातर गलत निर्णय लेने से परेशानियां आती रहतीं हैं। आर्थिक एवं रोग समस्या और गृहस्थी में नाना प्रकार की समस्याऐं आती हैं।
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यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है
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